नवरात्रि में प्रयुक्त होनी वाली आवश्यक वस्तुओं का महत्व

Significance of important things that are used in Navratri

हिंदू धर्म के अनेकानेक प्रकार के पर्व त्योहारों के मध्य नवरात्र के पर्व का अलग ही महत्व माना जाता है। नवरात्रि का पर्व चहुँ ओर रौनक लाता है और खुशहाली के साथ-साथ माता के आगमन से सुख-समृद्धि व पवित्रता भी लाने का कार्य करता है। इस वर्ष नवरात्र का पर्व 17 अक्टूबर 2020 की तिथि से आरंभ होने जा रहा है। यह नवरात्र शारदीय नवरात्र है। हालांकि पूरे वर्ष भर में चार नवरात्र हिंदू धर्म में मनाए जाते हैं जिसमें से दो नवरात्र गुप्त नवरात्रि कहलाते हैं तो अन्य दो नवरात्र सभी जातकों के लिए मान्य होता है।

गुप्त नवरात्र प्रायः ब्राह्मण व ऋषि महर्षिगण ही करते हैं, जबकि अन्य दो नवरात्रि चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र को सभी जातकों द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है। किंतु अगर प्रमुखता की बात की जाए तो चैत्र और शारदीय नवरात्र में से भी शारदीय नवरात्र को भी अधिक महत्व दिया जाता है। शारदीय नवरात्र की धूम पूरे देश भर में रहती है। विशेष तौर पर शारदीय नवरात्रि का अलग-अलग रंग पश्चिम बंगाल में देखने को मिलते हैं, इसके अलावा दिल्ली, मुंबई में भी शारदीय नवरात्र की अलग ही धूम रहती है। बिहार में शारदीय नवरात्र को कुछ विशेष मान्यताओं व रीति-रिवाजों के साथ अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। नवरात्र के पर्व हेतु पूर्व से ही तैयारियां आरंभ हो जाती है जिसमें कलश, जौ, आम के तोरण, पुष्प, दीपक आदि अनेकानेक प्रकार के तत्व उपयोग में लाए जाते हैं।

क्या आपने कभी सोचा है कि इन सभी सामान्य से पूजन हेतु प्रयुक्त होने वाले उपकरणों का भी कुछ विशेष महत्व हो सकता है? नहीं ना! तो आइए आज हम आपको बताते हैं नवरात्रि के पर्व में प्रयुक्त होने वाले कुछ महत्वकारी तथ्यों के बारे में।

पवित्र कलश

नवरात्रि के पावन पर्व पर सामान्य तौर पर प्रयुक्त होने वाले कलश के महत्व के संबंध में प्रायः जातकों को भान नहीं हो पाता है। पुराणों में कलश को सुख-समृद्धि एवं ऐश्वर्य का प्रतीक माना गया है। धर्म शास्त्रों में यह उल्लेख मिलता है कि कलश में सभी ग्रह, नक्षत्र, तीर्थ आदि का प्रवास होता है। एक कलश में ही ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, नदी, सागर, समुंद्र, सरोवर आदि सभी मौजूद होते हैं।

कुल मिलाकर ऐसा शास्त्रों में वर्णित है कि कलश में 33 कोटि देवी देवताओं का वास होता है। इस कारण कलश की स्थापना को नवरात्रि के पर्व पर अधिक महत्वकारी माना जाता है। जिस घर में कलश की स्थापना होती है, उस घर में चहुँ ओर सकारात्मकता बरकरार रहती है, साथ ही उस घर पर सदैव 33 कोटि देवी देवताओं का आशीष बना रहता है। वास्तु शास्त्र के मुताबिक जातकों को अपने घर में कलश की स्थापना ईशान कोण में अर्थात उत्तर-पूर्व दिशा में ही करना चाहिए, तभी इसकी सकारात्मकता विस्तृत हो पाती है।

खुशहाली का प्रतीक है लहलहाते ज्वार के पौधे

नवरात्रि के पावन पर्व में कलश स्थापना के साथ जौ को बोने का भी विधान है। जौ को बोना अत्यंत ही शुभकारी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि नवरात्र पर्व के प्रथम दिवस पर कलश स्थापन के साथ बोई जाने वाली जौ की वृद्धि के साथ-साथ आपके सुख-समृद्धि का भी अनुमान लगाया जा सकता है।

ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक आपके घर में स्थापित कलश के साथ बोए गए जौ ज्यों ज्यों बढ़ते जाते हैं, त्यों त्यों आपके जीवन में खुशहाली व समृद्धि आती जाती है। जौ का हरा-भरा व बेहतरीन तरीके से वृद्धि करना आपके पारिवारिक खुशहाली को दर्शाता है। वहीं जिन भी जातकों के द्वारा कलश स्थापना के समय बोये गए जौ ठीक तरह से अंकुरित नहीं होते या वृद्धि नहीं करते, तो आपको यह मान लेना चाहिए कि आने वाले समय में आप के ऊपर कोई बड़ा संकट आने वाला है एवं यह किसी न किसी प्रकार के भविष्य में होने वाले अनिष्ट घटनाओं का संकेत दे रहा है।

द्वार पर लगायें आम व अशोक के पत्तों का तोरण / बंदनवार

हिंदू धर्म में बंदनवार का प्रचलन वैदिक काल से ही चला आ रहा है। वैदिक काल से ही किसी भी शुभ कर्म पूजा-पाठ, अनुष्ठान आदि के दौरान जातक घर के मुख्य द्वार पर आम या अशोक के ताजे पत्तों से बंदन द्वार लगाते चले आ रहे हैं। इसके पीछे यह मान्यता होती हैं कि बंधन द्वार लगाने से जातकों के जीवन में कभी भी नकारात्मकता नहीं आती एवं घर के मुख्य द्वार से केवल सकारात्मक ऊर्जाओं का ही घर के अंदर प्रवेश संभव हो पाता है। अतः नवरात्र के पावन पर्व पर सभी जातकों को अपने घर में आम या अशोक के पत्ते का बंदनवार / तोरण अवश्य ही लगाना चाहिए।

दीपक है सकारात्मक ऊर्जाओं का स्रोत

हिंदू धर्म में आदि काल से ही दीपक को सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। दीपक की ज्योति घर में ऊर्जा का संचार करती है एवं सकारात्मकता लाने का कार्य करती है। जिन भी जातकों के घर में प्रतिदिन दीपक जलाए जाते हैं, उनके घर में शुद्धता व सकारात्मक बरकरार रहती है एवं नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। आदिकाल में अनेकानेक साधु-संतों ने दीपक की रोशनी को साक्षी मानकर अपने बड़े -बड़े तप को पूर्ण किया है। दीपक की लौ का महत्व हिंदू धर्म में सर्वाधिक है। दीपक अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है, इस वजह से जातक को अपने घर के आगे दीपक जलाना चाहिए। नवरात्रि के पर्व में नों दिनों तक अखंड दीपक जलाने से घर की सभी बुराइयां नष्ट हो जाती है एवं सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण हो जाता है। नवरात्र के 9 दिनों तक अखंड दीपक जलाना अत्यंत ही शुभकारी माना जाता है।

लाल अड़हुल है माँ को प्रिय

ज्योतिष शास्त्र में आदि शक्ति का प्रिय रंग लाल रंग माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक जातकों को नवरात्रि के पर्व पर माँ शक्ति जगदंबा का लाल रंग से श्रृंगार करने की साथ साथ उन्हें लाल पुष्प अर्पित करने चाहिए। लाल रंग के फूल को सकारात्मक ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इससे माता अति शीघ्र प्रसन्न होती है एवं जातकों की सभी मनोकामना पूर्ण करती हैं।

नारियल के साथ तोड़े अहंकार की भी परत

नवरात्रि के पावन पर्व में नारियल का बहुत ही अधिक महत्व होता है। नवरात्र के पर्व में अष्टमी के त्योहार पर नारियल को तोड़ने के विधान को अहंकार को तोड़ना माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि नारियल का ऊपरी भाग अहंकार का प्रतीक है, जबकि आंतरिक सफेद भाग पवित्रता, शांति व कोमलता का प्रतीक है। माता दुर्गा के समक्ष जब हम अष्टमी को नारियल तोड़ते हैं, तो इस भाव से तोड़ते हैं कि हम स्वयं के ऊपर से अहंकार की परत को तोड़ कर फेंक रहे हैं और स्वयं को सौम्य, निर्मल व सकारात्मक बना रहे हैं। इसके अतिरिक्त नारियल को लाल रंग के कपड़े में लपेटकर मौली धागा के साथ बांधकर कलश रखने का भी विधान है जो कि 33 कोटि देवी देवता वाले कलश के शीश पर रखा जाता है।