धनतेरस

Dhanteras

रोशनी के पर्व दीपावली से 2 दिन पूर्व मनाये जाने वाले धनतेरस के त्यौहार की हर किसी के लिए अलग-अलग मान्यताएं है। इसके पीछे अनेकानेक धारणा व कथायें प्रचलित है। कोई इसे अकाल मृत्यु का रक्षक बताता है, तो कोई धन वर्षा का त्यौहार, तो वहीं किसी के लिए ये सुंदर एवं महँगे आभूषण, धातु आदि खरीदने का पर्व है। तो आइये जानते है इस वर्ष के धनतेरस पर्व हेतु शुभ मुहूर्त एवं इसके पीछे की कुछ कथायें-

धनतेरस 2021 तिथि व मुहूर्त

धनतेरस पर्व हर वर्ष दिवाली से 2 दिन पूर्व यानी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के 13 वें दिन विधि-विधान से मनाया जाता है। माना जाता है कि आज से ही दिवाली के पर्व का शुभारंभ हो जाता है एवं माँ लक्ष्मी की कृपा दृष्टि हमारे घर परिवार पर बननी आरम्भ हो जाती हैं। धनतेरस पर्व पर धन्वंतरी, यमराज, देवी लक्ष्मी, कुबेर, गणेश आदि देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है।

ग्रह-गोचरों की स्थिति व ज्योतिषीय गणना अनुसार इस वर्ष धनतेरस का पर्व 2 नवंबर 2021, दिन मंगलवार की तिथि को निर्धारित है।

त्रयोदशी तिथि का आरम्भ:- 02 नवंबर प्रातः 11 बजकर 32 मिनट से
त्रयोदशी तिथि की समाप्ति:- 03 नवंबर प्रातः 09 बजकर 01 मिनट पर

धनतेरस पूजन मुहूर्त शुरू:- शाम 06 बजकर 17 मिनट से
धनतेरस पूजन मुहूर्त समाप्ति:- रात 08 बजकर 11 मिनट पर।

प्रदोष काल:- शाम 05 बजकर 35 मिनट से रात्रि 08 बजकर 11 मिनट तक
वृषभ काल:- शाम 06 बजकर 17 मिनट से रात्रि 08 बजकर 12 मिनट तक

धनतेरस सम्बंधित कुछ कथाएं / मान्यताएं

धन्वंतरि देव

माना जाता है कि पौराणिक काल में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के13वें धनवंती देव का भूलोक पर अवतरण हुआ था। धन्वंतरी देव को आयुर्वेद जगत में विशिष्ट देव की उपाधि दी गई है जिनकी उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। यह धरा को आरोग्य प्रदान करने हेतु अवतरित लेते हैं। अतः धनतेरस पर्व के दिन धन्वंतरी देव की पूजा आराधना का भी विधान है।

जानिए आपका आज का राशिफल

धनतेरस पूजन / यमराज पूजन

धनतेरस पर्व पर यमराज के पूजन का विधान भी है। यमराज मृत्यु के देवता है, तथापि इनकी पूजा की जाती है। शास्त्रों की मानें तो आदिकाल की बात है - हेम नाम का एक शक्तिशाली राजा हुआ करता था जिसकी कोई संतान नहीं थी। उसने संतान प्राप्ति हेतु अनेकानेक जतन एवं पूजा-आराधना की। तत्पश्चात उसे एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।

पुत्र रत्न की प्राप्ति पश्चात जब वह राजा अपने पुत्र की कुंडली बनवाने ज्योतिषी के पास जाता है तो ज्योतिषाचार्य उसकी कुंडली देखकर कहते हैं-  हे राजन, तुम्हारा पुत्र विवाह के 10 दिन पश्चात ही मृत्यु के गाल में समा जाएगा जिसे जान राजन अत्यंत घबरा जाते हैं और निर्णय लेते है कि वह अपने पुत्र को आजीवन अविवाहित रखेंगे।

किंतु नियति के विधान को भला कौन काटता है। राजन के भाग्य में पुत्र सुख का कोई योग नहीं था। अतः पुत्र थोड़ा बड़ा होते ही अपने राजमहल व राजपाट को त्याग जंगल की ओर प्रस्थान कर गया और वहाँ तपस्या एवं एकाकी जीवन व्यतीत करने लगा। तत्पश्चात काल करवट लेती है और जंगल में फूल तोड़ने आने वाली एक सुंदर कन्या से राजा के पुत्र को प्रेम हो जाता है जिसके बाद वे दोनों गंधर्व विवाह कर विवाह के रिश्ते में बंध जाते हैं।

विधि के विधान अनुसार विवाह के 10 दिन पश्चात ही राजा के पुत्र की मृत्यु हो जाती है एवं यमदूत राजन के पुत्र के प्राण लेकर यमलोक चला जाता है। यमदूत नवविवाहित युवा के प्राण हरते हुए अत्यंत दुखी होता है। वह अपना दुःख यमराज के समक्ष प्रकट करता है और अकाल मृत्यु से बचाव हेतु कोई उपाय बताने का आग्रह करता है जिस पर यमराज ने यमदूत से कहा - कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के 13 वे दिन जिस भी घर के मुख्य द्वार एवं घर के दक्षिण दिशा में एक-एक दीपक यमराज के नाम से जलाया जाएगा। उस घर में कभी भी अकाल मृत्यु का दोष नहीं लगेगा। उस दिन से धनतेरस पर्व पर घर के मुख्य द्वार एवं दक्षिण दिशा में दिया जलाया जाने लगा और यम देव की पूजा होने लगी।

लक्ष्मी पूजन

धनतेरस पर्व पर लक्ष्मी पूजन के संबंध में यह कहा जाता है कि एक बार जब भगवान विष्णु भूलोक पर भ्रमण हेतु निकलते हैं तब माता लक्ष्मी उनके साथ आने की जिद करने लगती है जिस पर भगवान विष्णु माता को इस शर्त पर अपने साथ आने की अनुमति देते हैं कि उन्हें भगवान विष्णु की हर बात माननी होगी।

कुछ दूर भ्रमण करने के पश्चात जब भगवान विष्णु दक्षिण की दिशा के भ्रमण हेतु आगे बढ़ते हैं। उस समय वे माता लक्ष्मी से उसी स्थान पर रुकने को कहते है किंतु माता लक्ष्मी कुछ ही समय में अधीर हो गई और वे भगवान विष्णु के पीछे चल पड़ी। इस दौरान रास्ते में उन्हें किसान के खेत, फल-फूल दिखे जिसे देख माता स्वयं को रोक नहीं पाई। उन्होंने कुछ फूल फल आदि तोड़ लिए जिसे भगवान विष्णु देख कुपित हो गए और उन्होंने माता लक्ष्मी को गरीब किसान के खेत से फल-फूल तोड़ने के कारण श्राप दिया और कहा जाओ अगले 12 वर्ष तक तुम इस किसान के घर दासी बनकर रहोगी।

तत्पश्चात माता लक्ष्मी 12 वर्ष तक उस किसान की सेवा करती हैं। 12 वर्ष पश्चात जब वे अपने लोक जाने लगती हैं तो कृषक विलाप करने लगता है और प्रार्थना कर कहता है माता आपके हमारे आंगन में कदम रखने ही हमारी दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति हुई है। अतः आप हमारे घर भी रहे जिस पर माता लक्ष्मी भाव वश यह वरदान देती हैं कि जो भी मनुष्य कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के 13 वे दिन मेरी पूजा आराधना करेगा, मैं उसके घर सूक्ष्म रूप से वर्ष भर के लिए स्थापित हो जाऊँगी। तब से धनतेरस पर्व पर माता लक्ष्मी की पूजा-आराधना का विधान गढ़ गया।

क्यों खरीदते हैं नए बर्तन इस दिन?

पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं और असुरों द्वारा किये गए समुद्र मंथन में चौदह रत्नों की प्राप्ति के समय, अमृत का कलश लेकर भगवान धनवंतरी जिस दिन प्रकट हुए थे, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि ही थी। इसलिए धनतेरस का यह त्योहार उक्त तिथि को मनाया जाता है।

भगवान धनवंतरी अपने हाथ में एक अमृत से भरा कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए धनतेरस पर बर्तन खरीदने की अनोखी परंपरा है। इस दिन लोग सोना, चांदी, पीतल, कांसे इत्यादि धातु से बने बर्तन और वस्तुएं खरीदते हैं। परंतु इस दिन पीतल से बने बर्तनों को खरीदना अधिक शुभ माना जाता है क्योंकि पीतल धातु भगवान धनवंतरी की धातु मानी जाती है। ऐसा भी कहा जाता है कि यह धातु भगवान धनवंतरी को सबसे अधिक प्रिय थी।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो पीतल धातु में रखा खाना और पानी से हमारे शरीर के बहुत सारे रोग ठीक हो जाते हैं, इसलिए भी पीतल धातु को खरीदना अधिक लाभकारी है। भगवान धन्वंतरी की पूजा-आराधना करने से हमें अच्छे स्वास्थ्य और सौभाग्य का वरदान मिलता है। धनतेरस के दिन घर के आंगन की दक्षिण दिशा में दीपक जलाए जाने की प्रथा है तो आइए जानते हैं कि इस प्रथा के पीछे क्या कारण है।

दक्षिण दिशा में क्यों रखते हैं दीप?

धनतेरस के दिन लोग अपने घर के आंगन की दक्षिण दिशा में एक दीपक रखते हैं और व्रत इत्यादि भी करते हैं। अगर हम इस दीपक में कुछ रुपये-पैसे या किसी धातु के सिक्के या कौड़ी डालते हैं, तो यह दीप प्रज्ज्वलन और अधिक लाभदायी हो जाता है।

दक्षिण दिशा में दीपक रखने के पीछे जो पौराणिक कथा मिलती है वह यह है कि एक बार यम के देवता भगवान यमराज से उनके दूतों ने बातों ही बातों में पूछा कि हे भगवन् अकाल मृत्यु से बचने का कौन सा उपाय है! तब यम देवता ने उत्तर दिया कि जो व्यक्ति धनतेरस के दिन अपने घर के आँगन की दक्षिण दिशा में एक दीपक जलाएगा, तो उस व्यक्ति को कभी भी अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा। इसी मान्यता के कारण आज तक लोग धनतेरस के दिन अपने घर की दक्षिण दिशा में एक दीपक जलाते हैं।

अतएव धनतेरस का त्यौहार दैवीय अनुकम्पा प्राप्ति का त्यौहार है जिसपर श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करना आपके जीवन को कृतार्थ करेगा।

भारत में प्रचलित कुछ अन्य पर्व एवं त्यौहार: