गणेश चतुर्थी का त्योहार भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाया जाता है। जातक इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान गणेश जी का जन्म हुआ था। हिंदू पंचांग के अनुसार सभी देवों में सर्वप्रथम पूजनीय माने गए हैं भगवान गणेश। गणेश चतुर्थी पर्व पर जातक भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित कर विधिवत रूप से पूजा अर्चना करते हैं और भगवान गणेश को लड्डू का भोग लगाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश को विघ्नहर्तां कहा जाता है। भगवान गणेश का पेट लंबा होने के कारण इन्हें लम्बोदर भी कहा जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन जातक ढोल नगाड़ों के साथ पूरी धूमधाम से गणेशजी को अपने घर लेकर आते हैं। गणेश चतुर्थी से लेकर यह उत्सव पूरे ग्यारह यानि कि अनंत चतुर्दशी तक चलता है। शास्त्रों के अनुसार जातक अपनी सामर्थ्य अनुसार 5, 7, 9 दिन तक भी बप्पा को अपने घर रख सकते हैं। इन दिनों में बप्पा की पूजा-अर्चना पूरे विधि विधान के साथ की जाती है। गणेशजी को पूरे धूम-धाम के साथ "गणपति बप्पा मोरया अगले बरस तू जल्दी आना" के जयकारों के साथ विसर्जित कर दिया जाता है। भगवान गणेश धन-धान्य, सुख संपत्ति और स्वास्थ्य और सुखी जीवन का आशीर्वाद देते हैं। ऐसी मान्यता है कि अन्य किसी भी दिन की अपेक्षा गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा-आराधना करने से शीघ्र ही फल की प्राप्त होती है। तो आइए जानते हैं गणेश चतुर्थी हेतु शुभ मुहूर्त, पूजन सामग्री, विधि एवं महत्व:
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इस बार वर्ष 2020 में गणेश चतुर्थी का पर्व 22 अगस्त दिन शनिवार के दिन मनाया जाएगा।
गणेश चतुर्थी का आरंभः 21 अगस्त की रात 11:04 से होगा।
गणेश चतुर्थी का समापन का समय: शाम 7:58 पर होगा।
शुभ चौघड़ियाः सुबह 7:58 से सुबह 9:30 तक।
लाभ चौघड़ियाः दोपहर 2:17 से शाम 3:52 तक रहेगा।
अमृत चौघड़िया: शाम 3:05 से शाम 05:17 तक रहेगा।
शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि शुभ, लाभ और अमृत चौघड़िया के दौरान पूजन करना लाभकारी, सुख-सम्रद्धि एवं फलदायी होता है।
नोटः सुबह 9:00 बजकर 07 मिनट से राहुकाल आरंभ हो रहा है, जबकि शुभ चौघड़िया 9:30 बजे तक रहेंगी। मतलब कि राहुकाल के कुछ हिस्से में शुभ चौघड़िया रहेगी। ऐसे में यदि जातक चाहे तो राहुकाल के दौरान इस कालखंड में भी गणपति पूजा-अर्चना सम्पनन् कर सकते हैं।
शुभ मुहूर्त पूर्वाहन 11:07 से दोपहर 1:42 तक।
दूसरा शाम 4:30 से 7:22 तक रहेगी।
रात में 9:12 से 11:30 तक।
गणपति बप्पा की स्थापना से पूर्व सर्वप्रथम पूजा की सारी सामग्री एकत्रित कर ले।
सामग्री: पूजा के लिए चौकी, गणेश प्रतिमा, लाल कपड़ा, जल, कलश, पंचामृत, आम का पल्लव, रोली, कलावा, जनेऊ, गंगाजल, इलाइची, लोंग, सुपारी, ध्वजा, नारियल, पंचमेवा, घी, कपूर, ज्योति, मोदी एवं पूजा की अन्य सामग्रियाँ की व्यवस्था कर ले।
विशेष ध्यान यह रखें कि श्री गणेश को तुलसी दल व तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए। इसके स्थान पर गणपति बप्पा को शुद्ध स्थान से चुने हुए दुर्वा जिससे कि अच्छे तरीके से धो लेना चाहिए, और इसे ही भगवान गणेश को अर्पित करें।
पूजा विधि:
गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक, जब तक भगवान गणेश जातक के घर में रहते हैं, तब तक उनका एक परिवार के सदस्य की तरह ध्यान रखना चाहिए। शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि गणेश जी को तीन बार पूजा-अर्चना के साथ मोदक का भोग अवश्य लगाना चाहिए। क्योंकि भगवान गणेश को मोदक अत्यंत प्रिय है।
शास्त्रों के अनुसार जब तक गणेश जी जातक के घर में रहे, तब तक नियमित रूप से पूजा-पाठ एवं भोग लगाएं। शास्त्रों के अनुरूप ऐसा करने से जातकों के ऊपर बप्पा की विशेष कृपा होती है और सारे विघ्नों का नाश होता है।
शास्त्रों के अनुरूप बप्पा को बुद्धि का देवता माना गया है। शास्त्रों के मुताबिक जो भी जातक बप्पा को गणेश चतुर्थी के दिन सच्चे ह्रदय, भाव और भक्ति से अपने घर लेकर लाते हैं और पूरी श्रद्धा भावना और निष्ठा से पूजा-अर्चना करते हैं, बप्पा उस जातक की सारी इच्छाओं को पूरी करते हैं। शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि जातक के जीवन में जो भी दुख-दर्द, अशांति और कार्यक्षेत्र में आने वाली सभी रुकावटों को दूर करते हैं और बल एवं बुद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
गणेश उत्सव की धूम वैसे तो पूरे भारतवर्ष में होती है, लेकिन सबसे ज्यादा हर्षोल्लास के साथ गणेश चतुर्थी को महाराष्ट्र में मनाया जाता है। कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि छत्रपति शिवाजी ने लोगों के ह्रदय में देशभक्ति की भावना को जागृत करने के लिए गणेश चतुर्थी पर्व की शुरुआत की। अतः महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी पर्वत पूरे जोर-शोर व धूमधाम के साथ मनाई जाती है। मुम्बई में जगह-जगह पंडाल भी लगाई जाती है।