हिंदू धर्म में अनेकानेक प्रकार की धार्मिक कथाएं प्रचलित है। माना जाता है कि हिंदू धर्म में हर एक तथ्य, हर एक प्रश्न एवं सभी परिस्थितियों के उत्तर एवं जटिल से भी जटिल समस्याओं के निदान निहित है। इसी प्रकार भारत में लगने वाले कुंभ मेले के संबंध में भी पौराणिक ग्रंथों में कुछ विशिष्ट प्रमाण के साथ कथाएं बताई गई है।
कुंभ का शाब्दिक अर्थ कलश अर्थात घड़ा है। दरअसल जब प्राचीन काल में क्षीर समुद्र का मंदार पर्वत और वासुकि नाग की सहायता से देवता गण एवं दानवों के द्वारा मंथन किया गया था, तब इस समुंद्र से कुल 14 प्रकार के रत्नों की प्राप्ति हुई थी जिनमें से 13 रत्नों को देवता एवं दानवों ने साझेदारी के साथ आपस में बांट लिया। किंतु इन 14 मूल्यवान वस्तुओं में एक अमृत का कलश भी प्राप्त हुआ था।
अमृत के कलश में मौजूद अमृत तत्व से कोई भी प्राण सदा-सर्वदा हेतु अमर हो सकता था, अतएव इस अमृत कलश को लेकर देवताओं और दानवों के बीच झड़प हो गई। अंततः युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई। अमृत को देवता गण दानवों के साथ किसी भी सूरत में साझा नहीं करना चाहते थे। वह इसके होने वाले भविष्य में भयावह परिणाम से परिचित थे। अतः वे किसी भी तरीके से दानवों से अमृत को बचाने की कोशिश में जुटे थे। इसके लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया एवं दानवों को चकमा देते हुए अमृत कलश उनसे ले लिया।
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विष्णु के मोहिनी स्वरूप ने यह अमृत कलश देवराज इंद्र के पुत्र जयंत को सौंप दिया। जब दानवों को विष्णु के मोहिनी स्वरूप का भान हुआ एवं जयंत के पास अमृतकलश होने की तथ्य का ज्ञात हुआ, तो वे जयंत के पीछे अमृत कलश की प्राप्ति हेतु लग गए। जयंत अमृत कलश को दानवों से बचाने हेतु उनसे दूर भागने लगे, इसी दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें पृथ्वी लोक पर गिर गई। यह बूंदे पृथ्वी लोक के चार स्थानों पर गिरी वे पहला हरिद्वार, दूसरा प्रयाग, तीसरा नाशिक तथा चौथा उज्जैन माने जाते हैं। यह बूंदे हरिद्वार की गंगा नदी में, प्रयाग की भी गंगा नदी के धाराओं में, वही नासिक के गोदावरी नदी में तथा उज्जैन के क्षिप्रा नदी में जा गिरी।
यह सभी नदियां प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से गंगा का ही स्वरूप है। अतएव तब से ही पृथ्वी लोक पर इन 4 नदियों में हर 12 वर्ष पर कुंभ के मेले का आयोजन होने लगा।
आपके मन में अवश्य ही यह प्रश्न उठ रहा होगा कि इसके लिए 12 वर्ष की अवधि क्यों निहित की गई है। दरअसल धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पृथ्वी लोक का 1 वर्ष देवताओं के लिए 1 दिन के समान है। चूँकि जयंत इस अमृत कलश को लेकर स्वर्ग लोक में 12 दिनों में पहुंचे थे, अतएव पृथ्वी लोक पर इसे 12 वर्ष के रूप में मान्य किया गया है। यही कारण है कि एक बार के कुंभ मेले के लगने में 12 वर्षों की अवधि का अंतराल होता है। यह हर 3 वर्ष पर बारी-बारी से लगता है, एक बार हरिद्वार में तो अगली बार फिर प्रयाग में तो फिर वही तीसरी बार नाशिक और उसके बाद अंत में उज्जैन में लगकर पुनः हरिद्वार से लगना आरंभ होता है। इन चारों स्थान पर लगने वाले कुंभ में उज्जैन के कुंभ को सिंहस्थ कहा जाता है।
देश के प्रमुख चार स्थानों पर लगने वाले कुंभ के संबंध में आइए जानते हैं अगले आने वाले दिनों में इन चारों स्थानों पर कब से कब तक का कुंभ किस वर्ष में लगने वाला है-
हरिद्वार में कुंभ मेला
हरिद्वार हरि का द्वार माना जाता है। यह अत्यंत पवित्र एवं निर्मम नगरी है। यहां अगले ही वर्ष की 11 मार्च 2021 को कुम्भ आरंभ हो जाएगा। 11 मार्च को कुंभ का पहला स्नान माना जाएगा जो अगले महीने तक चलता रहेगा। तत्पश्चात यह 27 अप्रैल 2021 को समाप्त होगा। आखिरी दिन अर्थात 27 अप्रैल 2021 को हरिद्वार के कुंभ मेले का अंतिम शाही स्नान होगा। हरिद्वार प्रकृति से सराबोर एक सुंदर रमणीय स्थल है। यहां सभी देवी-देवताओं का वास माना जाता है। यहाँ पर लगने वाले कुंभ मेले में अलग ही छटा दृश्य मान होते हैं। हरिद्वार में लगने वाले कुंभ मेले के संबंध में यह कहा जाता है कि इस कुंभ मेले में स्नान करने देवी देवता भी पृथ्वी पर अपने रूप परिवर्तन कर अवतरित होते हैं। अतएव 11 मार्च 2021 से लगने वाले कुंभ मेले में जाने हेतु आप भी योजना अवश्य बनाएं।
प्रयागराज , नासिक तथा उज्जैन में कुंभ की छटा
अगले वर्ष हरिद्वार में कुंभ मेला लगने के अगले 3 वर्ष पश्चात कुंभ मेला प्रयागराज में, फिर अगले 3 वर्ष पश्चात नाशिक में होना है, और उसके अगले 3 वर्ष पश्चात यह उज्जैन में लगेगा। हालांकि इन सभी स्थानों पर अर्ध कुंभ तथा अन्य प्रकार के कुंभ मेले समय-समय पर लगते रहते हैं, किंतु पूर्ण एवं वास्तविक कुंभ जिसके स्नान मात्र से अमृत्व का आत्मा में समावेश होता है, वह कुंभ मेला तीन-तीन वर्ष पर अलग-अलग 4 स्थानों पर लगता रहता है एवं 12 वर्ष में ही एक स्थान पर दोबारा कुंभ मेला लगता है।