देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी या प्रबोधनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। देवशयनी एकादशी का अपना एक विशेष महत्व है। चलिए जानते है, देवशयनी एकादशी क्या है, इसके पीछे का क्या कारण है? आज इसकी चर्चा विस्तृत रूप से करते है।
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार से चातुर्मास देवशयनी एकादशी से प्रारंभ होता है जिसे चार महीने का आत्मसंयम काल भी कहा जाता है। इसमें चार महीने के लिए सारे शुभ काम रुक जाते हैं। सभी एकादशियों में देवशयनी एकादशी का सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है। सनातन हिन्दू धर्म में कहा जाता है कि देवशयनी एकादशी में सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से भगवान विष्णु खुश होते हैं, साथ ही जीवन में खुशहाली का अंबार लगा देते हैं।
चलिए जानते है शास्त्रों के अनुसार देवशयनी एकादशी में किन सात कार्यों को कर मनवांछित फल की प्राप्ति की जाती है:
1) भगवान को नया वस्त्र पहनाना चाहिए - कहते हैं कि देवशयनी एकादशी के दिन भगवान को नया वस्त्र पहनना चाहिए क्योंकि इस दिन से भगवान चार महीने के लिए सो जाते हैं और शयनावस्था में रहते हैं। इसीलिए शास्त्रों के ज्ञानी सभी शुभ कार्यों को करने से वंचित करते हैं।
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2) भगवान को नए बिस्तर पर सुलाना चाहिए जिससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।
3) इस दिन घी के दिये जलाना अनिवार्य माना गया है - माना जाता है कि जितने भी जाने-अनजाने में गलतियां होती है, उसकी क्षमा याचना करने से भगवान विष्णु सारे पापों से मुक्ति दिलाते हैं।
4) रात्रि में जागरण करें साथ ही भगवान का स्मरण करें जिससे सारे कष्टों का निवारण होता है।
5) तुलसी के पत्ते न ही स्वयं तोड़े न ही अपने परिवार जनों को तोड़ने दे। इससे भगवान विष्णु नाराज़ होते हैं।
6) शास्त्रों के अनुसार माना गया है कि इस दिन गाय को बेसन ले लड्डू खिलाना काफी फलदायी होता है। भगवान विष्णु खुश होकर धन और समृद्धि के साथ यश भी प्रदान करते हैं।
7) भगवान विष्णु के प्रसाद में भी बेसन के लड्डू का चढ़ावा करना लाभकारी माना गया है। ऐसा करने से नौकरी, व्यापार आदि में तरक्की होंगी। साथ ही परिवार में दुःख या अकलमौत की काली छाया नही मंडराएगी। आपके परिवार में सुख समृद्धि बनी रहेगी।
इसमे एक खास बात यह है कि देवशयनी एकादशी के ये सात महत्वपूर्ण कार्य करने से आपको अगले जन्म में भी पूण्य और वैभव की प्राप्ति होंगी। अतः सभी भक्तजनों को अवश्य ही ये सात कार्य करनी चाहिए।
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इस वर्ष देवशयनी एकादशी 10 जुलाई 2022 के दिन मनाई जाएगी।
शुभ मुहूर्त
किसी भी त्योहार के लिए शुभ मुहूर्त का विशेष ध्यान रखा जाता है। शुभ मुहूर्त में की जाने वाली पूजा ही सफल मानी जाती है। देवशयनी एकादशी का व्रत एक श्रेष्ठ उपवास है। यह व्रत सभी भक्तजनों के लिए फलदायक है।
देवशयनी एकादशी व्रत हेतु एकदशी तिथि का प्रारंभ 9 जुलाई 2022 को संध्या 4 बजकर 38 मिनट से होगा और समाप्त 10 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 14 मिनट पर होगा।
पारण - 11 जुलाई 2022 को सुबह 5 बजकर 31 मिनट से सुबह 8 बजकर 17 मिनट तक रहेगा।
किसी राज्य में एक राजा रहता था। वह सत्यवादी, महानप्रतापि और दयालुता की भाव रखता था। वह प्रजा की देखभाल अपने परिवार जैसा करता था, हमेशा प्रजा को प्रसन्न रखता था। सभी प्रजा भी उस राजा से बहुत प्रसन्न रहते थे। उस राज्य की सभी प्रजा खुशहाली से जीवनयापन करती थी। उसके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ता था।
एक दिन एक समय ऐसा आया कि उस राजा के राज्य में भी अकाल आ गया और प्रजा को अन्न की कमी हो गयी। राजा और प्रजा दोनों ही बहुत दुःखी रहने लगे। उस राज्य की बहुत सी प्रजा की मृत्यु भी होने लगी। राज्य में त्राहि-त्राहि मचने लगा। एक दिन प्रजा राजा के पास जाकर विनती करने लगी और कहने लगी हे राजन! समस्त विश्व की सृष्टि का कारण वर्षा ही है। यहाँ वर्षा नहीं होने के कारण राज्य में अकाल आ गया है, अकाल पड़ने के कारण ही सभी प्रजा दुःखी है और मर रही है। हे राजन! आप कुछ ऐसा बताइए कि अकाल समाप्त हो जाए और इस राज्य की सभी प्रजा पहले जैसे खुशी एवं सुखी से रहने लगे।
ये सारी बातें सुनकर बिना कुछ बोले राजा जंगल की ओर निकल पड़े। राजा को जंगल पहुँचने के बाद एक कुटिया दिखायी दी जिसमें अंगिरा ऋषि रहते थे। राजा को कुटिया के पास जाने के बाद अंगिराऋषि मिले। अंगिरा ऋषि राजा को देख कर बोले हे राजन! आप यहाँ कैसे पधारे? तो राजा ने अकाल के बारे में सब कुछ बताया। यह सब सुन अंगिरा ऋषि बोले- हे राजन! आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष के पद्मा नाम के देवशयनी एकादशी का विधि पूवर्क व्रत कीजिए, जिससे आपके राज्य में वर्षा होंगी। यह सुनकर राजा ने विधि पूर्वक देवशनी एकादशी व्रत किया और ऐसा करने से वर्षा हुई। वर्षा होने से अकाल की समाप्ति हो गयी। सभी प्रजा में खुशी की लहर दौड़ पड़ी और फिर से सब पहले जैसा ठीक हो गया। सभी लोग फिर से सुखी-सम्पन्न रहने लगे।
देवशयनी एकादशी के नियम 10वीं तिथि से शुरु हो जाते हैं। दशमी तिथि से ही आपका प्याज, लहसुन वर्जित हो जाएगा। देवशयनी एकादशी करने वाले भक्तजनों को सुबह जल्दी उठना चाहिए। स्नान आदि कर साफ-सुथरा वस्त्र या संभव हो सके तो नए वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद जितने भक्तजन हैं, सभी को संकल्प लेना चाहिए और एक चौकी ले कर उसका पवित्रीकरण करके भगवान विष्णु की प्रतिमा उस चौकी पर स्थापित करना चाहिए। भगवान विष्णु को पीले रंग पसंद है, इसलिए पीले फूल, पीले वस्त्र, जो आपसे संभव हो अर्पण करने चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु का जाप ,पाठ और धूप-दीप से विष्णु भगवान की आरती करनी चाहिए। इसके बाद सभी भक्तजन पूरे दिन का उपवास रखें और रात में भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन करें। ऐसा करने से भगवान विष्णु बहुत ही प्रसन्न होते है।