हिंदू धर्म में अनेकानेक प्रकार के पर्व, त्योहार, व्रत आदि निहित है जिसमें से एकादशी को अन्य सभी व्रतों में उच्चतम स्थान का दर्जा दिया गया है। शास्त्रों में वर्णित है कि महर्षि वेदव्यास द्वारा वेदों की संरचना में एकादशी व्रत के पुण्य फल के अंश भी निहित थे।
भगवान श्री हरि विष्णु के भक्तों में शिरोमणि कहलाने वाले देवर्षि नारद को एकादशी व्रत के माध्यम से ही भगवान श्री हरि विष्णु की भक्ति की प्राप्ति हुई थी। एकादशी व्रत प्रत्येक वर्ष में 24 बार आता है। वहीं मलमास पड़ने पर यह वर्ष में 26 बार आता है। इनमें सभी व्रतों के अलग-अलग नाम एवं भिन्न-भिन्न महत्व, प्रक्रिया व प्रभाव हैं जिसमें जया एकादशी का अलग एवं विशेष महत्व है। तो आइए आज हम जानते हैं जया एकादशी हेतु तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा व कुछ विशेष-
जया एकादशी व्रत कथा
जया एकादशी व्रत कथा का वर्णन 18 पुराणों में से एक पद्मपुराण में वर्णित है। इसमें माघ महीने के शुक्ल पक्ष में मनाई जाने वाली जया एकादशी का वर्णन करते हुए कहा गया है कि एक बार देवराज इंद्र अपनी इच्छानुसार नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे और गंधर्व उनकी सेवा हेतु संगीत का गायन कर रहे थे। उन गंधर्वों में प्रख्यात पुष्पदंत एवं उसकी पुत्री पुष्पवती साथ ही चित्रसेन और उसकी पत्नी मालिनी भी सम्मिलित थे। इसके अलावा वहां पर चित्रसेन-मालिनी पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी शामिल थे।
गंधर्व कन्या पुष्पवती, माल्यवान के उज्जवल रूप को देख उस पर मुग्ध हो गई और उसे अपने वशीभूत करने हेतु उस पर अपने मोहक बाण छोड़ने लगी। उसने अपने आकर्षक रूप और सौंदर्य के बल पर माल्यवान को अपने वश में कर लिया। पुष्पवती अति सौंदर्य कन्या थी। इसके पश्चात वे अब इंद्रदेव को खुश करने हेतु गायन करने लगे परंतु मोहजाल में बंधे होने के कारण उनका ध्यान भटक चूका था जिस वजह से वे सही प्रकार से नहीं गा पा रहे थे और साथ ही उनके सुर-ताल भी मोह के जाल में बंधे होने की वजह से सहीं नहीं निकल रहे थे।
बिगड़े सुर-ताल एवं गायन ठीक प्रकार से ना होने की वजह से इंद्रदेव उन दोनों के प्रेम को भांप गए और उन्होंने इसे अपना अपमान समझ उन्हें दंड स्वरुप शाप दे दिया और कहा कि तुमने मेरे आदेश सही प्रकार से पालन नहीं किया है इसलिए मैं शाप देता हूँ कि अब तुम दोनों तुरंत स्त्री-पुरुष के रूप में धरती पर पिशाच रूप निवास करोगे और अपनी गलती का फल भोगोगे।
इंद्रदेव द्वारा शापित होने पर वो दोनों बहुत निराश हो गए और दंड को भोगने हेतु हिमालय के पर्वत पर पीड़ाजनक जीवन यापन करने लगे। उन्हें सुगंध, रस-पान एवं स्पर्श आदि किसी के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं रहा। वहाँ उनको अनेकानेक दुखों का सामना करना पड़ा। उन्हें एक पल के लिए भी नींद का सुख प्राप्त नहीं हो पाता था।
अनेकानेक दुखों से पीड़ित होकर पिशाच ने एक दिन अपनी पिशाचिनी से कहा कि ना जाने हमने पिछले जन्म में हमने ऐसे कौन-से दुष्कर्म किए थे, जिसके फलस्वरूप हमें इस पीड़ा से भरे हुए पिशाच योनि की प्राप्ति हुई, इससे बेहतर तो होता कि हमें नर्क की पीड़ा भुगतने की सजा मिल जाती। इसलिए अब हमें किसी भी तरह का पाप करने से बचना चाहिए। यही सोचते-सोचते वो दोनों अपने दिन गुजार रहे थे।
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संयोग वश एक दिन माघ के महीन की शुक्ल पक्ष की जया नामक एकादशी आई। उस दिन उन दोनों ने कुछ भी नहीं खाया था और ना ही कोई अनैतिक कार्य किया था। उन्होंने सिर्फ फल-फूल का सेवन कर उस दिन को बिताया और संध्याकाल के समय दुःखी मन लिए पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गए। वह सूर्यास्त का काल था और सूर्य ढल रहा था। उस रात्रि बहुत ही कड़ाके की ठंड थी, तेज शीत लहर चल रही थी जिस वजह से दोनों परेशान होकर बेसुध अवस्था में एक दूसरे से लिपट कर रात गुजार रहे थे। उस रात वो सो भी नहीं पाए।
जया एकादशी के उपवास और पूरी रात के जागरण के फलस्वरूप सुबह होते ही उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई। अपने असली रूप में वापिस आ बेहद सौंदर्य गंधर्व स्त्री अप्सरा की देह धारण किये सुंदर वेशभूषाओं से सुसज्जित हो साथ ही अपने आकर्षित रूप में माल्यवान दोनों मिलकर स्वर्गलोक की ओर चल पड़े। उस दौरान गगन में देवगण उनकी वंदना करते हुए उन पर फूल बरसाने लगे।
स्वर्गलोक पहुंचकर दोनों ने देवराज इंद्र का वंदन किया। देवराज इंद्र उन दोनों को अपने असली रूप में देखकर बहुत ही आश्चर्यचकित हो उनसे उनके शाप से मुक्ति पाने एवं अपने असली रूप में आने का राज पूछा।
माल्यवान उत्तर देते हुए बोले कि प्रभुत विष्णु की कृपादृष्टि और जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से हम आपके दंड से मुक्त हो पिशाच देह छोड़ अपने असली रूप में आये हैं। यह सुन इंद्र बोले भगवान नारायण की कृपा और एकादशी का व्रत धारण से सिर्फ आपकी पिशाच योनि ही नहीं छोटी बल्कि हम सब लोग भी पूजनीय हो गए हैं क्योंकि श्री विष्णु और भोले शंकर दोनों के भक्त हम लोगों के वंदनीय हैं, इसलिए आप धन्य है।
भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है - जया एकादशी के व्रत से बुरी योनि से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। इसलिए जो भी मानव इस एकादशी का व्रत करता है उसे एक साथ यज्ञ, जप, दान आदि का शुभ फल प्राप्त होता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार जया एकादशी हर वर्ष माघ महीने के शुक्ल पक्ष को मनाई जाती है। वहीं ग्रगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर वर्ष जनवरी या फरवरी महीने में मनाई जाती है। इस वर्ष 2021 में जया एकादशी का पर्व 23 फरवरी को मनाया जायेगा। आइये देखें इसके लिए शुभ मुहूर्त-
एकादशी तिथि का आरम्भ: 22 फरवरी 2021 शाम 05 बजकर 16 मिनट से।
एकादशी तिथि का समापन: 23 फरवरी 2021 शाम 06 बजकर 05 मिनट पर।
पारण (व्रत खोलने) का समय: 24 फरवरी 2021 प्रातः 06 बजकर 52 मिनट से 09 बजकर 08 मिनट तक।
क्या करें जया एकादशी पर विशेष?
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