सनातन धर्म में 33 कोटि देवी देवताओं को माना जाता है जिसमें से सभी देवी-देवता जब भी कभी पृथ्वी पर संकट पड़ता है, तो अवतरित होकर अपने भक्तों की मुसीबतों से रक्षा करते हैं। तत्पश्चात उनके अवतरण दिवस व उनके द्वारा किए गए शुभ कर्मों को यहां पर्व त्योहार आदि के रूप में मनाया जाने लगता है। इसी प्रकार भगवान विष्णु के अनेकों अवतारों में से एक महत्वपूर्ण व छबीला अवतार श्री कृष्ण का अवतार रहा है। श्री कृष्णा के जन्मोत्सव को जन्माष्टमी पर्व के नाम से जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म वृंदावन में हुआ था। वृंदावन भारत की अत्यंत प्राचीन धरोहरों में से एक है। इसे न सिर्फ भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि, अपितु कर्म भूमि कहकर भी संबोधित किया जाता है।
इस वर्ष भगवान श्री कृष्ण का जन्म महोत्सव 12 अगस्त 2020 को मनाया जाने वाला है। हर वर्ष श्री कृष्ण का जन्मोत्सव वृंदावन के साथ-साथ संपूर्ण विश्व भर में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। फूल, फल, मेवा, मिष्ठान, माखन मिश्री आदि का भोग लगाया जाता है जिसे सभी लोगों में बांटा जाता है। इस खुशियों के त्यौहार पर वृंदावन एवं अन्य कई स्थानों पर दही हांडी की भी प्रथा है। श्री कृष्ण बाल्यावस्था में अत्यंत ही मनमोहक व छबीले थे, उनके रूप गुण व कर्म के सभी कायल है।
तो चलिए आज हम आपको बताते हैं भगवान श्री कृष्ण के जीवन काल से जुड़े तीन रोचक कथाओं के संबंध में। वैसे तो हम सभी जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने अनेकों बाल लीलाएं व संघार के साथ-साथ सुंदर कृत्य भी किए हैं। उन्ही अनेकों में से तीन खास कथाओं के संबंध में आज हम आपको यहां बता रहे हैं।
1.
श्री कृष्ण का जन्म मथुरा यानी उसके मामा कंस की नगरी में हुआ था। किंतु उन का भरण पोषण व लालन-पालन वृंदावन की नगरी में यशोदा मैया द्वारा किया गया। दरअसल भगवान श्री कृष्ण देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र थे। देवकी और वासुदेव के अन्य 7 संतानों को कंस द्वारा मार दिया गया था। दरअसल कंस देवकी का भाई था जिसने अपनी बहन देवकी का विवाह वसुदेव के साथ करवाया था। विवाह के तुरन्त पश्चात ही एक आकाशवाणी हुई जिसमें यह कहा गया कि देवकी और वसुदेव की संतान द्वारा ही कंस का वध काल द्वारा तय किया गया है। कंस को यह बात रास ना आई, वह अत्यंत ही पापी व दुष्कर्मी था। उसने अपनी बहन देवकी और उसके पति वसुदेव को कारावास में रख दिया। तत्पश्चात उनके द्वारा उत्पन्न सभी संतानों का वो वध करता रहा जिसमें आठवीं संतान यानि भगवान श्री कृष्ण का जन्म आधी रात को हुआ था। चूंकि श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार थे, इसलिए उन्होंने अपनी मायाजाल से सभी कारावास के संतरियों को गहरी नींद में सुला दिया। उस रात काफी घनघोर बारिश हो रही थी, यमुना का जल उफान पर था। तत्पश्चात वासुदेव ने श्री कृष्ण को एक टोकरी में लेकर अपने सर पर लेकर अपने मित्र नंद के घर नंद गांव चल दिए। इस बीच में यमुना नदी भगवान श्री कृष्ण के चरण छूने को उतारू थी। यमुना का उफान टोकरी तक पहुंचने की चेष्टा कर रहा था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने भी टोकरी से एक चरण बाहर कर दिए और यमुना नदी का स्पर्श किया। यमुना नदी का भगवान श्री कृष्ण के चरणों से स्पर्श होते ही उसका जलस्तर घट गया। तत्पश्चात वासुदेव सुगमता पूर्वक अपने मित्र नंद के घर नंदगांव जाकर अपने पुत्र को उनकी देखरेख में छोड़कर वापस कारावास चले आते हैं।
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2.
श्री कृष्ण द्वारा की गई अनेकों बाल लीलाएं अत्यंत ही प्रचलित व मनमोहक रही है। इस दौरान भगवान श्री कृष्ण ने अनेकों दैत्य व राक्षसों का वध भी किया है। दरअसल जब कंस को वासुदेव द्वारा किए गए कृत्यों के संबंध में सूचना मिली तो उस से ने श्री कृष्ण को मारने हेतु अनेक व्यक्तियों व दानवों को उनके समीप यानी नंद गांव भेजा जिसमें से प्रथम राक्षसी पूतना थी। पूतना भगवान श्री कृष्ण के बाल्यकाल में उन्हें विष पिलाकर उनका वध करने की योजना के साथ आई थी। किंतु भगवान श्री कृष्ण ने उनका अपने घर के समीप ही वध कर दिया एवं स्वयं के साथ-साथ अन्य ग्रामीणों की भी रक्षा की। तत्पश्चात कंस आग बबूला हो गया। फिर उसने और भी अनेकों राक्षसों को भेजकर व अन्य अनेकों षड्यंत्रों के माध्यम से श्री कृष्ण को मारने की साजिश से करने लगा, किंतु वह अपने हर कोशिश में नाकामयाब रहा और अंततः भगवान श्री कृष्ण ने बुराई पर विजय हासिल करते हुए कंस का वध किया एवं मथुरा वासियों को कंस के अत्याचार से मुक्त करवाया।
3.
कान्हा और राधा के प्रीत की कथा व गाथा तो हर कोई गाता है। उनके प्रेम को अमर प्रेम में से एक माना जाता है। हालांकि भगवान श्री कृष्ण बचपन से ही बहुत शरारती व नटखट थे, वे नंद गांव की हर गोपियों को छेड़ा करते थे और उन्हें परेशान किया करते थे। कान्हा को माखन बहुत पसंद था। तो वे हर घर में माखन खाने को चोरी करने भी जाया करते थे। वे गोपियों को परेशान करने हेतु उनकी गगरी भी फोड़ दिया करते थे, किन्तु इन सभी के बावजूद भी कान्हा और राधा के प्रेम की कथा पूरे संसार भर में प्रचलित है। ऐसा माना जाता है वृंदावन के एक नदी के किनारे राधा और कान्हा नित्य प्रतिदिन मिला करते थे। बल्कि ऐसा कहा जाता है कि आज भी श्री कृष्ण और राधा रानी उसी यमुना किनारे के पास वाले क्षेत्र में वृंदावन नगरी में मिलने आया करते हैं। वृंदावन और मथुरा में ऐसी अनेकों कथाएं प्रचलित है जो आप के मन को मोह लेगी, ऐसे अनेकों स्थान हैं जो व्यक्ति को भाव विभोर कर देंगे। जन्माष्टमी के दिन पूरे मथुरा में बड़े ही धूमधाम से त्योहार मनाया जाता है। मथुरा की हर गली फूलों से सजी होती है एवं अनेकानेक झांकियां कृष्ण के मनमोहक रूपों से भरी होती है। भगवान श्रीकृष्ण को जन्माष्टमी पर यहां भोग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जन्माष्टमी के अवसर पर वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण से जो भी मुराद मांगी जाती है, वह अवश्य ही पूरी होती है।