भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्री कृष्ण इस सृष्टि में सर्वविदित, सर्वप्रचलित व लोकप्रिय हैं। इनकी लीलाओं व नटखटपन की कथाओं का बाल्यकाल से ही उल्लेख मिलता है। इनका जन्म भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था जिसे हम जन्माष्टमी के रूप में हर साल मनाते हैं। पुराणों व शास्त्रों के अनुसार श्री कृष्ण इस धरा पर 16 कलाओं से संपन्न थे। कहते हैं कि इनके जन्म लेते ही संपूर्ण सृष्टि सूर्य के समान प्रकाशित व जगमगा उठी थी। तो आइए जानते हैं मनमोहक, बंशीधर, लीलाधर, नटखट, मुरली मोहन, दीन सुदामा के घनिष्ट मित्र भगवान श्री कृष्ण की इन 16 कलाओं के बारे में।
1) श्री
भगवान श्रीकृष्ण भगवान विष्णु अपार धन संपदा से युक्त थे। कहते हैं कि जो व्यक्ति धन संपदा आदि से परिपूर्ण हो व ईश्वर के प्रति उसका प्रेम इसमें भक्ति भाव प्रबल हो, आध्यात्मिक रूप से भी वह समृद्धि व ऐश्वर्य से युक्त तथा कोई भी व्यक्ति उसके घर से कभी भी खाली हाथ ना लौटे, तो उसे ही धन संपदा कला से युक्त माना जाता है।
2) भू
भगवान श्री कृष्ण अचल संपत्ति कला के कारण थे। कहते हैं कि इस सृष्टि पर कोई भी व्यक्ति राजयोग पालन करने हेतु योग्यता रखता हो, एक बड़े क्षेत्र पर उसका शासन व अधिकार हो, व उसकी आज्ञा का पालन सहर्ष उस विशाल क्षेत्र के जन बिना मतभेद के खुशी खुशी पालन करते हों, और वह असीम धनसंपदा का स्वामी हो, तो उसे अचल संपत्ति से युक्त कहा जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने भी मथुरा को त्याग कर द्वारिका पुरी बसाया था।
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3) कीर्ति
जिसकी कीर्ति सूरज की किरणों के समान विभिन्न दिशाओं में प्रकाशित हो, सहर्ष उसके प्रति साधारण जन प्रेम स्नेह भाव रखते हों, बिना किसी दबाव के उस पर विश्वास करते हो, तो उसे श्री कृष्ण की चौथी कला यश कीर्ति से संपन्न माना जाता है।
4) इला
इला अर्थात सम्मोहक वाणी, श्री कृष्ण में यह कला अन्तः करण में समाहित थी। पुरातन काल के अनुसार श्री कृष्ण की वाणी सुनकर गोकुल की गोपियां अपनी सुध-भूल कर श्री कृष्ण में रम जाती थी। वे यशोदा माँ के पास शिकायत करने के विपरीत उनकी तारीफ करने लगती थी। क्रोधी व्यक्ति भी उनकी वाणी सुनकर प्रेम अनुराग से पूर्ण हो जाता था।
5) लीला
लीला अर्थात आनंद। भगवान श्रीकृष्ण बाल्यावस्था से ही रोचक लीलाओं के लिए प्रसिद्ध थे। वे स्वयं माखन चोरी कर, अपने मित्रों पर आरोप लगा देते थे। गोपियों को मोहित कर उन्हें अन्य कार्य करने से अनभिज्ञ कर देते थे। इसलिए उनका नाम लीलाधर भी हुआ। कहते हैं कि उनकी लीलाओं को देखकर जन में खुशहाली की लहर उमड़ पड़ती थी।
6) कांति
रामायण में भगवान राम और महाभारत में श्री कृष्ण रूप भगवान विष्णु इस कला से परिपूर्ण थे। उनकी स्मृति को देखकर भूमंडल के चारों ओर मनमोहक वातावरण की लहर विद्यमान हो जाती थी। श्री कृष्ण के मुख को देखकर संपूर्ण बृजवासी अपने काम को छोड़कर उनके प्रति मोहित आकर्षित हो जाते थे। गोकुल की सभी किशोरियां उन्हे अपने पति रूप में धारण करने की कामना करती थी।
7) विद्या
भगवान श्री कृष्ण अपार विद्या के धनी थे। आध्यात्मिक नीति के साथ-साथ सामाजिक नीतियों के भी ज्ञाता थे। किस स्थान पर कौन सी विद्या का और किस प्रकार प्रयोग करना है, उनमें वे पारंगत थे। राजनीति को भलीभांति जानते थे, किन्तु वे कूटनीति को भी अधिक महत्व देते थे। इसी प्रकार विद्या मेधा बुद्धि कला में पारंगत माने जाते हैं।
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8) विमला
जो व्यक्ति अंतः करण व बाहरी रूप से एक है और किसी भी आधार किसी भी व्यक्ति में कोई भी भेदभाव नहीं करता, जैसे छोटा या बड़ा, अमीर-गरीब, धनी-निर्धन आदि। वे इस कला से युक्त माने जाते हैं। भगवान श्री कृष्ण बिना किसी भेदभाव के राधा के समान अन्य गोपियों के साथ गायन व नृत्य किया करते थे। सभी के प्रति समान व्यवहार प्रेम व अनुराग रखते थे ।
9) उत्कर्षिनी
वह व्यक्ति भगवान श्री कृष्ण की इस कला से संपन्न माना जाता है जिसमें किसी निराश व्यक्ति को आशा पूर्ण कर सफलता की ओर अग्रसर करने की क्षमता हो। वह किसी को प्रेरित कर लक्ष्य भेदने का साहस व धैर्य प्रदान कर सकें। जिस प्रकार भगवान कृष्ण ने युद्ध के मध्य अर्जुन को प्रेरित कर महाभारत के विशाल युद्ध में विजय का भागीदार बनाया था।
10) ज्ञान
जो व्यक्ति अपनी बुद्धि, विवेक व ज्ञान के माध्यम से समाज को एक नई दिशा दर्शाता है, व उसे प्रबल बनाने हेतु अपना सर्वस्व प्रदान करता है, उसे इस कला से युक्त माना जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने कई बार अपने विवेक से समाज को अहित करने से अनभिज्ञ रखा था। महाभारत के विशाल युद्ध में कौरवों से 5 गांव मांगने का निर्णय भी उनकी विवेकशीलता को दर्शाता है।
11) क्रिया
इस सृष्टि के संचालक व पालनकर्ता भगवान कृष्ण, जिनके इशारे मात्र से पूरी सृष्टि का पोषण होता है, वे इस धरा पर कर्म का महत्व दे, मनुष्य रूप में कर्म कर, जीवन में कर्म की महत्ता को दर्शाते हैं। भगवान कृष्ण महाभारत के युद्ध को एक पल में ही समाप्त कर सकते थे किंतु उन्होंने अर्जुन का सारथी बनकर युद्ध को फलित करने का निर्णय लिया।
12) योग
जो व्यक्ति योग बल में पारंगत हो, जिन्होंने अपना मन केंद्रित कर लिया हो, योग के माध्यम से चित्त को शांत किया हो, उसे योग चित्त कला से युक्त माना जाता है। श्री कृष्ण को हम योगेश्वर के नाम से भी जानते हैं। उन्होंने योग के आधारभूत कई ऐसे कृत्य पूर्ण किये जो असंभव थे।
13) प्रहवि
प्रहवि अर्थात विनम्र व विनय। भगवान श्री कृष्ण इस जगत के रचयिता होते हुए भी उनमें तिनके मात्र भी अपने कर्म का अहंकार नहीं है। दीन सुदामा को मित्र बनाकर उन्हें अपने हृदय से लगा लेते हैं व उनके द्वारा लाए गए सूखे चावल का सह्रदय भोजन भी करते हैं। सभी शिक्षाओं में पारंगत होते हुए भी वे गुरु को ही अपनी शिक्षा का श्रेय देते है, ये सब उनकी विनम्रता का परिचय देता है।
14) सत्य
जो व्यक्ति सत्य को परिभाषित करना जानता है, व किसी भी परिस्थिति में सत्य व धर्म के मार्ग को प्राथमिकता देता है, वह इस कला का धनी है। भगवान श्री कृष्ण धर्म की रक्षा हेतु कटु वचन को परिभाषित करना भली-भांति जानते थे। वे कटु सत्य को बड़े ही विलक्षण रूप में वर्णित कर सबको मोहित कर देते थे।
15) इसना
इसना आधिपत्य कला से युक्त व्यक्ति समाज, व्यापार आदि में अपने प्रभाव को दर्शाता है। समाज में अपनी उपस्थिति को महत्वपूर्ण बनाकर, सभी को प्रभावित व आकर्षित करता है। उसकी अनुपस्थिति में लोगों को उनकी कमी महसूस होती है, ऐसे व्यक्ति को इस कला से युक्त माना जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने द्वारिका नगरी का सभी की सहमति से निर्माण किया था, उनके निर्णय को सर्वोपरि मानकर सभी मथुरा वासियों ने द्वारिका में रहने का निर्णय लिया था।
16) अनुग्रह
जो व्यक्ति फल की इच्छा के विपरीत कर्म को करने में विश्वास रखते हैं व किसी भी व्यक्ति की बिना किसी स्वार्थ के सहायता करते हैं, वह इस कला के हकदार होते हैं। भगवान श्रीकृष्ण बिना किसी उपकार के सब का भला करते हैं व उनकी शरण में आए कुकर्मी, पापी, कामी, अधर्मी व्यक्तियों को भी क्षमा कर देते हैं व उन्हे सन्मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करते हैं