ज्योतिषशास्त्र में नवग्रहों का विशेष महत्त्व है। नव ग्रहों में सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहू एवं केतु की गणना की जाती है। सब नव ग्रहों में राहु और केतु छाया ग्रह के नाम से जाने जाते हैं। जब यह छाया ग्रह अन्य ग्रहों से सम्बंधित होते हैं, तब व्यक्ति के जीवन पर बुरा प्रभाव डालते हैं। इन्ही प्रभावों के आधार पर ऋषि-मुनियों ने इन्हे नैसर्गिक अथवा पापी ग्रह की पदवी दी है। धार्मिक मान्यताओं में केतु को ‘कुजावत’ एवं राहु को ‘शनिवत्’ का नाम दिया गया है। मनुष्यों पर राहु का असर आकस्मिक अथवा तेज गति से होता है। राहु और केतु इंसान की कुंडली में सदैव वक्र गति से गोचर करते हैं। ज्योतिषविज्ञान में राहु को ‘इहलोक’ यानी सुख-समृद्धि से सम्बंधित तथा केतु को परलोक यानी आध्यात्म से सम्बंधित कहा जाता है। राहु ग्रह अगर मानव की कुंडली के तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में हो तो शुभ फल प्रदान करता है। यह सूर्य एवं चंद्रमा का परम बैरी है। राहु यदि शुभ ग्रहों से युति और दृष्टि संबंधित होता है तो यह समस्त प्रकार के सांसारिक, मानसिक और भौतिक-सुख देता है, वहीं अगर यह अशुभ ग्रहों से संबंधित होता है तो बेहद दुखदायी फल प्रदान करता है।
राहु का मनुष्य की कुंडली पर सकारात्मक प्रभाव:
यदि किसी जातक की कुंडली में राहु ग्रह शुभ दशा में है तो उस व्यक्ति के मस्तिष्क में शुभ विचार उत्पन्न होते हैं। इसके सकारात्मक प्रभाव से व्यक्ति समझ के साथ कार्य करता है।
राहु का मनुष्य की कुंडली पर नाकारात्मक प्रभाव:
कुण्डली में राहु की कमज़ोर दशा होने पर व्यक्ति के जीवन में अनेक विपदाएं आ सकती है। जातक को कई मानसिक एवं शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
राहु और चंद्रमा:
राहु और चंद्रमा का सम्बन्ध होने पर जातक के जीवन में मानसिक और शारीरिक विपदाएँ बढ़ जाती हैं जिससे उसे अत्यधिक तनाव का सामना करना पड़ता है। राहु द्वारा ग्रस्त होने होने वाले जातकों की माता को कष्ट झेलना पड़ता है। पारिवारिक कलेश होता है। जातक स्वयं शारीरिक एवं मानसिक संताप से ग्रसित रहता है। वह अनिद्रा और बुरी आदतों का शिकार हो जाता है। ऐसे जातक घर से दूर रहने पर ही ज्यादा सफल होते हैं।
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राहु और मंगल:
राहु और मंगल में युति होने पर अंगारक योग का निर्माण होता है। इसमें शत्रु भय बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में जातक का स्वाभाव उग्र व क्रोधी हो जाता है और वह छोटी-छोटी बात पर चिड़चिड़ा और आक्रामक हो जाता है। इसमें लड़ाई-झगड़ा, संपत्ति-हानि, एवं शारीरिक कष्टों आदि की संभावना बढ़ जाती है।
राहु और बुध:
राहु और बुध की युति होने पर जातक को सिर से संबंधित बीमारियां होने की सम्भावना बढ़ जाती है। उसके व्यवहार में बदलाव आ जाता है तथा पढ़ाई में विघ्न होता है। वह अपने कार्य की पूर्ति हेतु झूठ और बेईमानी का सहारा लेता है। ऐसे जातकों को चर्म एवं पाचन संबंधी रोग होते हैं।
राहु और गुरु:
कुंडली में राहु और गुरु की युति होने पर जातक को अत्यधिक यात्राएं करनी पड़ सकती है। ऐसी युति वाला जातक दीर्घायु होता है और ऐसी युति को ‘गुरु’ चंडाल योग’ कहते हैं। इसमें जातक को धन-विद्या, मान-सम्मान तथा सुख-समृद्धि आदि में अवरोध उत्पन्न होते हैं। इससे व्यक्ति की सोच में परिवर्तन होता है और वह अधार्मिक मार्ग अपनाने लगता है और साथ ही दुखी रहता है।
राहु और शुक्र:
शुक्र एक शुभ ग्रह है। राहु और शुक्र की युति होने पर शुक्र के शुभ प्रभावों पर राहु के अशुभ प्रभाव पड़ने लगते है। इससे ग्रसित व्यक्ति गलत आदतों में पड़ जाता है एवं धर्म के मार्ग से भटकने लगता है। व्यक्ति अपनी विलासिता के लिए अनैतिक साधनों को अपनाने लगता है। फिजूल-खर्ची बढ़ जाती है और यौन सम्बंधित रोग से ग्रसित होना पड़ता है।
राहु और शनि:
राहु और शनि की युति होने पर जातकों में रहस्यमयी कामों को करने की रूचि उत्पन हो जाती हैं। यह गुप्त माध्यमों से एकाएक धनि होने में लग जाते हैं। यह संयोंग अत्यधिक अनिष्टकारी होता है। ऐसे जातक को जीवन में दुख,अवरोध, धन हानि, बीमारी और तिरस्कार का सामना करना पड़ता है।
राहु और सूर्य:
जिन जातकों की कुंडली में राहु और सूर्य की युति होती है, उनके जीवन में परेशानियां शुरू हो जाती है तथा ऐसी युति वाले जातक की आंखों की दृष्टि कमजोर होने लगती है।