होली भारत देश का रंगो से भरा एक प्राचीन एवं प्रसिद्द त्योहार है जिसे हर धर्म और जाति के लोग भरपूर जोश एवं हँसी-खुशी के साथ मनाते हैं। यह त्यौहार फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
मीठे पकवान, खुशबु एवं प्यार के रंगो से भरपूर होली का यह पर्व पुराने मनमुटाव एवं बैर को भुला कर भाई-चारे को बढ़ाने का सन्देश देता है। इस दिन हर धर्म एवं समुदाय के व्यक्ति अपने सभी पुराने बैर भुलाकर एक-दुसरे से गले मिलते हैं और एक-दुसरे को प्यार से रंग लगाते हैं।
इस त्यौहार के साथ भिन्न-भिन्न प्रकार की पौराणिक कथाएं जुड़ीं हैं। होली मनाने के एक रात पूर्व होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन से संबन्धित कई कथाएं जुड़ी हुई है जिसमें एक कथा जो सबसे अधिक प्रख्यात है, वो है हिरण्यकश्यप व उसके बेटे प्रह्लाद की।
प्रह्लाद, होलिका और हिरण्यकश्यप
सहस्रों वर्षो पूर्व की बात है जब राजा हिरण्यकश्यप घनघोर अहंकार के बादलों में घिरा हुआ था। वो अपनी मूर्खता एवं विलासिता पर इतना घमंड करने लगा कि वो खुद को भगवान् समझने लगा। वो चाहता था कि सब लोग सिर्फ उसी की पूजा करें न कि किसी और भगवान् की, परन्तु उसका खुद का पुत्र प्रह्लाद भगवान श्री विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था।
हिरण्यकश्यप के बार-बार कहने पर भी जब प्रह्लाद ने भगवान् श्री विष्णु जी की भक्ति एवं पूजा-अर्चना करनी बन्द नहीं की तो उसने अपने बेटे को सजा देने के तौर पर प्रह्लाद को आग में जलाकर भस्म करने की आज्ञा जारी कर दी। राजा की बहन होलिका, जिसे यह ईश्वरीय वरदान प्राप्त था कि वो अग्नि में नहीं जल सकती है, उसे इस आज्ञा के पालन हेतु चुना गया और कहा गया कि वह प्रह्लाद को जलती हुई समाधी में लेकर बैठ जाये ताकि प्रह्लाद जल कर भस्म हो जाए।
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होलिका ने इस आज्ञा का पालन किया और राजा के बेटे को अपनी गोद में लेकर जलती हुई समाधी में बैठ गई। परन्तु एक बहुत ही आश्चर्यजनक घटना घटी, हुआ यह कि होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद प्रभु श्री विष्णु के आशीवार्द से बच गया। यह देखकर हिरण्यकश्यप को अपने पुत्र पर अत्यधिक क्रोध आया। वो अपनी हार को बर्दाश्त नही कर पा रहा था इस वजह से वो संसार मे और भी आतंक मचाने लगा जिसका नाश करना अब अनिवार्य हो गया था।
हिरण्यकश्यप को यह वरदान प्राप्त था कि उसे ना तो दिन के समय मृत्यु आ सकती है और ना ही रात्रि में, ना तो वो जमीन पर मर सकता है और ना ही गगन या पाताल में, ना तो कोई इंसान उसे मार सकता है और ना ही कोई जानवर अथवा पशु- पक्षी। इसीलिए प्रभु श्री हरि विष्णु ने इसका तोड़ निकालते हुए उसे मृत्यु देने के लिए शाम का समय चुना। इसके बाद उन्होंने आधा शरीर शेर का और आधा मनुष्य का धारण कर नृसिंह भगवान् के रूप में अवतार लिया।
नृसिंह भगवान ने उस पापी राजा की हत्या ना तो जमीन पर की और ना आसमान की ऊंचाई में, बल्कि उसे अपनी गोद में लेकर की, उस दुष्ट राजा को ना घर के अन्दर मारा और ना ही बाहर, बल्कि घर की चौखट पर उसका वध किया। तो इस तरह उस निराचारी के वध से बुराई हार गई और अच्छाई की जीत हुई।
इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि एक तरफ प्रह्लाद धर्म के पक्ष में था तो दूसरी तरफ हिरण्यकश्यप व उसकी बहन होलिका दुष्ट निति से धर्म के विरुद्ध कार्य करते थे। अंत में ईश्वरीय कृपा से धर्म के खिलाफ चलने वालों एवं उनका साथ देने वालों, सभी का नाश हुआ। इससे हमें यही सीख लेनी चाहिए जहाँ एक ओर जहाँ प्रह्लाद प्यार, स्नेह, ईश्वरीय विश्वास, दृढ निश्चय एवं श्रद्धा का सूचक है तो वहीं दूसरी ओर हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका बैर, घृणा दुष्टता, विकार एवं अधर्म के सूचक हैं।
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वर्ष 2021 होली के पर्व हेतु भिन्न-भिन्न कर्मों के अलग-अलग मुहूर्त है जिसमें पूजनकर्म का होना अनिवार्य माना जाता है। तो आइए जानते ये शुभ मुहूर्त-
रंग वाली होली तिथि: 29 मार्च 2021, दिन सोमवार
होलिका दहन तिथि: 28 मार्च 2021, दिन रविवार
होलिका दहन मुहूर्त: शाम 06 बजकर 39 मिनट से रात्रि 8 बजकर 55 मिनट तक।
भद्रा पूंछ: प्रातः 10 बजकर 12 मिनट से प्रातः 11 बजकर 14 मिनट।
भद्रा मुख: प्रातः 11 बजकर 14 मिनट से दोपहर 01 बजकर 01 मिनट तक।
पूर्णिमा तिथि का आरंभ: 28 मार्च तड़के सुबह 3 बजकर 27 मिनट (03:27am)
पूर्णिमा तिथि की समाप्ति: 28 मार्च देर रात्रि 12 बजकर 17 मिनट (29 मार्च 2021 00:17am)
होलिका पूजन
हिन्दू धर्म में पूजनकर्म हेतु शुभ मुहूर्त का विशेष महत्व है। तो आइए होली के शुभ मुहूर्त पर विशेष विधि-विधानों से पूजन कर सौभग्य के पात्र बनें। इसके लिए होलिका दहन के पूर्व ही होलिका पूजन का विधिपूर्वक आरम्भ करना चाहिए।
यह पूजन आप अपने घर पर अथवा किसी सार्वजानिक जगह पर भी कर सकते हैं। प्रायः लोग इस पूजा को अपने घर की बजाय सार्वजानिक जगहों पर ही करते हैं। इस दिन लोग सामुहिक तौर पर मंदिर या सड़क के चौराहों पर गोबर के कंडो, गुलरी और लकड़ियों से होलिका को सजाते हैं।
शाम के समय होलिका दहन से पहले पूजा हेतु सही मुहूर्त में एक थाली में साबुत हल्दी, रोली, थोड़े फूल, माला, थोड़े चावल, मुंग, थोड़े बताशे, कच्चा सूत, एक नारियल एवं एक लोटा जल लेकर बैठना चाहिए। इसके अलावा किसी एक नई फसल की बालियां में चने या गेहू की बालियां भी थाली में होनी चाहिए।
होलिका पूजन संध्या के समय की जाती है। इसके लिए ध्यान रहे कि पूजा के समय आपका मुख पूर्व अथवा उत्तर की दिशा की ओर ही हो।
सबसे पहले भगवान श्री गणेश का ध्यान करें। इसके पश्चात भगवान नरसिंह का स्मरण करते हुए होलिका पर रोली, हल्दी, मुंग, चावल एवं बताशे चढ़ाएं। तत्पश्चात जल अर्पण करें और इसके बाद होलिका की गोल परिक्रमा करते हुए उसपर कच्चा सूत लपेटे। ध्यान रहें कि आपको यह परिक्रमा सात बार करनी है। इसके बाद होलिका पर प्रह्लाद का नाम लेकर फूल अर्पण करें और फिर भगवान नरसिंह को याद करते हुए नए अनाज की बालियां चढ़ाएं।
पूजन कर्म के बाद अपना और अपने परिवार का नाम लेकर प्रसाद अर्पित करें और फिर दहन के समय होलिका की परिक्रमा करें। इसके बाद होलिका पर गुलाल डालें और फिर अपने वरिष्ठों के चरणों में गुलाल डाल उनका आशीष प्राप्त करें।
होलिका पूजन बुराइयों के नाश एवं सत्य की स्थापना का त्योहार है। होलिका पूजन समस्त परिवार वालों को सुख, समृद्धि एवं शान्ति प्रदान करती है। कुछ इलाकों में लोग इस दिन व्रत भी धारण करते हैं जिसे होलिका दहन के बाद ही खोला जाता है।
होलिका पूजन पर भद्रा के समय का विशेष तौर पर ध्यान रखें। भद्रा के समय होलिका पूजन नहीं किया जाता।
होली हिन्दू धर्म का एक बड़ा एवं विशेष पर्व है जो पूरे भारतवर्ष में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। तो जाहिर सी बात है कि भारत विविधता में एकता का राष्ट्र है तो अलग-अलग स्थानों पर पूजा के विधि-विधान भी भिन्न होंगे किन्तु इसका महत्व और उद्देश्य सत्य एवं प्रेम की जय ही है।
होली के मंत्र
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