आज के समय में हर व्यक्ति अपने मन की शांति के लिए न जाने कितने यज्ञ-हवन, पूजा-पाठ आदि करवाता है। हिन्दू धर्मशास्त्रों में पितरों व पूर्वजों की मुक्ति व शांति तथा अपने मन की शांति के लिए कई व्रत और उपवास के नियम बताए गए हैं जिनमें से एक है इंदिरा एकादशी व्रत। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने से पितरों व पूर्वजों को मुक्ति व शांति मिलती है, तथा व्यक्ति के स्वयं के पापों का भी नाश हो जाता है, इसीलिए इस एकादशी का हिंदू धर्म में बहुत महत्त्व है। यह एकादशी श्राद्ध के समय पड़ती है। पितृपक्ष में आने की वजह से इंदिरा एकादशी को पितरों की मुक्ति हेतु सबसे अच्छा दिन माना जाता है।
इस एकादशी को लेकर यह मान्यता है कि यदि कोई पूर्वज किसी कारणवश हुए अपने पाप कर्मों के कारण यमराज द्वारा अपने कर्मों का दंड भोग रहे हैं, तो इस एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत द्वारा उसका फल पितरों को प्रदान कर दें, तो इससे पितरों को यमराज द्वारा दी जाने वाली पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है। यदि इस व्रत को पूरी निष्ठा से किया जाये तो फलस्वरूप स्वयं के लिए भी स्वर्गलोक के द्वार खोल जा सकते हैं। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। शास्त्रों में अन्य एकादशी व तिथियों से अधिक महत्व पितृपक्ष में पड़ने वाली इसी इंदिरा एकादशी का बताया गया है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार इस व्रत को अश्वमेध यज्ञ के सामान महत्ता दी गयी है। तो आइए जानते है सर्वप्रथम इंदिरा एकादशी व्रत से जुड़ी कथा -
इंदिरा एकादशी की व्रत कथा का महाभारत में भगवान कृष्ण और कुंती पुत्र युधिष्ठिर के संवाद द्वारा बखान किया है। धर्मराज युधिष्ठिर भगवान कृष्ण से कहते है कि हे प्रभु ! आश्विन मास की कृष्ण एकादशी क्या नाम है? इसकी विधि व इससे प्राप्त होने वाले फल के बारे में बताइये।
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भगवान श्रीकृष्ण जी बोले कि इस एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी से पापों का नाश होता है और पितरों व पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके पश्चात भगवान कृष्ण बोले कि - हे राजन! ध्यानपूर्वक इसकी कथा सुनो। इसके सुनने मात्र से ही व्यक्ति धन्य हो जाता है।
प्राचीनकाल में जब सतयुग का समय था, उसी समय महिष्मति नामक एक राज्य में इंद्रसेन नामक एक राजा राज करता था। वो अपनी प्रजा का बहुत खयाल रखता था। उसके पास धन-दौलत तथा पुत्र व पौत्रों की कोई कमी नहीं थी। वह भगवान श्री हरी विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। एक दिन की बात है, राजा अपने मंत्रियों सहित सभा में बैठा था तभी सभा में गगन मार्ग से उतरकर महर्षि नारद मुनि पधारे। जैसे ही राजा ने उन्हें देखा, वह उनके सम्मुख हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और फिर विधि के अनुसार राजा ने उनका सत्कार किया व उन्हें आसन पर बिठाया।
सम्मान से बैठने के पश्चात नारद मुनि ने राजा से प्रश्न किया कि हे राजन! क्या आपके सातों अंग कुशलता से तो कार्य कर रहे हैं? क्या आपकी मति धर्म में तथा आपका ध्यान प्रभु विष्णु की ओर रहता है? देवर्षि नारद के मुख से ऐसे वाक्य सुनकर राजा महर्षि नारद से बोला- हे महर्षि ! आपकी दया दृष्टि से मेरे इस राज्य में सब कुशल मंगल है तथा मेरे राज्य में यज्ञ आदि होते रहते हैं। आप कृपया मुझे अपने यहां पधारने का सही कारण बताइये। तब महर्षि बोले- हे राजन ! अब आप मेरे इन अचंभित करने वाले वचनों को ध्यानपूर्वक सुनिए।
एक बार मैं ब्रह्मलोक से यमलोक की ओर गया था। वहाँ मैंने यमराज के आगे श्रद्धापूर्वक सत्यवान और धर्मशील धर्मराज की प्रशंसा की। तभी मेरी नजर यमराज की उसी सभा में आपके धर्मात्मा और महान ज्ञानी पिता पर पड़ी जो एक एकादशी का व्रत भंग होने के कारणवश वहाँ पर थे। उन्होंने मुझे आपके लिए जो सन्देश दिया है, वो मैं आपको बताने जा रहा हूँ। उन्होंने मुझसे कहा कि पूर्व जन्म में मेरे द्वारा कोई त्रुटि हो जाने की वजह से आज मैं यहाँ यमराज के पास हूँ। तो हे पुत्र यदि तुम मेरे लिए आश्विन कृष्ण पक्ष का इंदिरा एकादशी व्रत पुरे विधि विधान और भक्ति भाव से संपन्न करोगे तो ही मैं स्वर्गलोक में जा सकता हूँ।
इतना सुनते ही राजा बोला- हे महर्षि ! कृपया आप मुझे इस व्रत की विधि बताइये। महर्षि राजा को व्रत की विधि बताने लगे, जो निम्न प्रकार हैं-
इंदिरा एकादशी व्रत की विधि
इन बातों का रखें विशेष ध्यान
इसके पश्चात नारद जी ने राजा से कहा कि - हे राजन ! यदि तुम आलस्य को त्यागकर इस विधि द्वारा एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता को अवश्य ही स्वर्गलोक की प्राप्ति होगी। इतना कहकर महर्षि नारद अंतर्ध्यान हो गए।
नारद जी के कहे अनुसार राजा ने अपने बंधु- बांधवों तथा दासों सहित एकादशी का व्रत किया जिसके कारण आकाश से उस पर पुष्पवर्षा हुई और राजा के पिता गरुण की सवारी कर स्वर्गलोक की और चले गए। सुखपूर्वक राज्य करके राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से अंत में अपने पुत्र को सिंहासन सौंप कर स्वर्गलोक को सिधार गया।
भगवान श्रीकृष्ण आगे बोले - हे युधिष्ठिर ! इस इंदिरा एकादशी की कथा जो मैंने तुम्हें सुनाई है। इसके पढ़ने या सुनने मात्र से ही मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और सभी प्रकार के सुखों को भोगकर मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
वर्ष 2020 में 13 सितंबर दिन रविवार को इंदिरा एकादशी की शुभ तिथि है।
इंदिरा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त
व्रत का आरम्भ: 13 सितंबर 2020 प्रातः 04 बजकर 15 मिनट से
व्रत का समापन: 14 सितंबर 2020 सुबह तड़के 03 बजकर 18 मिनट पर
पारण (व्रत तोड़ने का समय): 14 सितम्बर 2020 दोपहर 01 बजकर 31 मिनट से दोपहर 03 बजकर 55 मिनट तक।
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