बुधवार का दिन भगवान श्री गणेश का माना जाता है। इस दिन भगवान गणपति की पूजा आराधना होती है। श्री गणेश के पूजन का विशेष महत्व महाराष्ट्र में दृश्यमान होता है। महाराष्ट्र के आदि देव गणपति हैं।
श्री गणपति भगवान शिव एवं माता पार्वती के पुत्र हैं। गणेश जी विशेष वरदान एवं आशीष से अभिसिंचित हैं। इनकी पूजा सभी देवों में सर्वप्रथम की जाती है। किसी भी पूजन का कर्म तब तक सफल नहीं माना जाता, जब तक इसे भगवान श्री गणेश की पूजा आराधना से आरंभ ना किया गया हो।
ज्योतिष शास्त्र एवं धर्म ग्रंथों के अनुसार बुधवार के दिन भगवान श्री गणेश की पूजा आराधना करने से जातक के सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है एवं जीवन में सदैव शुभ-लाभ व मंगल बना रहता है। हालांकि बुधवार के दिन गणेश जी के अतिरिक्त भगवान श्री कृष्ण की भी पूजा आराधना एवं आरती का विशेष महत्व है। इस दिन कृष्ण भगवान की आरती भी की जाती है।
तो आइए जानते हैं सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश के पूजा आराधना की विधि तत्पश्चात बुधवार हेतु मंत्र, जप एवं आरतियां-
इस विधान को केवल बुधवार की पूजा के लिए ही नहीं अपितु हमेशा के लिए गांठ बांध लें। किसी भी पूजन कर्म में सर्वप्रथम गणेश की पूजा आराधना की जाती है, उन्हें आवाहित कर उनकी स्थापना की जाती है। तत्पश्चात ही किसी अन्य देव की पूजा की जाती है अन्यथा वह पूजा सफल नहीं मानी जाती है।
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श्री गणेश जी के इस मंत्र में उनकी गुणों का बखान किया गया है। इस मंत्र का उच्चारण बुधवार के दिन कम से कम 11 बार अवश्य करें।
ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।
अगर आपके काम आए दिन बिगड़ते जा रहे हैं, तो आप बुधवार के दिन उक्त मंत्र का 11 बार पाठ करें।
त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय।
नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्।।
गणेश जी की कृपा पात्र बनने हेतु गणेश गायत्री मंत्र अत्यंत ही प्रचलित एवं अचूक मंत्र माना जाता है, अतः इसका नित्य प्रतिदिन 108 बार जप अवश्य करें।
ऊँ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।
अगर आप मानसिक तनाव परेशानियों से गुजर रहे हैं, तो आप बुधवार के दिन 11 बार इस मंत्र का उच्चारण करें। कोशिश करें कम से कम 3 बार इस मंत्र का उच्चारण प्रतिदिन सुबह अवश्य करें।
गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥
विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्॥
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत् क्वचित्
अगर आपके घर के ऊपर ग्रह दोषों के साए मंडरा रहे हैं, आये दिन आपकी जिंदगी में कुछ ना कुछ समस्याएं आती रहती है, तो आप इस मंत्र का नियमित पांच बार उच्चारण अवश्य करें।
णपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।
नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक:।।
धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।
गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम्।।
बुधवार को उक्त मंत्र का जप करने से भगवान गणेश आपके जीवन के सारे कष्ट बाधाओं को हर लेते हैं एवं शुभ फल प्रदान करते हैं। इस मंत्र का कम से कम 21 बार उच्चारण अवश्य करें।
गजाननं भूत गणादि सेवितं कपित्थ जम्बू फल चारूभक्षणं।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्रेश्वरपादपंकजम।।
बुधवार को उक्त मंत्र का जप करने से श्री गणेश आपकी बौद्धिक क्षमता को विकसित करते हैं, साथ ही जीवन के सभी तनाव को समाप्त करते हैं। इस मंत्र के जप से आपकी समझ एवं बौद्धिकता में वृद्धि होती है जिससे लोग आपका मान-सम्मान करते हैं।
ॐ नमो विघ्नहराय गं गणपतये नम:।
इसके अतिरिक्त आप इस मंत्र जप कर भी गणेश जी के कृपापात्र बन सकते है।
गजानंद एकाक्षर मंत्र गजानंद एकाक्षर मंत्र ‘’ऊँ गं गणपतये नमः।।‘’
बुधवार के दिन की जाने वाली आरतियों के संबंध में भगवान श्री गणेश के साथ-साथ कृष्ण की भी आरतियां समाहित है। माना जाता है कि इस दिन दोनों देवताओं की आरती करने से जीवन में सदैव सुख-शांति एवं समृद्धि बरकरार रहती है। आज के दिन आप अपनी पूजन की क्रिया संपन्न करने के पश्चात भगवान श्री गणेश एवं श्री कृष्ण की आरतियां भी अवश्य करें।
श्री गणेश की आरती कर पूर्व इस स्तुति का उच्चारण करें।
व्रकतुंड महाकाय, सूर्यकोटी समप्रभाः।
निर्वघ्नं कुरु मे देव, सर्वकार्येरुषु सवर्दा।।
ॐ गजाननं भूंतागणाधि सेवितम्, कपित्थजम्बू फलचारु भक्षणम्।
उमासुतम् शोक विनाश कारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्।।
श्री गणेशजी की आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जा की पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदन्त दयावन्त चार भुजाधारी।
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी।।
अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा...
पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा।।
'सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा...
श्री कृष्णा आरती
आरती युगल किशोर की कीजै,
तन-मन-धन, न्योछावर कीजै।। टेक।
गौर श्याम सुख निरखत रीझै,
हरि को स्वरूप नयन भरी पीजै।।
रवि शशि कोटि बदन की शोभा।
ताहि निरिख मेरो मन लोभा।।
ओढ़े नील पीत पट सारी,
कुंज बिहारी गिरवर धारी।।
फूलन की सेज फूलन की माला,
रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला।।
मोर-मुकुट मुरली कर सोहे,
नटवर कला देखि मन मोहे।।
कंचन थार कपूर की बाती,
हरि आए निर्मल भई छाती।।
श्री पुरुषोत्तम गिरवरधारी,
आरती करें सकल ब्रजनारी।।
नंदनंदन ब्रजभान किशोरी,
परमानंद स्वामी अविचल जोरी।।