बुद्ध पूर्णिमा हर वर्ष वैशाख मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है, इस कारण इसे वैशाख पूर्णिमा भी कहते हैं। आइए जानते हैं इसके पीछे के तथ्यों को एवं इस वर्ष बुद्ध पूर्णिमा हेतु तिथि व शुभ मुहूर्त।
तिथि: 26 मई 2021 दिन बुधवार
पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ: 25 मई, रात 8 बजकर 29 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समापन: 26 मई, शाम 4 बजकर 43 मिनट पर
बुद्ध पूर्णिमा 'बौद्ध धर्म' का सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम त्यौहार है। माना जाता है कि इसी पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति एवं उनका महाप्रयाण हुआ था। भगवान बुद्ध एवं बौद्ध धर्म ऐतिहासिक पन्नों का एक अभीष्ट घटनाक्रम है।
भगवान बुद्ध शाक्य वंश के राजकुमार थे। उनका जन्म 563 ईसा पूर्व शाक्य के राजा शुद्धोधन के राज्य कपिलवस्तु के पास लुंबिनी नामक स्थान पर हुआ था। बुद्ध एवं शाक्य इतिहास के पन्नों में निहित विशेष अध्याय है। शाक्य एक छोटा सा प्रांत था जो वर्तमान में भारत-नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र में मौजूद है।
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बुद्ध नाम से प्रचलित भगवान बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ राजा शुद्धोधन के राज महलों में पले बढ़े थे। इनकी माता माया देवी इनके जन्म के कुछ दिन पश्चात स्वर्ग सिधार गई। तत्पश्चात उनकी मौसी ने सिद्धार्थ का पालन पोषण किया। सिद्धार्थ राजमहलों में पले-बढ़े एवं उनका विवाह हो गया।
एक दिन की बात है, सिद्धार्थ अपने घर से अपने राज्य के भ्रमण हेतु बाहर निकले। इस दौरान उन्होंने एक अत्यंत बीमार व्यक्ति को देखा जिसे देखकर वे संशय की स्थिति में आ गए कुछ और आगे चलने पर उन्होंने एक वृद्ध व्यक्ति को देखा। फिर वे गहन चिंतन में डूब गए और सोचते हुए आगे बढ़े तो उन्होंने एक मृत व्यक्ति को देखा। इन सब को देख कर उनके मन में इन तीनों स्थितियों के संबंध में स्वयं को लेकर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया। वे सोचने लगे कि मैं भी बीमार पड़ सकता हूँ, क्या मैं भी एकदिन बूढ़ा हो जाऊंगा और फिर मर भी जाऊंगा। इन प्रश्नों से उनके मन में उथल पुथल मच गई। वे तुरंत वहाँ से राजमहल लौटे और उस पर गहन चिंतन करने लगे।
अपने प्रश्नों के उत्तर को जानने हेतु सिद्दार्थ दर-बदर भटकने लगे। तत्पश्चात उन्हें एक ऋषि ने मुक्ति मार्ग के गूढ़ रहस्य एवं उसे प्राप्त करने हेतु तरीके बताएं जिसके बाद भगवान बुद्ध ने राजसी सुख का परित्याग कर सन्यासी जीवन को अपनाकर मोक्ष की तलाश में निकलने की ठान ली और उन्होंने 29 वर्ष की उम्र में अपना राजमहल छोड़ सन्यास को चुन लिया।
वे 6 वर्षों तक पीपल के पेड़ के नीचे कठिन तपस्या में लीन रहे जिसके पश्चात उन्हें परमब्रह्म परमात्मा एवं मोक्ष संबंधी गूढ़ ज्ञान की प्राप्ति हुई। यह दिन वैशाख पूर्णिमा का ही था। वहीं कुछ वर्षों पश्चात धर्म की स्थापना एवं विस्तार कर वे 483 ईसा पूर्व में भूलोक को छोड़ ब्रह्म में लीन होकर मोक्ष की प्राप्ति कर गये। उस दिन से उस वृक्ष को बोधि वृक्ष एवं पूर्णिमा की इस तिथि को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से विश्वभर में मनाया जाने लगा।
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