नवंबर माह में भारतीय संस्कृति के प्रमुख त्योहारों में से एक, दीपकों व मोमबत्तियों की जगमगाहट से पूर्ण दीपावली के त्योहार का आगमन होगा। नवंबर माह की शुरुआत सुहागिनों के त्योहार करवाचौथ पर निर्जला व्रत के अनुसरण करने से होगी, जिसके उपरांत नवम्बर माह में रमा एकादशी, धनतेरस, गोवर्धन पूजा, भाई दूज, प्रदोष व्रत व कार्तिक पूर्णिमा का भी आगमन होगा। बिहार व उत्तर प्रदेश में प्रचलित छठ पूजा का त्योहार भी इसी माह में आएगा जिसका भारतीय संस्कृति में बहुत महत्व माना जाता है। तो आइए विस्तार पूर्वक जानते हैं नवंबर माह में आने वाले सभी त्योहारों के बारे में ।
करवाचौथ
प्रत्येक वर्ष करवाचौथ का त्यौहार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। इस वर्ष यह त्योहार बुधवार के दिन नवम्बर माह की 4 तारीख को मनाया जाएगा। इस दिन सभी सुहागिन अपने अपने देवता स्वरूप पति की लंबी आयु की कामना करते हुए पूरे दिन निर्जला व्रत का अनुसरण करती है। इस दिन वे अपने सुहाग की रक्षा हेतु सांयकाल चन्द्र देवता में अपने देवता स्वरूप पति को देखती है और चंद्रमा के समान अपने पति की आयु के लिए प्रार्थना करती है व उनकी आरती उतारकर उनके हाथ से जल ग्रहण कर अपने व्रत को पूर्ण करती है।
रमा एकादशी
प्रत्येक वर्ष देवी मां लक्ष्मी जी की आराधना हेतु रमा एकादशी के व्रत का आगमन होता है। इस दिन सभी लोग प्रातः काल उठकर व्रत का अनुसरण कर माँ लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान विष्णु जी की भी आराधना की जाती है। हर साल ये दिन कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को आता है। इस वर्ष बुधवार के दिन 11 नवम्बर को रमा एकादशी का आगमन होगा। सभी जन इस दिन पूर्ण श्रद्धा से भगवान विष्णु व देवी माँ लक्ष्मी की आराधना करें। इस दिन सहृदय पूजा करने से आपके जीवन में सदैव धन की वर्षा होती है व आप सदा अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहेंगे और निश्चित ही सफलता प्राप्त करेंगे ।
धनतेरस
प्रत्येक वर्ष धनतेरस का त्यौहार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष भी नवम्बर माह में दिनांक 13 को यह पर्व बहुत ही हर्षोल्लास व ऊर्जा से मनाया जाएगा। इस दिन सभी लोग किसी भी धातु से बनी वस्तु को खरीदते है व घर पर माँ लक्ष्मी के आगमन हेतु चांदी व सोने के सिक्के को आवश्यक रूप से अपने घर पर लाते है। इस दिन बाजारों में उमंग की लहर दौड़ती है व बाजारों की सजावट व खरीदारी करने हेतु सभी लोग शाम के समय अपने अपने घरों से घूमने के लिए बाजार के माहौल में उनके रंग में रंगने जाता करते है।
दिवाली
दिवाली का त्योहार हिंदी धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्योहार विश्व में खुशियां और ऊर्जा का प्रतीक है। यह त्योहार प्रति वर्ष कार्तिक माह की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष भी खुशियों का यह त्योहार बहुत ही हर्शोल्लास के साथ नवम्बर माह में शनिवार के दिन दिनांक 14 को मनाया जाएगा। इस दिन सभी लोग अपने अपने घरों में माता लक्ष्मी व गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर उनका सहृदय पूजन करते हैं। तत्पश्चात ही अपने अपने घरों में दीपक व मोमबत्तियों को जलाकर अपने अपने घरों को रोशनी किंचका चोंध से भरते है। इस प्रकार पूरा घर प्रकाशवान हो जाता है जैसे स्वयं देवी माँ लक्ष्मी व गणेश जी का आगमन हो गया हो। सभी में एक अलग ही ऊर्जा व उमंग का संचार हो जाता है। जगह-जगह लोग बड़े बड़े पटाखे आदि को जलाकर भी अपनी खुशी को जाहिर करते है।
गोवर्धन पूजा
कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को प्रत्येक माह दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पर्व का आगमन होता है। इसी प्रकार इस वर्ष भी दीवाली के अगले दिन रविवार के दिन दिनांक 15 नवंबर को गोवर्धन पूजा का आगमन होगा। इस दिन धन स्वरूप गौ माता की पूजा की जाती है। प्रातः काल उठकर इस दिन सभी लोग गाय के गोबर को लाकर उससे गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी उंगली पर उठाए कृष्ण जी की प्रतिमा को बनाते है। यह मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने अपने गोकुल वासियों को बड़ी विपदा से बचाने हेतु गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी उंगली पर विराजित कर लिया था, इसलिए इस दिन ग्वाले के रूप में कृष्ण जी व गौ की पूजा की जाती है।
भाई दूज
गोवर्धन पर्व के उपरांत अगले ही दिन भाई दूज का त्योहार सभी बहने अपने भाई के तिलक कर मानती है। इस वर्ष यह पर्व दिन सोमवार, 15 नवम्बर को बहुत ही प्रेमपूर्वक मनाया जाएगा। यह पर्व सभी बहनों व भाइयों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। रक्षा बंधन के बाद भाई बहनों का यह त्योहार पवित्रता व प्रेम व स्नेह का प्रतीक माना जाता है। इस दिन सभी बहने अपने भाइयों का तिलक कर उन्हें गोला मिठाई आदि का भोग लगाती है जिसके उपरांत उन्हें भाइयों के द्वारा नए-नए उपहार मिलते है।
छठ पूजा
भारतीय संस्कृति के मुख्य त्योहारों में से एक छठ पूजा का त्योहार होता है। यह त्योहार ज्यादातर बिहार व उत्तर प्रदेश के वासी मानते है। यह त्योहार प्रति वर्ष कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग प्रातः काल उठकर ब्रह्म मुहूर्त में किसी भी पवित्र नदी के जलाशय में खड़े होकर सूर्य देव के आगमन हेतु खड़े होते हैं व पूर्ण श्रद्धा व सहृदय भाव से उनका स्वागत करते हैं। इस दिन लोग पूरे घर को अच्छी तरह से स्वच्छ कर ही पूजा-अर्चना के कार्यकर्म को आगे बढ़ाते हैं। इस त्योहार का मुख्य कारक साफ सफाई को ही माना जाता है। इस त्यौहार को हम सभी सूर्य षष्ठी के रूप में भी जानते है।
देव उठनी एकादशी
प्रत्येक वर्ष भगवान विष्णु चातुर्मास शयन हेतु जाते है, इसी प्रकार चातुर्मास के अंत होने के उपरांत ही देव उठनी एकादशी का आगमन होता है। इस दिन भगवान विष्णु इस लोक के पालन करता अपनी निद्रा से जागकर भू लोक की सभी परेशानियों व समस्याओं का निवारण करने हेतु पुनः लगनशील हो जाते है। इस वर्ष यह दिन नवम्बर माह की 25 तारिख को आएगा। इस दिन से ही भारतीय संस्कृति के अनुसार सभी शुभ कार्यों को करना का समय आरंभ होगा। इस दिन से लोगो के घरों का ग्रह प्रवेश, विवाह मुहूर्त आदि की शुभ तिथियां सुनियोजित होना आरंभ हो जाएंगी ।
प्रदोष व्रत
प्रत्येक माह में भारतीय संस्कृति के अनुसार दो एकादशी व दो प्रदोष व्रत का आगमन होता है। इसी प्रकार नवंबर माह में शुक्रवार के दिन दिनांक 27 नवम्बर को प्रदोष व्रत का आगमन होगा। इस दिन देवाधिदेव, त्रिकालदर्शी, त्रिपुंडधारी महादेव की आराधना की जाती है। इस दिन सभी लोग अपने कष्टों से मुक्ति पाने हेतु सहृदय पूर्ण निष्ठा से भगवान शिव की आराधना करते हैं व अपने मंगल भविष्य की कामना करते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा
हर साल कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को भारतीय संस्कृती में कार्तिक पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग भगवान शिव की आराधना करते हैं। यह मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक विशाल राक्षस का विनाश किया था, इसलिए इस दिन को सभी में बहुत ही हर्शोल्लास के मनाया जाता है। इस दिन को भी बुराइयों का अंत करने वाले दिन के रूप में मनाया जाता है व यह माना जाता है कि इस भगवान शिव की आराधना करने से शिव जी उनके सभी कष्ट हर लेते हैं व उन्हें जीवन में उत्कृष्टता की ओर अग्रसर करते है।