हरतालिका तीज (Hartalika Teej)

Hartalika (Hariyali) Teej

हिंदू धर्म में अनेकानेक व्रत-त्योहार आदि हैं जिसमें प्रायः आगाज करने वाले देवी-देवता ही माने गए हैं। माना जाता है कि एक स्त्री के जीवन में ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार उसके जीवनसाथी यानी उसके पति होते हैं जिसे स्त्री श्रद्धा भाव से देवता के रूप में अपने हृदय में स्थापित करती हैं। अपने पति के दीर्घायु एवं स्वस्थ सुखी संपन्न जीवन हेतु वो अनेकानेक जतन करती है, व्रत उपवास आदि करती हैं जिसमें से हरतालिका तीज का विशेष महत्व है। माना जाता है इस व्रत के माध्यम से ही आदि शक्ति जगदंबा के स्वरूप देवी पार्वती द्वारा भगवान शिव को वर के रूप में प्राप्त किया गया था।

सभी सुहागन महिलाएं हरितालिका तीज के दिन अपने पति की लम्बी उम्र और स्वास्थ्य की कामना करती हैं। हरितालिका तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार यह मान्यता है कि यदि इस दिन जो कोई भी महिला अपने पति के लिए व्रत रखती हैं, उसका पति दीर्घायु होता हैं। भगवान शिव एवं मां गौरी व्यक्तियों को धन-धान्य, सुख-संपत्ति, पुत्र और स्वास्थ्य जीवन का आशीर्वाद देती हैं।  तो आइए जानते हैं हरितालिका तीज का मुहूर्त, पुजा सामग्री व विधि, महत्त्व और इतिहास।

हरतालिका तीज व्रत कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने हेतु घोर तपस्या की थी। उन्होंने तपस्या के दौरान अन्न, जल सभी का परित्याग कर एक सघन गुफा में निरंतर तप किया। माता पार्वती की तपस्या को देख भगवान विष्णु अत्यंत प्रफुल्लित एवं प्रसन्न हुए। उन्होंने श्री नारद के द्वारा माता पार्वती के पिता श्री गिरिराज को भगवान विष्णु एवं माता पार्वती के विवाह हेतु प्रस्ताव भेजा जिसे गिरिराज ने प्रसन्नता पूर्वक भगवान विष्णु के साथ अपनी पुत्री के विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार किया एवं भगवान विष्णु का आभार व्यक्त किया।

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वहीं दूसरी ओर पार्वती की तपस्या के पश्चात भगवान शिव प्रसन्न हुए एवं माता पार्वती को श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को उन्हें दर्शन दिया। वरदान के तौर पर माता पार्वती ने भगवान् शिव स्वयं की भार्या के रूप में स्वीकार करने का वरदान माँगा जिस पर शिव शंभू ने तथास्तु का वचन दिया। इसके बाद तपस्या पूर्ति कर माता पार्वती अपने घर लौट गई।

घर लौटते ही पार्वती के पिता गिरिराज ने भगवान विष्णु एवं पार्वती के परिणय का प्रसंग देवी पार्वती के समक्ष प्रस्तुत किया जिससे देवी पार्वती रुष्ट हो गई और उन्होंने कहा कि मैंने भगवान शिव को अपने स्वामी के रूप में स्वीकार किया है, अतः मैं विवाह केवल भगवान शिव से ही करूंगी और इस बात पर को लेकर माता पार्वती अपने पिता के समक्ष जिद पर अड़ जाती हैं और कहती हैं कि अगर आपने मेरे स्वामी के रूप में भगवान शंकर को स्वीकार नहीं किया तो मैं अपने बचे शेष जीवन को भी उनकी तपस्या में ही झोंक दूंगी। तत्पश्चात आप केवल विलाप करते रहना। यह सुनकर गिरिराज भाव विभोर हो गए एवं उन्होंने पार्वती की जिद को मान लिया।

तत्पश्चात उन्होंने विधि-विधान से भगवान शिव एवं पार्वती का विवाह करवाया। भगवान शिव पार्वती को अपनी भार्या के रूप में पाकर अत्यंत प्रसन्न थे। उन्होंने कहा कि देवी आपके तप के बलबूते पर ही आज हमारा रिश्ता कायम हो पाया है। अतः मैं यह वरदान देता हूं कि जो स्त्री श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को विधिवत तौर तरीके से अपने पति के दीर्घायु एवं सुखद जीवन हेतु पूजा-अर्चना करेंगी, वह आजीवन सुहागन रहेगी एवं उसके पति के जीवन में सब मंगलमय होगा। तब से यह व्रत के तौर पर हर वर्ष हरतालिका तीज के नाम से सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने लगा।

हरतालिका तीज 2020 तिथि एवं शुभ मुहूर्त

हरतालिका तीज हर वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को सुहागन स्त्रियों द्वारा निष्ठा पूर्वक श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। इस वर्ष हरतालिका तीज की तिथि अंग्रेजी कैलेंडर अनुसार 21 अगस्त की निर्धारित है। आइए जानते हैं इस व्रत का आरंभ यानी तृतीया तिथि का आरंभ एवं अंत हेतु समय-

तृतीया तिथि का आरम्भ: 21 अगस्त 2020, प्रातः 02 बजकर 23 मिनट (02:23 am) से
तृतीया तिथि समाप्ति: 21 अगस्त 2020, रात्रि 11 बजकर 02 मिनट पर
प्रातःकाल हरतालिका पूजा मुहूर्त: प्रातः 05:54 से 08:30 तक (कुल अवधि 2 घंटे 36 मिनट)
प्रदोषकाल हरतालिका पूजा मुहूर्त: शाम 06:54 से रात्रि 09:06 तक (कुल अवधि 2 घंटे 12 मिनट)

पर्व विशेष

हरतालिका तीज के एक दिन पूर्व  से ही घर मे एवं स्त्रियों के मन मे रौनक छा जाता है। इस व्रत के एक दिन पूर्व से ही घर में पूजन स्थल आदि की अच्छे से सफाई की जाती हैं। वहीं नवविवाहित महिलाएं इस व्रत को लेकर काफी उत्सुक रहती है। इस दिन महिलाएं मेहंदी अवश्य ही लगाती हैं एवं हरतालिका तीज वाले दिन हेतु झूलन आदि की तैयारी भी करती हैं। तीज के पर्व के दिन प्रात काल में स्त्रियां स्नान कर भगवान सूर्य की पूजा आराधना कर इस दिन का विधिवत तौर पर पूजन करती हैं जिसके लिए स्त्रियां सुहागन के पूर्ण रूप में यानी सोलह श्रृंगार कर तैयार होती हैं। हरतालिका तीज के दिन पति अपनी पत्नी को झूले पर बैठा कर झूला झूलाते हैं। यह पर्व आपके रिश्ते में प्रगाढ़ता लाता है एवं प्रेम से भर देता है।

पूजा सामग्री व विधि

पूजा सामग्री:

कुमकुम, बेलपत्र, कलावा, गुड़हल का फूल, धतूरे का फूल एवं फल, समी के पत्ते, भांग, आंक का पत्ता ता फुल, आम का पता, नारियल, दूर्वा, अक्षत, पान-सुपारी, गंगाजल, जनेऊ, चंदन की लकड़ी, घी या तेल, ज्योत, अगरबत्ती और दक्षिणा आदि।

मिष्ठान की सामग्री:

पांच तरह के फल, पांच तरह के मेवे एवं  पांच तरह के मिठाईयाँ, श्रीफल, जायफल, लौंग, इलाइची, दूध, दही, गन्ने का रस आदि।

माता गौरी को अर्पित करनेवाली सामग्री:

माँ गौरी के लिए सिंदूर, बिंदी, काजल, लाल चुनरी, चौड़ी, मेहंदी एवं सुहाग की सारी चीजें शामिल हैं। इन सभी सामग्रियों को पुजा के स्थान पर एकत्रित करके रख लें।

विधि:

  • व्रतियां सुबह जल्दी उठे और  स्नान के पपश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • भगवान गणेश जी, शिव जी और माँ पार्वती की प्रतिमा के सामने एक चौकी पर अक्षत (चावल) से अष्टदल कमल की आकृति बनाएं और उसपर एक कलश में जल भरकर उस कलश में सुपारी, अक्षत एवं सिक्के डालकर उस चौकी पर रख दें। कलश के ऊपर आम का पत्ता लगाकर उसपर नारियल रखें और बगल में चौकी पर पान के पत्ते पर अक्षत रखें।
  • माँ पार्वती, भगवान शिव और गणेश जी को तिलक लगाएं, साथ ही घी का दीपक जलाएं।
  • तत्पश्चात् भगवान शिव को उनके प्रिया बेलपत्र, धतूरा, भांग, अक्षत, भांग, शमी के पत्ते और जनेऊ चढाएं।
  • माता पार्वती को गुड़हल का फूल और सुहाग की सारी वस्तुएं , फूल एवं माला चढ़ाएं।
  • गणेश जी को दूर्वा और जनेऊ अर्पित करें।
  • भगवान गणेश और माता पार्वती को पीले रंग से रंगा हुआ चावल और शिवजी को सफेद चावल चढ़ाएं। हरतालिका तीज की कथा अवश्य सुने। पूरी पूजा-अर्चना विधिवत् रुप से संपन्न करने के पश्चात मिष्ठान की सारी सामग्रीयों का भोग लगाएं और आरती करें।

हरतालिका तीज व्रत का महत्व

हरितालिका तीज व्रत को शास्त्रों के अनुसार अत्यंत फलदाई माना जाता है। उत्तर भारत में हरतालिका व्रत की बहुत अधिक मान्यताएं हैं। शास्त्रों के अनुरूप ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई कुंवारी कन्या अपने विवाह की कामना के साथ हरितालिका व्रत करती हैं, तो भगवान शिव और माता पार्वती के आशीर्वाद से उस कन्या का विवाह जल्दी हो जाता हैं। साथ ही यह भी माना जाता है कि अगर कोई कुंवारी कन्या अपनी इच्छा के अनुरूप पति की कामना के साथ हरतालिका तीज व्रत करती है, तो भगवान शिव और माता पार्वती के वरदान से उस कन्या की कामना अवश्य पूर्ण होती है।

शास्त्रों के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि जो विवाहित स्त्रियां हरितालिका तीज व्रत को सच्चे मन एवं आस्था से करती है, तो उसे अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

हरतालिका तीज व्रत मुख्य रूप से बिहार,उत्तर प्रदेश,झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान में पूरी आस्था व श्रद्धा से मनाया जाता है। वहीं दक्षिणी राज्यों जैसे- तमिलनाडु, कर्नाटक ,आंध्र प्रदेश, केरल और तेलंगाना में हरितालिका व्रत को गौरी हब्बा के नाम से मानते हैं।

शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जो भी विवाहित महिलाएं हरतालिका तीज व्रत करती हैं, उन्हें अंखण्ड सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त होता हैं। शास्त्रों के अनुसार हरतालिका तीज व्रत का महत्व प्राचीन काल से ही बहुत अधिक रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि हरतालिका तीज व्रत के प्रभाव से कई सौभाग्यवती महिलाओंने अपने पति के प्राणों की रक्षा की हैं।