श्री गणपति जी अर्थात गणेश भगवान को हिंदू धर्म की मान्यताओं में प्रथम पूजनीय कहा गया है, अर्थात देवताओं में सबसे पहले जिनकी पूजा की जाती है, वह हैं श्री गणेश।
हिंदू धर्म में किसी भी विशेष कार्य एवं शुभ काम को हाथ लगाने से पहले गणपति जी की पूजा आराधना की जाती है। गणपति पूजा का विशेष महत्व भी है। भगवान शिव एवं माता पार्वती के पुत्र के रूप में विराजमान गणेश जी को विघ्नहर्ता, एकदंत, वृकोदर, लंबोदर इत्यादि कई नामों से जाना जाता है।
भगवान श्री गणेश की पूजा विशेषकर गणेश चतुर्थी के दिन की जाती है। क्योंकि गणेश जी को एकदंत और लंबोदर कहा जाता है, तो आपको यह बात भी बता दें की गणेश जी को अपने इन्हीं दो स्वरूपों के कारण विवाह में कई समस्याओ का सामना करना पड़ा था।
विवाह में आने वाली कठिनाई के कारण श्री गणपति बहुत रुष्ट थे, और इसी वजह से वह किसी और देवता का भी विवाह होते नहीं देखना चाहते थे। अपना विवाह ना होता पाने के कारण वह दूसरों के विवाह में भी विघ्न डालने लगे थे। इसीलिए कथाओं में उल्लेखित है कि अंत में माता तुलसी ने गणेश जी को दो विवाह करने का श्राप दिया और ब्रह्मा जी ने जानबूझकर ऐसे सहयोग रच दिए कि उन्हें दो विवाह करने ही पड़े।
आइये जानते हैं श्री गणेश जी के विवाह से जुड़ी कुछ रोचक बातें
लोक कथाओं में सुनने को मिलता है कि जब माता पार्वती का आदेश का पालन करते हुए श्री गणेश ने भगवान शिव के द्वार से पार नहीं जाने दिया था, तो उन्होंने क्रोध में आकर उनका सिर धड़ से अलग कर दिया था। बाद में माता गौरी के प्रकोप से बचने के लिए उन्हें हाथी के बच्चे का सिर लगाने का उपाय निकला, और तब से ही गजमुख होने के कारण उनकी विशेषता उनके दांतो से जानी जाने लगी।
परंतु एक बार भगवान परशुराम जब कैलाश पर भगवान शिव और माता पार्वती से मिलने की इच्छा रखते हुए उनसे आग्रह करने पहुंचे, तो श्री गणेश ने अपने माता-पिता के आदेश का पालन करते हुए उन्हें उनके पास जाने से रोका। और इस अपमान के कारण भगवान परशुराम ने गुस्से में आकर अपने अस्त्र से उनका एक दांत काट दिया, और तभी से ही भगवान श्री गणेश को एकदंत या वक्रतुंड भी कहा जाता है।
उनके इसी स्वरूप को देखते हुए कोई भी कन्या उनसे विवाह नहीं करना चाहती थी और इस बात से क्रोध में तिलमिलाए गणपति अपनी सवारी मूषक के साथ देवताओं के विवाह में पहुंचकर उधेड़बुन मचाने लगते थे। जब यह बात त्रिदेवों एवं त्रिदेवियों को पता चली इसका कुछ समाधान निकालने की योजना बनाई।
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उसी क्षण ब्रह्मा जी ने इस समस्या के समाधान हेतु अपनी दोनों पुत्रियों रिद्धि और सिद्धि को शिक्षा प्राप्त करने के लिए गणेश जी के पास भेज दिया और इस प्रकार गणेश जी दिन भर रिद्धि और सिद्धि को शिक्षा देने में लगे रहते।
जब भी गणपति को पता चलता कि किसी देवता का विवाह होने वाला है, वह उठकर वहां से जाने लगते। और उसी क्षण रिद्धि और सिद्धि बहुत सहजता और चालाकी से उनसे कोई प्रश्न पूछने लग जातीं, जिसके कारण उनके प्रश्नों का उत्तर उसी क्षण देना गणपति जी के लिए आवश्यक हो जाता था। इस प्रकार गणेश जी का ध्यान अन्य देवताओं से हटकर अन्य कार्यों में लगने लगा, और उधर देवताओं का विवाह बिना किसी मुश्किल के होने लगा।
जब तक कि गणेश जी को ब्रह्मा जी के द्वारा रचे गए इस षड्यंत्र का पता चलता, उसके पहले ही ब्रह्मा जी ने रिद्धि और सिद्धि से विवाह करने के लिए गणेश जी के सामने एक प्रस्ताव रख दिया। गणेश जी की स्वीकृति प्राप्त होते ही उनका विवाह रिद्धि और सिद्धि से हो गया जिसके पश्चात उन्हें शुभ और लाभ नमक दो ओजस्वी और तेजस्वी पुत्रों की प्राप्ति हुई।
इस कथा के बावजूद कथाओं में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि माता तुलसी ने भगवान गणेश को श्राप दिया था कि उनके दो विवाह होंगे।
आखिरकार तुलसी माता ने उन्हें यह श्राप क्यों दिया था?
पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि भगवान श्री गणेश की आभा से मोहित होकर तुलसी जी ने उन्हें विवाह का प्रस्ताव दिया था और जब माता तुलसी यह प्रस्ताव उनके सामने लेकर गई थी, भगवान गणेश अपनी घोर तपस्या में लीन थे। उन्होंने तुलसी जी की बात पर ध्यान ना देते हुए विवाह का प्रस्ताव ठुकरा दिया। इस बात से रुष्ट एवं क्रोधित माता तुलसी ने भगवान गणेश को यह श्राप दिया कि भविष्य में उनको दो विवाह करने की स्थिति बन जाएगी। कहा जाता है कि यही कारण है गणपति के दो विवाह होने का।
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ज्ञातव्य हो कि प्राचीन युग में कोई भी वरदान या श्राप मिथ्या नहीं जाया करता था। आखिरकार तुलसी जी का यह श्राप भी तो फलीभूत होना ही था जिसके कारण ब्रह्मा जी को रिद्धि और सिद्धि की शिक्षा का षड्यंत्र व्यूह रचना पड़ा। इसके पश्चात ही इन दोनों संयोगों को मिलाकर भगवान गणेश रिद्धि और सिद्धि दोनों बहनों को ही पति के रूप में प्राप्त हुए।
पौराणिक तथ्यों के अलावा कथाओं में तो यह भी वर्णित है कि क्योंकि भगवान गणेश को बुद्धि का प्रतीक माने जाते हैं, और ऋद्धि-सिद्धि शुभदा और विवेक का प्रतीक हैं, और जब तक बुद्धि के साथ धैर्य, विवेक, एवं शुभता का संयम या अंकुश न हो, बुद्धि संयमित और नियंत्रित रूप में स्थापित नहीं हो सकती। और यही कारण है कि भगवान शिव ने सभी देवताओं की सहमति से इन तीनों गुणों को एक साथ रखने का विचार किया, जिसके बाद ही गणेश जी का विवाह रिद्धि और सिद्धि से होना तय हुआ था।
अनंत काल से लेकर अब तक हमारे देश ही क्या, बल्कि दुनिया भर में रिद्धि-सिद्धि एवं गणेश तीनों की पूजा एक साथ की जाती है। ऐसी मान्यता है कि तीनों गुणों एवं शक्तियों की पूजा एक साथ करने से दैवीय गुणों के लाभ की प्राप्ति होती है।