ज्योतिष शास्त्र में ग्रह गोचरों की दशा-दिशा को देखते हुए हर वर्ष में 4 माह ऐसे निर्धारित किये गए हैं, जिनमे किसी भी शुभ कार्य का करना वर्जित माना जाता है। हिंदू पंचांग में ये 4 माह एक एकादशी से दूसरे एकादशी की तिथि के बीच का होता है, अर्थात हर वर्ष के देवशयनी एकादशी से चतुर्मास आरंभ होकर देवउठनी एकादशी काल तक बना रहता है एवं देवउठनी एकादशी की तिथि पर इसका समापन होता है। चतुर्मास के 4 माह की अवधि में किसी भी व्यक्ति का विवाह संस्कार अथवा अन्य कोई भी सोलह संस्कार, गृह प्रवेश आदि मांगलिक कार्य अशुभकारी माना जाता है।
वही देवोत्थान एकादशी के पश्चात पुनः शुभ कार्य विवाह कर्म आदि जैसे कार्य भी फिर से आरंभ हो जाते हैं। इस 4 माह के संबंध में धर्म शास्त्र यह कहता है कि इन 4 महीनों में भगवान विष्णु, जो कि सृष्टि के पालन पोषण करते हैं, वे विश्राम की अवधि पर चले जाते हैं जिस कारण सृष्टि में कोई भी कार्य सही तरीके से संपन्न नहीं हो पाता है। इसलिए इन चार माह को शुभ कार्य करने हेतु वर्जित माना गया है। इस दौरान भगवान विष्णु क्षीर सागर में प्रवास करते हैं।
वर्ष 2020 में 5 माह का अधिकमास पड़ रहा है जिस कारण से अश्विन का मास दो बार आएगा जो चातुर्मास की अवधि को बढ़ाने का कार्य करेगा। इसी वजह से चातुर्मास 4 माह की जगह 5 माह का हो जाएगा, यानी कि आप 4 की जगह 5 माह तक किसी भी शुभ कार्य को नहीं कर सकते हैं। इस वर्ष 5 माह की चतुर्मास लगने के कारण सभी पर्व त्यौहार आदि भी अन्य वर्ष की तुलना में देर से आएंगे। हर वर्ष श्राद्ध पक्ष के समापन के पश्चात शारदीय नवरात्र का आरंभ हो जाया करता था, किंतु इस वर्ष श्राद्ध पक्ष का अंत होने पर अधिक मास वाले कालखंड से पुनः अश्विन मास आरंभ हो जाएगा जिस वजह से इसकी अवधि 5 मास की स्पष्ट हो जाएगी।
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वर्ष 2020 में चातुर्मास कब से कब तक है ?
चातुर्मास इस वर्ष 01 जुलाई 2020 देवशयनी एकादशी से प्रारम्भ होकर यह देवोत्थान एकादशी, यानी 25 नवंबर 2020 तक बना रहेगा।
आपके मन में अवश्य ही अधिमास को लेकर प्रश्नचिन्ह खड़ा हुआ होगा! कि अधिमास क्या है? यह किस प्रकार चतुर्मास की काल अवधि को प्रभावित कर रहा है। दरअसल प्रत्येक 3 वर्ष पर एक अतिरिक्त मास आता है जो अधिमास कहलाता है। अधिमास को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। कुछ लोग इसे मलमास तो कुछ इसे पुरुषोत्तम मास कहकर भी संबोधित करते हैं।
तीन सालों में अधिमास की पुनरावृत्ति
ज्योतिष शास्त्र, ग्रह गोचरों की स्थिति एवं दशा-दिशा के अनुरूप चलता है। वहीं भारतीय हिंदू कैलेंडर अथवा पर्व त्यौहार आदि सभी ज्योतिष शास्त्र के अनुरूप चलते हैं जो पूर्ण रूपेण सूर्य और चंद्रमा की गणना पर आधारित हैं। ज्योतिष शास्त्र के सनातनी कैलेंडर के अनुरूप एक सूर्य वर्ष 365 दिन और लगभग 6 घंटे की काल अवधि का माना जाता है, जबकि चंद्र वर्ष उससे कम दिन यानी कि लगभग 354 दिनों का माना जाता है। इन दोनों सूर्य तथा चंद्र वर्ष की काल अवधि में लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, यही अंतर 3 सालों के पश्चात लगभग एक माह के रूप में परिलक्षित होती है। इसी मास को 3 वर्षों की अवधि के अनुरूप अलग करके अधिमास के महीने के रूप में संबोधित किया जाता है।
सावन, भादौ, अश्विन और कार्तिक इन चारों माह को ही संयुक्त रूप में चातुर्मास / चतुर्मास कहा जाता है। चतुर्मास की काल अवधि के दौरान भगवान विष्णु सृष्टि के पालन पोषण का दायित्व भगवान शिव के ऊपर सौंप देते हैं एवं स्वयं विश्राम हेतु क्षीर सागर प्रस्थान कर जाते हैं।
चातुर्मास की काल अवधि के दौरान सावन का महीना भी पड़ता है। सावन का महीना भगवान शिव का महीना है जिसमें सोमवार का व्रत एवं प्रतिदिन शिवलिंग की उपासना आदि द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न किया जाता है। चातुर्मास से संबंधित यह भी मान्यता है कि इस दौरान व्यक्ति की पाचन शक्ति कमजोर पड़ जाती है जिस कारण लोगों को अपने खान-पान में विशेष परिवर्तन करना चाहिए। चतुर्मास की अवधि में अधिक से अधिक व्रत उपवास धारण करना चाहिए। इस दौरान प्रकृति में कीटाणु-विषाणु आदि अधिक सक्रिय रहते हैं। लोगों को अपने खानपान में अधिक से अधिक स्वास्थ्यवर्धक चीजों को शामिल करने के साथ-साथ आसपास की स्वच्छता आदि का भी विशेष ख्याल रखना चाहिए।
इन चार महीनों के दौरान किसी भी प्रकार के भोज-भंडारे, विवाह, मुंडन आदि जैसे संस्कार नहीं करवाने चाहिए। आप इन 4 महीनों में एकांतवास कर जप तप द्वारा अधिक से अधिक सकारात्मक शक्तियां अर्जित कर सकते हैं। इन चार महीनों के बीच पड़ने वाले सावन के महीने में लोगों को श्रद्धा एवं भक्ति भाव से भगवान शिव की उपासना आराधना करनी चाहिए एवं पूरे सावन मास में शिव जी को जल एवं बेलपत्र अभिषेक करना चाहिए। इससे जातक को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।