जाने विघ्नहर्ता गणेश जी के अंगों का रहस्य

Know secret of Lord Ganesha's body parts

सनातन धर्म में कोई भी पूजा, अनुष्ठान आदि के आरंभ में सर्वप्रथम गौरी के पुत्र लंबोदर, गजकर्ण गणेश जी का स्मरण व पूजन करते हैं। यह देश में ही नहीं विश्व भर में लोकप्रिय व सर्व प्रचलित हैं। इनका जन्म दिवस गणेश चतुर्थी के रूप में दूर- दराज गांव-गांव में विश्व तक बहुत ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। देश-विदेश चँहु ओर सिर्फ गुलाल ही गुलाल व उत्सव देखने को मिलते है। इस सुभ अवसर पर सभी जन भगवान गणेश के चरण स्पर्श कर, अपने सभी बिगड़े कार्यों को पूर्ण करने हेतु मनोकामना और मन्नत मांगते हैं। कहते हैं कि वह अपने शरीर के जरिए अपने भक्त गणों को कई संदेश देते हैं। जिस प्रकार उनकी चार भुजाएं पूरी सृष्टि में व्याप्त होती है, उनकी आंखें दूर दृष्टि का सूचक है , इसी प्रकार अन्य शारीरिक अंग भी कई संदेश देते हैं। तो आइये आज इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे श्री गणपति से जुड़े विभिन्न अंग अथवा तत्वों द्वारा दिए जाने वाले सन्देश के बारे में।

सूंड - सचेत करने का सन्देश देती है

गणेश जी सबसे लोकप्रिय वह सर्वविदित देवताओं में से एक हैं। इनके शरीर पर सूंड बुद्धिमत्ता का प्रतीक मानी जाती है। इन्हें संपूर्ण जगत के देवताओं में सबसे अधिक ज्ञानी कहा गया है। वे बुद्धि, विवेक, सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य आदि के कारक माने जाते हैं। कहते हैं कि वे सूंड के माध्यम से सूंघकर आसपास के माहौल को जान लेते हैं जिस प्रकार घर में उपस्थित कोई भी पालतू जानवर अपने घर के व्यक्ति व बाहर के व्यक्ति में आसानी से भेद कर लेता है। गणेश जी की सूंड का भारतीय संस्कृति में अधिक महत्व बताया गया है। कहते हैं कि जो भी साधक इनकी बांयी ओर मुड़ी हुई सूंड की पूजा करता है, उसे सुख-समृद्धि, यश, बल की प्राप्ति होती है अथवा जो भी साधक दाईं ओर मुड़ी हुई सूंड की पूजा करता है, उसे जीवन में शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। शास्त्रों के अनुसार साधक अपनी आवश्यकतानुसार गणेश जी की पूजा करता है।

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लम्बोदर - विपरित परिस्थिति में प्रसन्नता का संकेत

गणेश जी को हम विभिन्न नामों से संबोधित करते हैं। उनके लंबे उदर होने के कारण, उनका एक नाम लंबोदर भी है। ये जीवन में सुख शांति व प्रसन्नता का प्रतीक है। गणेश जी अपनी सभी अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों को अपने उदर में समाहित कर लेते हैं इसलिए हमेशा प्रसन्न रहते हैं। ये अपने हर कार्य का बहुत ही सावधानी पूर्वक निर्णय लेते हैं। भगवान गणेश के लंबे उदर से यह संदेश मिलता है कि हमें सम-विषम परिस्थितियों में स्वयं उनका सामना कर बहुत ही बुद्धिमत्ता पूर्वक निर्णय लेना चाहिए व उस पर अमल करना चाहिए। यही एकमात्र मार्ग है जिसके द्वारा हम जीवन में सुख समृद्धि प्रसन्नता प्राप्त कर सकते हैं व सदैव सुकून अपने जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

बड़े कान- हर बात को सुनने का संदेश

गणेश जी को हम गजकर्ण के नाम से भी जानते हैं। कहते हैं कि जिस व्यक्ति के कान जन्म से ही लंबे व बड़े होते हैं, वह बहुत ही सौभाग्यशाली होते हैं। गणेश जी के कान पारदर्शिता के कारक हैं। वे सुप के समान जन की वार्ता को सुनकर महत्वपूर्ण बात को ग्रहण करते हैं और बाकी को कूड़े कचरे के सामान बाहर फेंक देते हैं। इसी प्रकार मानव को सार ग्रहण करना चाहिए व प्रत्येक व्यक्ति के भाव को सुनना चाहिए, किंतु अपने निर्णय स्वयं से ही अन्तः संतुष्टी से करना चाहिए। हमारी बुद्धिमत्ता इसी में है कि हर व्यक्ति को सुनकर उसमें से किस प्रकार हीरे सी बात को धारण कर सकते हैं।

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मोदक - ब्रह्म शक्ति का प्रतीक

गणेश जी के हाथ में व सूंड के अगले भाग में मोदक होता है। मोदक उन्हें सबसे अधिक प्रिय है। वे हर परिस्थिति में उसका भोजन करते हैं । मोदक ब्रह्मशक्ति का प्रतीक माना गया है। कहते हैं कि जिस प्रकार मोदक में डाली हुई सामग्री उसमे इस प्रकार सम्मिलित होती है कि बनने के उपरांत उसमें क्या सामग्री प्रयोग की गई है, यह बताना असंभव होता है, ठीक उसी प्रकार ब्रहम शक्ति हमारे शरीर में उपस्थित होते हुए भी हमें दिखाई नहीं देती। इसीलिए ब्रह्मशक्ती व बुद्धिमता को माया से निर्मित माना गया है।

चंचल मन - अंकुश का प्रतीक

हाथ में धारण किए हुए पाश के माध्यम से गणेश जी हमें अंकुश लगाने का संकेत देते हैं। आज के भौतिकवादी युग में अंकुश का अधिक महत्व है। आज मानव सिर्फ भौतिक सुख साधनों को एकत्र करने में तत्पर रहता है, उसकी अपेक्षाओं की सामग्री इतनी अधिक है कि वह उसके पीछे जी जान से दौड़ रहा है। इसलिए जीवन में अंकुश का अधिक महत्व है। इसी प्रकार हमें अपने मन पर अंकुश लगाकर एकाग्रचित्त तरह से पढ़ने हेतु तत्पर रहना चाहिए अर्थात कार्यक्षेत्र में सफलता व उन्नति प्राप्ति हेतु मन पर अंकुश आवश्यक है। आज जन में कुकर्म, अधर्म, के बीच मानव उस ओर प्रेरित हो रहा है, उसे अपनी बुराइयों और कुकृत्यों पर अंकुश लगा अपने अंतःकरण को शुद्ध करना चाहिए।

एकदंत - अपूर्णता में संतुष्टी का सन्देश

गणेश जी अपूर्णता में भी पूर्ण होने का साहस लिए सदैव प्रसन्न रहते हैं। बालकाल में ही परशुराम जी से युद्ध के मध्यान्त, उनके फरसे से गणेश जी के एक दांत की क्षति हो गयी थी, उस दिन से वे एकदंत हो गए थे। किंतु अपनी अपूर्णता को कभी भी किसी के सम्मुख नहीं रखते हैं। उन्होंने अपने टूटे हुए दांत की सहायता से पूरे महाभारत ग्रंथ की रचना कर डाली व इससे जन को यह संदेश देते हैं कि आपके पास जो भी संसाधन मौजूद हैं, आप उनमें संतोष रखना चाहिए जिससे आपको अंतर्मन से सुख प्राप्त हो और प्रसन्नचित्त होकर अपनी सभी परिस्थितियों का सामना कर सकेंगे।

वर मुद्रा - आनन्द प्राप्ती का संकेत

वर मुद्रा को सातो गुणों का प्रतीक माना जाता है। वे सदैव इसी मुद्रा में आसीन रहते हैं। इसके माध्यम से वे अपने भक्तों के सभी विघ्नों व प्रतिकूल परिस्थितियों का हरण करते हैं और उनकी सभी अपेक्षाओं व कामनाओं को पूर्ण करते हैं। कहते हैं कि जो भी साधक विघ्नहर्ता, गजकर्ण, लंबोदर भगवान गणेश जी की आराधना करता है, उसे तीनों गुण स्थापित रज, सत व तमोगुण से कई गुना ऊपर एक गुण रूप में स्थापित है जिसको हम आनन्द कहते हैं, उसकी प्राप्ति होती है जिसके द्वारा मानव हमेशा प्रसन्नचित्त होकर अपने सभी कष्टों को भूलकर हंसी-खुशी अपना जीवन यापन करता है।