नंदी से जुड़ी रहस्यमयी बातें, शिव मंदिर में क्यों पूजे जाते हैं नंदेश्वर?

आप जब भी भगवान शिव की पूजा अर्चना हेतु महादेव के मंदिर जाते हैं, तो सर्वप्रथम आपको द्वार के समीप ही अंदर कदम रखने के साथ ही नंदेश्वर के दर्शन होते हैं। क्या आपने कभी इस संबंध में सोचा है कि भगवान शिव के मंदिर में नंदी का स्थान क्यों है? और अगर नंदी पूजनीय है, तो उनकी प्रतिमा को शिव के साथ न रखकर दूर क्यों रखा जाता है?

नंदी केवल एक सेवक मात्र है, फिर उन्हें पूजनीय क्यों माना जाता है? शिव से की जाने वाली प्रार्थना भगवान शिव के जगह नंदेश्वर के कानों में क्यों कहीं जाती हैं? नंदी और शिव के बीच इतने प्रगाढ़ संबंध बनने के पीछे क्या रहस्य है? नंदी की खूबसूरत आंखों पर कभी आप की निगाहें टिकी हो तो आपके मन में इन आंखों में छिपे रहस्य के संबंध में कभी कोई प्रश्न उठा है?

अगर नहीं तो अब उत्सुकता तो अवश्य ही जागृत हो गई होगी! आप यह जानने को अवश्य ही आतूर होंगे कि इन सभी तथ्यों के पीछे का मर्म क्या है? तो आइए आज हम आपको देते हैं ऐसे तमाम सवालों के सटीक और साहित्यिक जवाब।

क्या है नंदी और शिव के एकता का रहस्य?

धार्मिक शिवपुराण की कथा के अनुसार आदिकाल में एक महर्षि शिलाद नामक ऋषि हुआ करते थे। वे अत्यंत ही तपस्वी एवं धार्मिक प्रवृत्ति के सनातनी व्यक्ति थे। उन्होंने होश संभालते ही ईश्वर की भक्ति जप, तप आदि में ही अपना जीवन व्यतीत करना आरंभ कर दिया। स्वजनों की ओर से एक समय पश्चात जब उन पर विवाह हेतु दबाव बनाया जाने लगा, तो उन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर जप-तप एवं पूजा-आराधना में लीन रहने का संकल्प लिया।

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इसे जान कर महर्षि शिलाद के पितर चिंतित रहने लगे। वे अपने वंश की समाप्ति को लेकर व्यतीत रहने लगे। मुनि शिलाद ने उनकी पीड़ाओं का समाधान करने हेतु जप-तप, ध्यान के माध्यम से ईश्वर के आशीर्वाद स्वरुप पुत्र प्राप्ति हेतु मानसिक संकल्प धारण किया एवं भगवान शिव की तपस्या में लीन हो गए।

तपस्या पूर्ण होने के पश्चात जब भगवान शिव अवतरित हुए तो महर्षि शिलाद ने उनसे पुत्र की मांग की जिस पर भगवान शिव ने उन्हें यह वरदान दिया कि जल्द ही उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। एक समय की बात है महर्षि शिलाद अपने जीवन यापन हेतु खेत में हल जोत रहे थे, उसी दौरान खेत में एक घड़े से उनकी हल टकराई जिसमें एक अबोध बालक था। महर्षि शिलाज ने उसे भगवान शंकर का आशीर्वाद मानकर अपने पुत्र के रूप में स्वीकार किया एवं उसका नाम नंदी रखा।

एक समय की बात है, महर्षि शिलाद के आश्रम में दो अत्यंत ज्ञानी तपस्वी ऋषि मित्र और वरुण पधारे। मित्र और वरुण अत्यंत ही तेजस्वी एवं ज्ञानवान थे जिसकी नंदी और महर्षि शिलाद ने खूब सेवा सुश्रुषा की। जब मित्र और वरुण आश्रम से वापस जाने लगे, तब उन्होंने उनके चरण स्पर्श किये जिस पर मित्र और वरुण ने महर्षि शिलाद को दीर्घायु का वरदान दिया, जबकि नंदी को लंबी उम्र हेतू कोई आशीष प्रदान नहीं किया जिससे शिलाद के मन में दुविधा उत्पन्न हुई। शिलाद ने जब मित्र तथा वरुण ऋषि से इसके पीछे की तथ्यों को समझने की चेष्टा की तो उन्होंने यह बताया कि उनका पुत्र नंदी अल्पायु है।

यह सुनकर शिलाद अत्यंत ही व्याकुल एवं दुखी हो गए। नंदी ने जब अपने पिता के दुख का कारण पूछा तो महर्षि ने उसे उसकी अल्प आयु के संबंध में बताया। तत्पश्चात नंदी ने कहा कि जिस के सृजेता भगवान शिव है, उनकी रक्षा भी भगवान शिव के द्वारा ही होगी। आप चिंता ना करें पिताश्री, मैं भगवान शिव की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करूंगा। वे अवश्य ही आपके पुत्र के आयु वर्धन हेतु कोई उपाय सुझाएंगे।

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इसके बाद नंदी ने भगवान शिव की तपस्या की। भगवान शिव प्रसन्न हुए। उन्होंने सृष्टि के नियमों को ध्यान में रखते हुए दीर्घायु का वरदान देने की जगह मृत्यु पर्यंत पुनः जीवित करने का आश्वासन दिया। जब नंदी की मृत्यु हो गई तब भगवान शिव ने बैल का शीश लगाकर उन्हें जीवित किया एवं अपने इष्ट सेवक के रूप में शिरोधार्य किया। नंदी की भक्ति, निष्ठा एवं शिव का आशीष एवं नंदी के प्रति प्रेम भाव दोनों के बीच प्रगाढ़ संबंध बनाते हैं। नंदी की शिव के प्रति भक्ति भावना बिल्कुल वैसे ही विख्यात है जैसे श्री रामचंद्र के प्रति हनुमान की।

नंदीश्वर से जुड़ी कुछ रहस्यमयी बातें

कुछ लोग नंदी को सामान्यतया बैल एवं भगवान शिव का सेवक मात्र समझकर अत्यधिक महत्व नहीं देते हैं, किंतु आपको नंदी से जुड़े कई तथ्यों के संबंध में जानकारी नहीं है। नंदी एक अत्यंत शुभकारी एवं श्रेष्ठ आत्मा है जो अपने परमात्मा अर्थात शिव की भक्ति में हर क्षण लीन रहते हैं। तो आइए जानते हैं नंदी से जुड़े कुछ विशेष तथ्यों के संबंध में-

शिव की जगह नंदी के कान में कहकर क्यों माँगी जाती है मुरादें?

धर्म ग्रंथों में ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव सदैव तपस्या में लीन रहते हैं जिस कारण उन तक किसी भी सांसारिक प्राणी की वाणी सामान्य रूप से नहीं पहुंच पाती। इस कारण शिव अपने भक्तों के कष्टों के निवारण हेतु नंदी का सहारा लेते हैं। भगवान शिव के अनुसार जो भी व्यक्ति नंदी के कान में अपनी मुराद कह देता है, वह अवश्य ही पूरी होती है। जब भगवान शिव की तपश्चर्या का क्रम पूर्ण होता है, तब नंदी उनके समक्ष सभी की प्रार्थनाएं लेकर जाता है, जिसे भगवान शिव उस व्यक्ति की प्रार्थना के साथ-साथ अपने प्रिय सेवक नंदी की प्रार्थना मानकर स्वीकार करते हैं एवं शीघ्र ही व्यक्ति के मन की इच्छाओं की पूर्ति करते हैं। यही कारण है कि हमेशा से ही भगवान शिव से मांगे जाने वाले आशीष, वरदान अथवा उनसे की जाने वाली शिकायत ही सही, नंदी के द्वारा ही उन तक पहुंचाई जा सकती है।

नंदी का स्थान भगवान शिव से होता है कुछ दूर

भगवान शिव ने नंदी को देवता तुल्य उपाधि प्रदान की है। इसलिए भगवान शिव के मंदिर में उनका भी स्थान निहित होता है। प्रायः ऐसा होता है कि व्यक्ति सेवक को अधिक महत्व न देकर श्रेष्ठ को महत्व देते हैं, जबकि भगवान शिव के अनुसार सेवक ही श्रेष्ठ तक पहुंचने का साधन मात्र है। इसी कारण मंदिर में भगवान शिव से नंदी की प्रतिमा को दूर रखा जाता है, ताकि कोई भी व्यक्ति सर्वप्रथम नंदी के चरण स्पर्श कर ही अंदर आए एवं नंदी की अलग से पूजा उपासना कर उन्हें प्रश्न करें।

आप जब भी शिव मंदिर पूजा-अर्चना हेतु जाएं तो मंदिर में प्रवेश करते ही सर्वप्रथम नंदीश्वर के चरणों का स्पर्श करें। तत्पश्चात अंदर जाकर भगवान शिव का जलाभिषेक, पूजा आराधना आदि करें एवं पूजन समाप्ति के पश्चात लौटते समय नंदी के कानों में अपनी मुरादे अवश्य बोले। इससे आपके मनवांछित इच्छा की शीघ्र ही पूर्ति होती है।

क्या कहता है नंदी की रूप व उनकी संरचना?

शिव पुराण के अनुसार नंदी एक प्रतीक है जो बुद्धि, विवेक, शौर्यता, पराक्रम एवं पवित्रता के प्रतिबिंब माने जाते हैं। यह पूर्णतया शिव को समर्पित प्राण है जिनका जीवन एवं मरण दोनों शिव हेतु ही है। आइए जानते हैं नंदी की संरचना रूप श्रृंगार से संबंधित कुछ अहम बातें-

आँखे-

नंदी के नेत्र की सुंदरता भक्ति के स्वरूप को प्रदर्शित करती है। नंदी का नेत्र सदैव शिव के स्वरूप को परिलक्षित करता है जो यह दर्शाता है कि श्रेष्ठ एवं पुनीत भक्त सदैव ही अहम एवं दुष्प्रवृत्तियों से दूर अपने इष्ट में घुले हुए रहते है। नंदी की आंख क्रोध एवं दुर्गुणों को पराजित करने का सामर्थ्य रखती है। वे सौम्यता एवं सुंदरता का प्रतिबिंब है जिसमें आदिनाथ शिव शंकर की छवि विराजमान है।

चतुष्पाद-

नंदी चतुष्पथी हैं, अर्थात उनके चार पैर है जो मानव जीवन के चार चरणों को परिलक्षित करते हैं। नंदी के उन चार चरणों के सहारे ही भगवान शिव गमन करते हैं। अर्थात नंदी के द्वारा शिव की कृपा पात्र बनकर आप अपने जीवन के चारों चरण का सुखमय आनंद उठा सकते हैं।

वास्तव में नंदी का स्वरूप मानव स्वरूप है जिसे पुनर्जीवित करने हेतु भगवान शिव ने बैल अर्थात नंदी स्वरूप प्रदान किया जो भगवान शिव के वाहक, सेवक एवं भक्तों में शिरोमणि हो गए।

घंटी-

भगवान शिव के आदि भक्त नंदी सदैव अपने गले में बंधी घंटी के धुन में लीन होकर शिव की आराधना करते हैं। नंदी के अनुरूप उनकी घंटी के सुर भक्ति की ध्वनि है जो उन्हें सदैव शिव से साक्षात्कार कराने का कार्य करती है। नंदी की घंटी इस बात का प्रतीक है कि व्यक्ति को किसी की भी आराधना करने हेतु उनमें एक लय के साथ लयबद्ध होकर डूबना हो पड़ता है, तभी भक्तों में श्रेष्ठ एवं शिरोमणि बन पाना संभव हो पाता है। नंदी की घंटी की मधुर ध्वनि भगवान शिव को अति प्रिय है। भगवान शिव नंदी के आभाष एवं प्रतीती हेतु उसके गले में बंधी घंटी को अधिक महत्व देते हैं।

सिंगें-

नंदी के दो सिंगें होती है जिसका आकार ना अधिक बड़ा होता है ना ही अधिक छोटा होता है। यह मध्यस्थता में श्रेष्ठता का प्रतीक है। नंदी के दो सिंग बुद्धि एवं विवेक का प्रतीक माने जाते हैं जो यह दर्शाते हैं कि व्यक्ति को अपने जीवन में श्रेष्ठता के शिखर पर पहुंचने हेतु सर्वप्रथम सद्बुद्धि एवं विवेक को शिरोधार्य करने की आवश्यकता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव की पूजा आराधना के पश्चात नंदी के सींगों का स्पर्श कर सद्बुद्धि एवं सदविवेक की प्रार्थना अवश्य ही करनी चाहिए। इससे व्यक्ति को सन्मार्ग की प्राप्ति होती है जो उसे जीवन के वास्तविक लक्ष्य तक ले जाती हैं।