हिन्दू धर्म में अनेक व्रतों के जरिये हम अपने सभी पापों, दुखों, परेशानीओं, कुकर्मों, कुकृत्यों से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। व्रत के अनुसरण मात्र से हम ईश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं, जिसके द्वारा उनकी अनुकम्पा हम पर सदा बनी रहती है और हम अपने जीवन की सभी बाधाओं से पार कर सफलता की ओर अग्रसर रहते हैं। इसी के मध्य श्रवण माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज के व्रत का अनुसरण करने हेतु ,सुहागिनों व कुंवारी कन्याओं के लिए यह व्रत बहुत ही लाभदायक एवं शुभ माना जाता है जिसके द्वारा साधक के दाम्पत्य जीवन में सुख समृद्धि का वास होता है और कुंवारी कन्याओं को जीवन में शंकर जी के सामान एक सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। इसीलिए इस व्रत की हिन्दू धर्म में अधिक महत्ता है।
यह मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान् शिव को अपने आराध्य बनाने हेतु , जीवन काल में कई वर्षो तक कठोर तपस्या कर योगमय जीवन व्यतीत किया है। उन्होंने भगवान् शिव की लगभग 18 वर्षों तक सहृदय आराधना कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास किया। भगवान् शिव ने माता पार्वती को करीब 100 वर्षों के उपरांत अपनी अर्धांगिनी रूप में अपनाकर जीवन व शरीर के प्रमुखतम स्थान में स्थापित किया। जगत में हरियाली तीज के त्यौहार को भगवान् शिव व् माता पार्वती जी के मेल मिलाप का दिन माना गया है। इसलिए इस दिन कुंवारी लड़किया अपने जीवन में शंकर जैसा तेज़, प्रतापी आदि गुणों से युक्त सुयोग्य वर की प्राप्ति हेतु व विवाहित महिलायें दाम्पत्य जीवन में सुख-समृद्धि ,आरोग्यता हेतु व्रत का अनुसरण कर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ती हेतु प्रार्थना करती हैं।
पर्वतों के राजा हिमालय के घर पुत्री रूप में पुनर्जन्म लेने के कारण उनका नाम पार्वती हुआ। वे बालयकाल से ही भगवान् शिव को अपने हृदय में आराध्य रूप में स्थान दे चुकी थी, इसलिए वे बालयकाल से ही आराधना कर उन्हें प्रसन्न करने का नित प्रयास करती थी।
एक दिन भगवान् विष्णु के अनंत भक्त, कुशल सन्देश वाहक नारद जी पर्वतों के राजा हिमालय के घर पधारे। कुछ पल पश्चात हिमालय ने उनसे आने का कारण जानने की इच्छा प्रकट की व पूछा कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ। उनकी इच्छा की प्यास को शांत करते हुए नारद मुनि कहते है कि - हे श्रेष्ठ ! हे विशाल ! मैं आपके समक्ष अपने स्वामी भगवान् विष्णु के द्वारा भेजे गए प्रस्ताव को लेकर प्रस्तुत हुआ हूँ। इस जगत के पालनकर्ता, कल्याणकर्ता, सुख-दुःख के स्वामी विष्णु जी आपकी पुत्री पार्वती से विवाह करने की आकांक्षा रखते है। इस उपलक्ष में मैं आपसे आपकी पुत्री के विवाह करने हेतु मंशा से आया हूँ। उनकी बात को सुनकर पर्वतों के राजा हिमालय अत्यधिक हर्षित होकर नारद जी से कहते हैं कि - हे स्वामी भक्त ! आपका प्रस्ताव उचित है और मेरे लिए यह बहुत ही सौभाग्य की बात है कि मेरी पुत्री का विवाह इस सृष्टि के पालनहार विष्णु जी से होगा। इसके उपरांत हिमालय अपनी पुत्री पार्वती जी का विवाह भगवान् विष्णु से करने हेतु नारद जी को वचन दे देते हैं।
नारद जी तुरंत खुशी में झूमते हुए अपने स्वामी को हिमालय द्वारा दिए गए वचन से अवगत कराते है व उन्हें पूरी वार्ता विस्तार पूर्वक बताते हैं। तत्पश्चात वे झूमते हुए हिमालय की पुत्री पार्वती जी के समक्ष जाकर इस प्रस्ताव को बताते है व उन्हें उनके पिता जी द्वारा दिए गए भगवान् विष्णु व उनके विवाह हेतु वचन से अवगत कराते है।
इस बात को सुनकर माता पार्वती दुखी हो गयी। वे अपनी इस दुविधापूर्ण परिस्तिथि से पार पाने हेतु मार्ग की तलाश करने लगी। एक दिन इन सब परिस्तिथयों व् बंधनो को छोड़ अपनी सखी के साथ एक अरण्य में स्तिथ गुफा में जाकर भगवान् शिव की आराधना में लीन हो गयीं। 18 वर्षों तक तपस्या के पश्चात भगवान् शिव उनसे अत्यधिक प्रसन्न हुए। उनसे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे वरदान मांगने को कहा, फलस्वरूप माता पार्वती ने उन्हें अपने स्वामी बनाने हेतु वरदान की इच्छा जाहिर की, तत्पश्चात शिव जी ने भी अपने वरदान की पूर्ती हेतु माता पार्वती को अपनी अर्धांगिनी रूप में स्वीकार करने का उन्हें वचन दिया।
कुछ दिनों के उपरांत पर्वतों के राजा हिमालय उन्हें ढूंढ़ते हुए उस गुफा में पहुंच गए। वे उनसे वापस घर चलने हेतु आग्रह करते हैं किन्तु माता पार्वती उनके समक्ष एक प्रस्ताव रखती है कि जब आप मेरा विवाह भगवान् शिव से करने का वादा करेंगे, उसके उपरांत ही मैं आपके साथ चलने के लिए राज़ी हूँ। माता पार्वती की बात को अपनाकर वे उन्हें यह वचन देकर घर वापस चलने को कहते है। अतः वे उनका विवाह भगवन शिव से हसी ख़ुशी संपन्न करते हैं। विवाह के दिन उनके मिलन की रात के उपलक्ष में सम्पूर्ण सृष्टि में इस दिन को हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है।
हिन्दू धर्म में हरियाली तीज के व्रत का अनुसरण करने का अत्यधिक महत्व है। कहते हैं जो भी साधक इस व्रत का सहृदय विधिवत रूप से अनुसरण करता है, उसको अपने दाम्पत्य जीवन में सुख-समृद्धि और आरोग्यता की प्राप्ति होती है व जो भी कुंवारी कन्यायें इस व्रत का विधि पूर्वक संकल्प लेती हैं, उन्हें अपने जीवन में भगवान शिव जैसे श्रेष्ठ और तेजस्वी वर की प्राप्ति होती है, साथ ही सदा उन पर भगवन शिव व् पार्वती जी की अनुकम्पा विराजमान रहती है। ईश्वर की कृपा स्वरुप उन्हें जीवन में आने वाली सभी बाधाओं से मुक्ति प्राप्त होती है व् सफलता की प्राप्ति होती है।
हर वर्ष श्रवण माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज व्रत का आगमन होता है। इस वर्ष 23 जुलाई 2020, दिन गुरूवार को हरियाली तीज की शुभ तिथि का आगमन होगा।
हरियाली तीज शुभ तिथि आरम्भ:- 22 जुलाई 2020, सायं काल 07 बजकर 22 मिनट, दिन बुधवार
हरियाली तीज शुभ तिथि समाप्त:- 23 जुलाई 2020, सायं काल 05 बजकर 03 मिनट, दिन गुरूवार