भारतीय हिंदू धर्म में पीपल के वृक्ष को वृक्षों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है एवं इसके महत्व का अनेकानेक शास्त्रों में बखान किया गया है। श्रीमद्भागवत गीता के 10 वें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने पीपल के संबंध में यह कहा है कि वृक्षों "मैं वृक्षों में पीपल हूँ।" अर्थात पीपल स्वयं भगवान श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है।
स्कंद पुराण में पीपल के वृक्ष का वर्णन अत्यधिक विस्तृत स्वरूप में किया गया है। स्कंद पुराण में पीपल के वृक्ष के सभी अंग अवयवों के महत्व को दर्शाया गया है जिसके अनुसार पीपल के मूल में भगवान श्री हरि विष्णु का प्रवास माना जाता है। वहीं तने में केशव यानी श्री कृष्ण का प्रवास, जबकि शाखाओं में विष्णु के अन्य रूप नारायण तथा पत्तियों में हरि का प्रवास माना जाता है।
पीपल के पौधे में पल्लवित होने वाले फलों में अन्य सभी देवताओं तथा अच्युत देव का निवास माना जाता है। अर्थात पीपल के वृक्ष की पूजा आराधना करना सभी देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के समान है।
पीपल के पेड़ को अक्षय वृक्ष भी कहा जाता है। अर्थात इसका कभी भी पूर्णरूपेण क्षय नहीं होता है। इसके पेड़ के पत्ते कभी पूर्णतयाः समाप्त नहीं होते। यह सदाबहार के समान होते हैं। एक पत्ते झड़ते हैं तो दूसरे पहले से पल्लवित हो जाते हैं। इसी वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को जन्म, मरण, आत्मा, ईश्वर आदि का बोध हुआ था।
पीपल के वृक्ष द्वारा विद्वतजन, ब्रह्मांड के जन्म मरण के चक्र को समझने का प्रयत्न करते हैं। माना जाता है कि जिस प्रकार पीपल के पेड़ से निरंतर पत्ते सूख कर नीचे गिरते रहते हैं एवं प्रतिदिन नए पत्ते-फल पल्लवित होते हैं, उसी प्रकार इस सृष्टि का क्रम चलता रहता है, जिसमें रोज जीवन-मरण का क्रम लगा रहता है।
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पीपल के वृक्ष में पित्तरों का प्रवास माना जाता है। इसी कारण अंतिम संस्कार के पश्चात अस्थियों की एक मटकी को पीपल के पेड़ में टांगने का भी विधान है। ऐसा माना जाता है कि पीपल के पेड़ में पितरों के सभी तीर्थों का भी निवास होता है।
प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों द्वारा नित्य प्रतिदिन पीपल के वृक्ष के नीचे हवन, यज्ञ, जप, तप आदि का कार्यक्रम किया जाता था। ऐसा माना जाता है कि पीपल के वृक्ष के नीचे किया गया सभी शुभ कर्म अक्षय होता है, अर्थात जिसका कभी नाश नहीं होता।
महर्षि पिप्पलाद ने पीपल के वृक्ष के नीचे अनेकों वर्षों तक सघन तपस्या की थी जिस कारण वे चहुँ लोक में प्रचलित हुए। एक बार उन्होंने शनि देव को किसी कारणवश श्राप दे दिया था, बाद में पश्चाताप हेतु उन्होंने शनि देव को पीपल के वृक्ष से सद्गुण ग्रहण करने को कहा, तब से भगवान शनि के दोषों को मुक्त करने हेतु भी पीपल के वृक्ष को की पूजा की जाती है।
संसार मे विद्यमान अनेकानेक प्रकार के नस्लों के पेड़ पौधों में से पीपल का वृक्ष केवल और केवल एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो सदैव ऑक्सीजन ही विसर्जित करता है। पीपल का पौधा पर्यावरण के कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता रहता है एवं हमेशा 24 घंटे ऑक्सीजन प्रदान करता है। जबकि सामान्य तौर पर अन्य पेड़ केवल सूरज की रोशनी में ऑक्सीजन प्रदान करते हैं और अन्य समय में कार्बन डाइऑक्साइड को विसर्जित करते हैं।
पीपल के पत्ते को औषधीय माना जाता है। इसका प्रयोग प्राचीन काल में विशेष तौर पर चाणक्य के कालखंड में सर्वाधिक किया जाता था। चाणक्य के कालखंड में पीपल के पत्ते से जलाशय अथवा जलकुंड आदि के जल को पवित्र करने में किया जाता था। इसके अतिरिक्त पीपल के पत्तों से सर्प के विष के दंश का उपचार भी किया जाता था।
अन्य कई स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं बुखार आदि जैसी कई समस्याओं में पीपल के पत्तों का प्रयोग आदिकाल से तत्काल तक होता आया है। पत्ते के अतिरिक्त इसके फल, तना, लकड़ी आदि का भी प्रयोग कई असाध्य रोगों में रामबाण होता है।
ज्योतिष तथा विज्ञान दोनों की ही दृष्टि से पीपल के पेड़ को घर में लगाना संकट को आमंत्रित करने के समान माना जाता है।
विज्ञान की मानें तो पीपल का पेड़ घर में लगाने पर उसकी जड़ें दूर तक फैलती है जो घर की दीवार, उसकी बनावट आदि को प्रभावित करती हैं, जिस कारण घर में पीपल के पेड़ को नहीं लगाना चाहिए बल्कि घर से कुछ दूरी पर लगाना चाहिए।
शास्त्रों के अनुरूप पीपल के पौधे को घर में लगाने से प्रगति में बाधाएं आती है, अनेक-अनेक प्रकार की समस्याएं जीवन में मंडराने लगती हैं।