भगवान शिव की पूजा के लिए वैसे तो कई सामग्री का प्रयोग किया जाता है, किंतु यदि आपके पास भगवान शिव को चढ़ाने के लिए कुछ भी नहीं है, तो मात्र बेल पत्र की एक पत्ती चढ़ा देने से ही भगवान शिव बहुत प्रसन्न हो जाते हैं। किंतु यदि आपके पास सारी सामग्री होने के बाबजूद बेलपत्र नहीं है, तो ऐसे में भगवान शिव की पूजा को अधूरा माना जाता है। तो आइए जानते हैं कि भगवान शिव को बेलपत्र इतना प्रिय क्यों है-
शिवपुराण में बेलपत्र को भगवान शिव का प्रतीक माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि यदि बेल के वृक्ष के नीचे शिवलिंग रखकर उसकी पूजा की जाए, तो घर में कभी भी कोई दुख या समस्या नहीं होती है और घर में सुख व समृद्धि आती है।
बेलपत्र में तीन पत्तियां होती हैं जिन्हें तीनों देवताओं ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव को आशुतोष भी कहा जाता हैं क्योंकि वे सिर्फ एक बेलपत्र चढ़ा देने से ही बहुत प्रसन्न हो जाते हैं।
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पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शिव ने समुद्रमंथन के समय विष का पान किया था, तब उनके कंठ की जलन को शांत करने के लिए व विष के असर को कम करने के लिए बेलपत्र अर्पित किया गया था। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव को तभी से बेलपत्र चढ़ाया जाने लगा।
बेलपत्र की तीनों पत्तियों को भगवान शिव के तीनों नेत्रों का प्रतीक माना जाता है। इस कारण बेलपत्र का बहुत महत्व है।
स्कन्द पुराण के अनुसार बेलपत्र के वृक्ष की उत्पत्ति माता पार्वती के पसीने की बूंद से हुई। एक बार माता पार्वती ने अपने ललाट का पसीना पोंछकर फेंका, तो उसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर जाकर गिरीं और उन्हीं से बेल के वृक्ष की उत्पत्ति हुई। जैसा कि माता पार्वती के पसीने से बेलपत्र के वृक्ष का निर्माण हुआ, इसीलिए इस वृक्ष में माता पार्वती के सभी रूप विधमान हैं। माँ पार्वती पेड़ की जड़ में गिरिजा के रूप में, तनों में माहेश्वरी, शाखाओं में दक्षिणायिनी तथा पत्तियों में पार्वती के स्वरूप में रहती हैं।
इसके अलावा माता पार्वती बेल के वृक्ष के फलों में कात्यायनी तथा फूलों में गौरी के रूप में निवास करती हैं और इन सभी स्वरूपों के साथ ही पूरे वृक्ष में माता का लक्ष्मी रूप निवास करता है।
बेलपत्र चढ़ाते समय करें इस मंत्र का जाप
बेलपत्र भगवान शिव को बहुत प्रिय है, इसलिए यदि पूरे मंत्रोच्चारण के साथ इसे भगवान शिव को अर्पित किया जाये, तो शिव जी बहुत प्रसन्न होते हैं। इसलिए हमें इस मंत्र का जाप करना चाहिए-
'त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम।
जिसका अर्थ है- हे! तीन नेत्रों वाले, त्रिशूल को धारण करने वाले भगवान शिव, तीनों जन्मों के पापों का संहार करने वाले हे! शिव मैं आपको बेलपत्र अर्पित करता हूँ।
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विशेष
बेलपत्र में माता पार्वती का प्रतिबिंब होता है, इसी कारणवश इसे भगवान शिव पर श्रद्धापूर्वक चढ़ाया जाता है।
भगवान शिव पर बेलपत्र चढ़ाने से प्रसन्न होकर शिव जी भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं।
यदि कोई व्यक्ति किसी कारणवश तीर्थ स्थान पर नहीं जा सकता है, तो वह अगर श्रावण मास में बेल के पेड़ की मूल भाग की पूजा कर उसमें जल चढ़ाये, तो उस व्यक्ति को सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है।
सावन में शिवजी को बेलपत्र चढ़ाने का बहुत महत्व है। तीन पत्तियों वाले बेलपत्र तो भगवान शिव को बहुत ही पसंद हैं। परंतु यदि चार पत्तियों वाला बेलपत्र मिले, तो उसमें भगवान राम का नाम लिखकर उसे शिवजी को अर्पित करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है। इसीलिए चार पत्तियों वाले बेलपत्र को बहुत ही चमत्कारी व अद्भुत माना जाता है।
बेलपत्र के विषय में कहा गया है-
'दर्शनम् बिल्व पत्रस्य,
स्पर्शनमं पाप नाशनम्'
अर्थात बेलपत्र के मात्र दर्शन कर लेने से ही पापों का नाश हो जाता है।
सावन के माह में भगवान शिव का जलाभिषेक करते समय बेलपत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार बेलपत्र व जल अर्पित करने से भगवान शिव का मस्तिष्क शीतल रहता है।