सनातनी हिंदू धर्म विशालकाय है। यह अथाह सागर है, जहां मोक्ष के अनेकों भंवर उठते हैं। कहा जाता है जो भी इस में गोता लगाता है, वह अवश्य ही मोक्ष के द्वार तक जा पहुंचता है। हिंदू धर्म में देवों को प्रसन्न करने हेतु अनेकों विधियां हैं, अनेकों प्रकार के मंत्र, तंत्र, ज्योतिष, पूजा-पाठ आदि हिंदू धर्म ग्रंथों में निहित है।
हमारे धार्मिक ग्रंथों में देवी देवताओं की आराधना अथवा उन्हें प्रसन्न करने हेतु विशेष पूजन की कई विधियां हैं, जैसे कि पंचोपचार (5 प्रकार), दशोपचार (10 प्रकार), षोडशोपचार (16 प्रकार), द्वात्रिशोपचार (32 प्रकार), चतुषष्टि प्रकार (64 प्रकार), एकोद्वात्रिंशोपचार (132 प्रकार) आदि आदि।
इन सभी विधियों में सबसे अधिक सरल, सुगम एवं प्रचलित विधियां पंचोपचार पूजन एवं षोडशोपचार पूजन हैं। प्राय हमारे घर में मंदिरों में अथवा किसी विशेष शुभ कर्म में किए जाने वाले पूजन उपचार की विधि पंचोपचार व षोडशोपचार ही होती है।
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तो चलिए आज हम जानते हैं, पंचोपचार पूजन विधि के संबंध में विस्तृत जानकारी एवं पूजन करने के विधि-विधान व अर्थ -
पंचोपचार पूजन विधि को पंचोपचार इसलिए कहा जाता है कि क्योंकि इसमें पांच प्रकार से भगवान का उपचार पूजन किया जाता है। आइए जानते हैं इन 5 प्रकार से भगवान के पूजन का विधि विधान-
1. सर्वप्रथम देवी देवताओं को अर्थात चंदन लगाने का भाव करते हुए हल्दी कुमकुम आदि को अपनी अनामिका उंगली (कनिष्ठा के समीप के उंगली से) देवी-देवताओं की प्रतिमा पर तिलक करना चाहिए। तिलक करने के पश्चात दाएं हाथ के अंगूठे और अनामिका के बीच चुटकी भर हल्दी लेकर भगवान के चरणों में अर्पित करें। कुमकुम का भी अर्पण करें।
2. देवी देवताओं को गंध अर्थात चंदन का अर्पण करने के पश्चात पल्लव अर्थात पत्र व पुष्प चढ़ाना चाहिए। ध्यान रहे देवी देवताओं को चढ़ाए जाने वाले पुष्प पल्लव कागज और प्लास्टिक के न हो यानी कि कृत्रिम ना हो, भगवान को चढ़ाए जाने वाले पुष्प ताजे एवं सात्विक होते हैं। देवताओं को पुष्प चढ़ाने के पूर्व पत्र जैसे कि भगवान शिवजी को बेलपत्र, वही गणेश जी को दूर्वा, कलश पूजन में आम के पल्लव आदि भिन्न-भिन्न प्रकार की पत्रों का अर्पण किया जाता है। पुष्प भी देवी-देवताओं के अनुरूप में चढ़ाए जाते हैं, जैसे कि शिवजी को धतूरे का पुष्प (फूल), दुर्गा माता को लाल रंग के पुष्प, भगवान विष्णु को पीले रंग के पुष्प आदि का अर्पण किया जाता है।
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3. पंचोपचार पूजन में पुष्प के पश्चात धूप दिखाने का विधान है। धूप के तौर पर अगरबत्ती अथवा धूमन आदि का प्रयोग किया जाता है। धूप दिखाने में ध्यान रहें कि देवताओं को धूप हाथों से ना फैलाएं। धूप दिखाने हेतु देवी देवताओं की विशिष्ट सुगंधित अगरबत्ती आदि द्वारा आरती उतार देनी चाहिए। जैसे कि शिव जी के लिए हीना तथा श्री लक्ष्मी जी के लिए गुलाब के धूप, धूमन, अगरबत्ती आदि का प्रयोग करना चाहिए। धूप अगरबत्ती आदि दिखाते समय घंटी भी बजाये , इससे देवी देवता जागृत अवस्था में रहते हैं।
4. धूप के पश्चात दीप जलाएं एवं आरती करें। आरती में घी अथवा सरसों के तेल का प्रयोग करें। आरती के समय भी आप बाएं हाथ से घंटी बजाएं अथवा शंखनाद करें। दीप जलाने में इन बातों का ध्यान रहें कि कभी भी एक दीप से दूसरा दिन नहीं जलाया जाता है और ना ही तेल के दीपक से घी के दीए जलाए जाते हैं। साथ ही एक ही बत्ती का एक बार से अधिक बार आरती हेतु प्रयोग करना भी शुभ नहीं माना जाता है।
5. पंचोपचार पूजन विधि में अगली और आखरी उपचार विधि नैवेद्य समर्पित करने की होती है। नैवेद्य अर्थात मेवा, मिष्ठान, मिठाई आदि। नैवेद्य पदार्थ के निर्माण में सात्विकता बरतना अत्यंत आवश्यक माना जाता है। इसमें शुद्ध पदार्थों का प्रयोग करें। कोशिश करें कि इसे बाहर से मंगवाने की जगह घर में ही तैयार किया जाए।
नैवेद्य में अर्पित होने वाली वस्तुओं से अधिक महत्व उसकी शुद्धता का होता है। इसमें नमक, मिर्च अथवा अन्य तामसिक पदार्थों का स्पर्श मात्र भी इन्हें अपवित्र कर देता है। अतएव इनकी पवित्रता एवं स्वच्छता का ध्यान रखना अत्यावश्यक है। नैवेद्य अर्पण हेतु इष्ट देव से प्रार्थना कर देव प्रतिमा के समीप भूमि पर जल से चोकोर मंडल निर्मित करें। उस पर नैवेद्य की थाली रखकर घड़ी के सुई के घूमने की दिशा में जल से तीन बार फेरा लगाएं। साथ ही मन ही मन या भावना रखें कि हमारे द्वारा अर्पित किया जा रहा नैवेद्य भगवान के भोजन में पहुंच रहा है। ऐसी भावना रखें कि आप अपने हाथों से अपने आराध्य को मेवा मिष्ठान का भोग लगा रहे हैं।
उपरोक्त पूजन विधियों का अनुगमन करने के पश्चात अंत में अपने इष्ट की विधिवत तौर से आरती करें एवं शंखनाद कर कपूर भी जलाएं।