भारतीय हिंदू धर्म में अनेकानेक प्रकार के व्रत पर्व त्योहार आदि मनाए जाते हैं जिसमें ज्येष्ठ पूर्णिमा का विशेष महत्व है। माना जाता है कि ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन स्नान-ध्यान एवं दान से मनुष्य के सभी दोषों का नाश हो जाता हैं, और साथ ही पितरों से जुड़े दोष भी समाप्त होते हैं। आज के दिन किए जा रहे शुभ कर्मों से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह दिन जीवन में सकारात्मकता शिरोधार्य करने का होता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा के अन्य कई खास महत्व भी हैं। चूँकि आज ही के दिन कबीर जयंती भी मनाई जाती है, यह दिन कबीरपंथियों के लिए खास होता है। साथ ही ज्येष्ठ पूर्णिमा की तिथि को ही हर वर्ष वट पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। इसके अलग-अलग धार्मिक महत्व है। इस दिन महिलाओं का व्रत करना काफी फलदाई सिद्ध होता है। तो आइए जानते हैं इस वर्ष 2021 में ज्येष्ठ पूर्णिमा की तिथि मुहूर्त एवं महत्व।
कुछ खास तथ्य
इन दिनों वातावरण में कुछ अमूलभूत परिवर्तन हो रहे होते हैं। हिंदू पंचांग के मुताबिक जेष्ठ माह हिंदू वर्ष का तृतीय मास होता है। इस कालखंड में पृथ्वी को प्रचंड गर्मियों का सामना करना पड़ता है। कई नदियां तालाब सरोवर भी सूख जाते हैं अथवा उनका जलस्तर घटने लगता है जिससे जल की कमी बढ़ती है। अतः हिंदू धर्म में जल के महत्व को समझाने हेतु जेष्ठ मास में जल से संबंधित कई व्रत उपवास जैसे गंगा दशहरा, निर्जला एकादशी आदि निहित किए गए हैं।
पौराणिक ऋषि-मुनि एवं विज्ञान विज्ञेता इन व्रत उपवास आदि के माध्यम से जल संसाधन के सीमित उपयोग एवं उसके महत्व को समझाने का प्रयत्न करते हैं। भारत में इस दिन श्रद्धालु गंगा नदी से जल लेकर अमरनाथ यात्रा हेतु निकलते हैं।
सामान्यतः ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन सभी व्यक्ति गंगा स्नान अथवा किसी पवित्र नदी तालाब आदि में स्नान करते हैं एवं भगवान शंकर तथा विष्णु की षोडशोपचार पूजन विधि द्वारा पूजा कर दान आदि के शुभ कर्म को करते हैं। इस दिन जरूरतमंदों तथा गरीबों में अन्न एवं वस्त्र का दान करना विशेष फलदाई होता है। इससे आपके जीवन में कभी भी आर्थिक संकट नहीं आते एवं पारिवारिक माहौल भी खुशियों से भरा पूरा रहता है।
वट पूर्णिमा व्रत विधान
ज्येष्ठ पूर्णिमा की तिथि को वट पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन फलाहार कर व्रत रखती हैं एवं विशेष पूजन क्रियाकलाप करती हैं।
पूजन कर्म हेतु महिलाएं पवित्र नदी में स्नान अथवा नहाने के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करती हैं। तत्पश्चात पवित्र भाव से नए वस्त्र धारण कर विशेष पूजा आराधना करती है जिसमें दो बांस की टोकरी ली जाती है। इसमें से एक टोकरी में सात प्रकार के अनाज लिए जाते हैं जिसे लाल रंग के कपड़े से ढका जाता है। वहीं दूसरी टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा, अक्षत, मौली, जल, कुमकुम आदि रखा जाता है। इसे भी लाल रंग के कपड़े से ढक दिया जाता है।
तत्पश्चात सुहागन महिलाएं वट वृक्ष के समीप जाकर वहां देवी सावित्री की प्रतिमा रखकर अक्षत, पुष्प, कुमकुम, जल आदि से पूजा करती हैं। तत्पश्चात लाल रंग की मौली/कलावा से वटवृक्ष को बांधते हुए सात बार परिक्रमा करती हैं।
परिक्रमा पूर्ण होने के पश्चात देवी सावित्री की कथा सुनने का विधान है जिसके बाद वट वृक्ष एवं देवी सावित्री से प्रार्थना कर अपनी पति की दीर्घायु एवं सुखी सफल दांपत्य जीवन की कामना करती हैं। तत्पश्चात गरीबों तथा जरूरतमंदों में क्षमता अनुसार दान दक्षिणा आदि प्रदान किए जाते हैं।
वट पूर्णिमा का व्रत हर वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा की तिथि को ही मनाया जाता है। विशेष तौर पर यह व्रत महाराष्ट्र, गुजरात तथा दक्षिण के कुछ विशेष राज्यों में विधि विधान से मनाया जाता है।
उत्तर भारत में इसे जेष्ठ माह के वट सावित्री व्रत के रूप में मनाया जाता है। वट सावित्री का व्रत जेष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाने वाले वट सावित्री व्रत का लघु स्वरूप होता है। इस दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र एवं सुख समृद्धि की कामना करते हुए व्रत को धारण करती हैं।
जैसा कि नाम से ही पता चलता है जेष्ठ पूर्णिमा यानी जेष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि। जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हर वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के रूप मनाया जाता है। इस वर्ष हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसकी तिथि 24 जून 2021 की है।
पूर्णिमा तिथि आरम्भ: 24 जून तड़के सुबह 03 बजकर 32 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्ति: मध्यरात्रि 12 बजकर 09 मिनट (25 जून 00:09am) पर।
कबीर जयंती
ज्येष्ठ पूर्णिमा की तिथि को ही कबीरपंथियों के आदि गुरु कबीरदास का जन्म हुआ था। कबीर दास धर्म, जात-पात मोह-माया के बंधन से परे थे। इन्होंने ना केवल एक विशेष धर्म के स्वरूप की स्थापना की, अपितु इन्होंने धर्म आध्यात्मिक को एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया। इन्हेंने हर धर्म पर अपने कटाक्ष कर उन्हें पवित्र एवं वास्तविक स्वरूप प्रदान करने हेतु अनेकानेक जतन किये। कबीरदास को संत समाज एक आदर्श के रूप में मानता है, साथ ही आध्यात्मिक जगत के बड़े-बड़े विज्ञेता कवि, दोहाविज्ञ आदि कबीर को अपना आदर्श गुरु मानते हैं। उनके दोहे एवं काव्य श्रृंखला विश्वभर में प्रचलित है।