ग्रहण से जुड़ी पौराणिक कथा

Story related to Eclipse (Grahan)

ग्रहण दो प्रकार का होता है, सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण। ये दो प्रकार के ग्रहण हमें खगोलीय घटनाओं के कारण देखने को मिलते हैं। सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा इन तीन ग्रहों की गतिविधियों के कारण ही ग्रहण की क्रिया संभव होती है। सूर्यग्रहण अमावस्या के दिन और चंद्रग्रहण पूर्णिमा को ही पड़ता है। इन सभी वैज्ञानिक तथ्यों के अलावा भारत में ग्रहण के संबंध में कुछ पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं।

ग्रहण से जुड़ी पौराणिक कथा

ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय जब देवताओं और असुरों के बीच अमृतपान के लिए विवाद चल रहा था, तो इस विवाद से निपटने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी एकादशी के दिन एक मोहिनी का रुप धारण कर अमृत को बराबर मात्रा में असुरों और देवताओं के बीच वितरित करने का निर्णय लिया।

अपनी योजना के तहत भगवान विष्णु ने दोनों पक्षों के सहमत भी कर लिया और अमृत वितरण के लिए असुरों और देवताओं को दो अलग-अलग पंक्तियों में बैठा दिया। परंतु असुरों में से एक असुर को भगवान विष्णु की ये चाल समझ आ गई कि भगवान विष्णु छलपूर्वक केवल देवताओं को ही अमृतपान करायेंगे, तो वह असुर एक देवता का रुप धारण कर देवताओं वाली पंक्ति में बैठ गया और उसने अमृत भी ग्रहण कर लिया।

भगवान विष्णु इस घटना से अनभिज्ञ थे। इस वृतांत के बारे में जब सूर्य और चंद्रमा ने भगवान विष्णु को अवगत कराया तो भगवान विष्णु ने क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से उस असुर का गला काट दिया। परंतु वो असुर अमृतपान कर चुका था, इसलिए उसकी मृत्यु नहीं हुई। इस असुर के सर वाला भाग राहु और शेष धड़ वाला भाग केतु रुप में परिवर्तित हो गया। इस घटना के बाद से ही राहु और केतु, सूर्य और चन्द्रमा देवताओं को अपना शत्रु मानने लगे।

पौराणिक कथाओं में ऐसा वर्णन मिलता है कि पूर्णिमा के दिन ये दोनों असुर राहु और केतु अपने शत्रु चंद्रमा को अपना ग्रास बना लेते हैं, इस कारण ही चंद्रग्रहण की घटना होती है।