अचला सप्तमी धार्मिक तौर पर भारत में मनाया जाने वाला बहुत ही मुख्य तथा प्रासंगिक पर्व है। इस पर्व को माघ सप्तमी, रथ सप्तमी, माघ जयंती तथा सूर्य जयंती आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन भक्त सूर्य देव की पूजा करते हैं जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि इसी दिन भगवान सूर्य ने दुनिया को प्रकाशवान किया था। अर्थात सबसे पहले अपना तेज व प्रकाश दिया था और अपने प्रकाश द्वारा सम्पूर्ण ब्रह्मांड को चमकाकर तेजवान कर दिया था। यही कारण है कि इस तिथि को सूर्य जयंती के नाम से भी जाना जाता है। कई क्षेत्रों में तो इस पर्व को सूर्य भगवान के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
रथ सप्तमी की तारीख व दिन
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार शुक्ल पक्ष के समय माघ के महीने में सातवें दिन या सप्तमी तिथि को ही रथ सप्तमी का पर्व होता है। इस साल अर्थात 2021 में यह पर्व 19 फरवरी दिन शुक्रवार को है।
सप्तमी तिथि आरम्भ: 18 फरवरी 2021 दिन गुरुवार, प्रातः 8 बजकर 18 मिनट से
सप्तमी तिथि समापन: 19 फरवरी 2021, दिन शुक्रवार प्रातः 10 बजकर 57 मिनट पर
अचला सप्तमी का शुभ मुहूर्त
अरुणोदय का समय: 19 फरवरी प्रातः 06 बजकर 33 मिनट
अवलोकनीय सूर्योदय का समय: 19 फरवरी प्रातः 06 बजकर 55 मिनट
स्नान मूहूर्त: 19 फरवरी प्रातः 05 बजकर 14 मिनट से प्रातः 06 बजकर 55 मिनट
हिन्दू धर्म में अचला सप्तमी को स्वास्थ्य देने वाली तिथि माना गया है जिस वजह से इसे रथ आरोग्य सप्तमी के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्यदेव को जल का अर्घ्य देने और उनका पूजन करने से समस्त बिमारियों से छुटकारा प्राप्त होता है। इसके अलावा भगवान् सूर्य की भक्ति करने पर पिता और पुत्र के आपसी रिश्तों में मिठास बढ़ती है।
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उपरोक्त के अलावा यह पर्व हिन्दू धर्म के लोगों के लिए बहुत महत्व रखता है। रथ सप्तमी का दिन भगवान सूर्य की उत्तरी गोलार्द्ध की यात्रा को दर्शाता है, तथा यह गर्मियों की शुरुआत और दक्षिणी भारत के सभी क्षेत्रों में मौसम और जलवायु की बदलने वाली परिस्थितियों का संकेत देता है।
यह पर्व किसानों के लिए कुछ खास होता है, क्योंकि इसी मौसम में किसान अपनी नई फसल की शुरूआत करते हैं। यदि आप बहुत समय से दान-पुण्य करना चाहते हैं, तो यह दिन आपके दान करने के लिए सबसे उचित रहेगा क्योंकि सप्तमी के दिन किसी भी प्रकार का दान-पुण्य करना बहुत ही शुभ होता है।
कई लोगों का मानना है कि इस दिन की पूर्व संध्या पर यदि कोई व्यक्ति दान करता है, तो उसके सारे पाप, कष्ट, भूल तथा संकट इत्यादि माफ हो जाते हैं और उस व्यक्ति को लंबी आयु, स्वस्थ शरीर तथा आर्थिक तौर पर मजबूत होने का वरदान प्राप्त होता है।
रथ सप्तमी पूजा की विधि
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणाध्र्य दिवाकर।
अचला सप्तमी पूजा के लाभ
रथ सप्तमी पूजा के कुछ अनुष्ठान
रथ सप्तमी के सभी अनुष्ठान सूर्योदय से पूर्व ही किये जाते हैं।
पुराणों में अचला सप्तमी की यह कथा प्रचलित है कि एक युवती जो कि गणिका थी, उसने अपने सम्पूर्ण जीवन में कभी भी किसी भी प्रकार का कोई दान-पुण्य नहीं किया था।
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जब उसका अंत समय आया, तब वशिष्ठ मुनि के पास जाकर उसने पूछा कि मुक्ति के लिए वह क्या कर सकती है। तब वशिष्ठ मुनि ने उससे कहा कि - माघ के महीने में सप्तमी के दिन अचला सप्तमी का व्रत किया जाता है। इसके लिए एक दिन पहले मात्र एक बार ही भोजन ग्रहण किया जाता है और अगली सुबह सप्तमी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान कर दीप जलाकर, आक के सात पत्तों को सिर पर रखकर सूर्य भगवान का ध्यान करते हुए गंगा जल को हिलाते हुए इस मंत्र का जाप किया जाता है।
नमस्ते रुद्ररूपाय रसानां पतये नमः वरुणाय नमस्तेऽस्तु।
इसके पश्चात दीप को जल में प्रवाहित कर दें और फिर भगवान् शिव तथा माता पार्वती की स्थापना कर विधि द्वारा पूजन करें। फिर तांबे के किसी पात्र को चावल से भरकर उसे दान करें।
यह सब ध्यानपूर्वक सुनने के पश्चात गणिका इंदुमती ने वशिष्ठ मुनि के कहे अनुसार रथ सप्तमी का व्रत किया। इसके फलस्वरूप जब उसने अपने शरीर का त्याग कर दिया, भगवान इंद्र ने उसे अप्सराओं की मुख्य नायिका बना दिया।
रथ सप्तमी को लेकर एक और कथा प्रचलित है जिसमें भगवान श्री कृष्ण के पुत्र जिनका नाम शाम्ब था, उन्हें अपने शारीरिक सौंदर्य तथा बल, शक्ति आदि पर बहुत घमण्ड था।
उन्हीं दिनों एक दिन जब दुर्वासा ऋषि, जिनका शरीर काफी लंबे समय तक तपस्या करने के कारण बहुत ही दुर्बल व कमजोर हो गया था, भगवान श्री कृष्ण से मिलने आये। तब दुर्वासा ऋषि को देखकर शाम्ब ने उनका बहुत ही मजाक उड़ाया जिससे दुर्वासा ऋषि को बहुत क्रोध आया, और क्रोध में आकर उन्होंने शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया। उनके श्राप का प्रभाव शाम्ब पर तुरंत ही हो गया। इससे शाम्ब बहुत विचलित हो उठे। उन्होंने उसका हर तरीके का उपचार भी कराया गया परंतु कोई भी उपचार उनके लिए सही साबित नहीं हुआ।
फिर भगवान श्री कृष्ण ने अपने पुत्र शाम्ब को सूर्य देव की उपासना अर्थात सूर्योपासना करने के लिए कहा। अपने पिता की इस सलाह को मानकर शाम्ब ने सच्चे मन से सूर्य देव की उपासना की जिससे बहुत ही जल्दी उनका कुष्ठ रोग दूर हो गया।