हिंदू धर्म की विशाल इमारत मान्यताओं के स्तंभ पर टिकी हुई है। हिंदू धर्म में हर चीज व वस्तु एक विशेष मान्यता रखती है। जिस प्रकार हमारे यहां 7 दिन व राहु केतु का योजन कर नवग्रह माना जाता है, ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की 27 पुत्रियों को 27 नक्षत्रों की संज्ञा दी जाती है, वेदों को धर्मों का सार माना जाता है, 33 कोटि देवी-देवता पूजित होते हैं, प्रतिदिन प्रत्येक देवी देवता की पूजा अर्चना व आराधना की जाती है, ठीक उसी प्रकार हिंदी पंचांग के अनुसार सावन माह का सनातन धर्म में बहुत ही अधिक महत्व है।
सावन माह का आगमन श्रवण नक्षत्र में माना जाता है और चांद को इसका स्वामी माना जाता है, जो कि त्रिकालदर्शी, देवाधिदेव महादेव के शीर्ष पर स्थापित हैं। इसलिए इस माह को शिव भक्तों का माह, मंगलकारी व पवित्रता का माह से जानते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस माह में साधक हृदय पूर्वक शिव की आराधना करते है, व अपनी विषम परिस्थितियों व समस्याओं से मुक्ति प्रदान करते हैं। तत्पश्चात उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और सदा ही भगवान शिव की अनुकम्पा साधक पर विराजमान रहती है।
6 जुलाई से आरंभ हो रहा सावन माह का इस बार बड़ा ही विलक्षण संयोग बन रहा है। इस वर्ष सावन माह का आरंभ भी सोमवार से होगा व समापन सोमवार से ही होगा। हर वर्ष इस माह में सोमवार की संख्या अनुमानन चार होती है, किंतु संयोग से इस वर्ष सावन के माह में 5 सोमवार पड़ रहे हैं। ये संयोग कई वर्षों में एक बार ही आता है। आषाढ माह के अंत के पश्चात् हिंदू पंचांग के अनुसार सावन माह का आगमन होता है। यह माह मेघों का प्रियतम माह माना जाता है क्योंकि इस माह में मेघ जम कर वर्षा करते है, तत्पश्चात वर्षा जीव जगत को प्रकृति का अनुपम उपहार प्रदान करती है।
वन-उपवन में हरियाली, फल-फूल से पूर्ण पेड़-पौधे , कोयल की कूक, नदी-तालाब और झरने, सावन के माह में खिलखिला उठते हैं। इस माह में किसान खेती में जुट जाता है और मनुष्य कल्पनाओं में डूब जाता है और प्रकृति गुनगुनाने लगती है। ऐसा कहते हैं कि प्रकृति पर ऐसा विलक्षण प्रभाव शिव की महिमा का उपहार है, इसलिए इन्हे प्रकृति का देवता भी कहा जाता है।
दरअसल चतुर्मास आरंभ होने के पश्चात भगवान श्री हरि विष्णु 4 महीने के लिए अर्थात चतुर्मास की पूर्ण अवधि के दौरान हेतु विश्राम के लिए क्षीर सागर चले जाते हैं, जिस कारण सृष्टि का संपूर्ण कार्यभार भगवान शिव के ऊपर रहता है, संपूर्ण सृष्टि के पालन पोषण करता इन दिनों भगवान शिव ही होते हैं। चतुर्मास की अवधि के मध्य में सावन का मास आता है जो भगवान शिव की पूजा-उपासना हेतु सर्वोत्तम माना जाता है। इस मास में भगवान शिव को जल, बेलपत्र आदि चढ़ाकर प्रसन्न किया जाता है एवं उनकी विशेष कृपा का पात्र बना जा सकते हैं। सावन का मास माता पार्वती अर्थात आदि शक्ति जगदंबा से शक्ति प्राप्त करने हेतु भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है। कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि सावन का यह माह पुण्य प्रताप का माह है, भगवान शिव के भक्त शिरोमणि में से एक बनने हेतु यह माह अत्यंत ही विशेष है।
सावन में जलाभिषेक का महत्व
इस माह शिव भक्त जलाभिषेक कर अपनी भक्ति को सहृदय पूर्वक शिव को अर्पित करते हैं। ऐसी मान्यता है कि असुरों व देवताओं ने सावन मास में ही समुद्र मंथन किया था जिसमे अमृत के साथ विष भी प्रवाहित हुआ। उस विशाल विष के प्रवाह को भगवान शिव ने अपने कंठ में विष को धारण कर लिया था जिसके पश्चात उनके शरीर का तापमान बहुत अधिक हो गया था। उस तापमान कम करने हेतु देवों ने उन्हें शीतलता प्रदान की, किंतु शिव जी पर उसका कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा। ये सब देख देवराज इन्द्र ने उन पर भारी मेघों की वर्षा का अभीसिंचन किया। इसी प्रकार इस माह में जलाभिषेक का अधिक महत्त्व है।
1) साधक की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति।
2) दांपत्य जीवन की समस्याओं से मुक्ति।
3) विवाह संबंधी समस्याओं से मुक्ति।
4) पितृ दोष से मुक्ति प्राप्त होती है।
5) मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए।
सावन में शिव की आराधना करने की विधि
प्रातः काल उठकर स्वयं को स्वच्छ कर, घर में बने पूजा स्थल को स्वच्छ करना चाहिए। पूजा में उपयोग होने वाले सभी वस्तुओं को अच्छे से शुद्ध करना चाहिए। तत्पश्चात ही हमें शिव की आराधना कर शिव जी का जलाभिषेक करना चाहिए। हमें इस माह के सोमवार को एक समय ही भोजन ग्रहण करना चाहिए और खाने में भोजन भी हल्का ही लेना चाहिए। इस माह में शिवभक्त गंगा नदी के पवित्र जल धारा से जल लाकर देवधिदेव, त्रिकालदर्शी भगवान शिव को श्रद्धा पूर्वक बेलपत्र के साथ अर्पित करते हैं। सभी उचित सामग्री का आयोजन कर विधि पूर्वक भगवान शिव को चढ़ाते हैं। अतः इस माह में याजक को 'ॐ नमः शिवाय' का नित 108 बार जाप करना चाहिए।
सावन माह में ना करें यह कार्य?
1) शिव को ना करें हल्दी से तिलक:- ऐसा माना जाता है कि हल्दी का शाब्दिक अर्थ स्त्री है, और वे कभी भी स्त्री को मस्तक पर धारण नहीं कर सकते, इसलिए उनको हल्दी युक्त तिलक नहीं भाता है।
2) सावन माह में दिन में नींद ना लें:- इस माह में हमें दिन में निद्रा नहीं लेनी चाहिए। इससे हमारी ईश्वर के प्रति श्रद्धा में क्षीणता दिखाई देती है और इसके कई दुष्प्रभाव भी होते है।
3) मांसाहार ग्रहण ना करें:- इस माह में अधिक वर्षा के कारण सभी कीट अपने घरों से मुक्ति प्राप्त करके इस वातावरण में घूमने लगते हैं जिससे वे मांसाहार के सहारे मानव के शरीर में अनेकों रोगों को आमंत्रित करते हैं जो मानव शरीर के लिए हानिकारक है।
4) पत्तेदार सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए:- पत्तेदार सब्जियों में ये बारिश में घूम रहे कीट उनमें छिपने का प्रयास करते हैं और सब्जियों को खराब करते हैं। इसलिए पत्तेदार सब्जियों का सेवन इस माह में वर्जित है।
5) किसी को अनजाने में भी अपमानित नहीं करना चाहिए और ना ही किसी का दिल दुखाना चाहिए:- जिस प्रकार दक्ष प्रजापति को भगवान शिव की निन्दा करने का फल अपनी मृत्यु रूप में प्राप्त हुआ, उसी प्रकार मानव को भी किसी भी व्यक्ति की अनजाने में भी निन्दा या उपहास नहीं करना चाहिए।