हिन्दू धर्म में स्त्रियों के लिए अपने सुहाग की रक्षा हेतु अनेक व्रतों का प्रावधान है। वे अलग-अलग रूपों में व्रत का अनुसरण कर अपने पति परमेश्वर की लंबी आयु व सलामती हेतु तप करती है। भारतीय संस्कृति में हर माह में एकादशी, अख तीज, हरतालिका तीज, करवा चौथ आदि व्रतों की मान्यता है जिनका स्त्रियों द्वारा अपने सुहाग की रक्षा हेतु अनुसरण किया जाता है। इसी प्रकार हिन्दू धर्म में वर्ष में चार तीज का आगमन होता है, हरियाली तीज, हरतालिका तीज, अक्ख तीज और कजरी तीज। इसी प्रकार तीज का त्योहार भी स्त्रियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए आज हम जानते हैं हिन्दू धर्म में कजरी तीज का महत्व।
मान्यता है कि यह दिन हिन्दुओं में अधिक प्रचलित है। इस व्रत का अनुसरण सुहागिनें अपने पति परमेश्वर की लंबी आयु व अपने वैवाहिक जीवन में सुख-शांति हेतु करती हैं व कुंवारी लड़कियां इस व्रत का अनुसरण अपने मनचाहे वर की प्राप्ति हेतु करती हैं। कहा जाता है कि पार्वती जी ने 108 वर्षों तक भगवान भोलेनाथ को वर रूप प्राप्ति हेतु कठोर तप किया। इसके उपरांत ही भोलेनाथ ने उनसे प्रसन्न होकर पार्वती जी को अपनी अर्धांगिनी बनाया। कजरी तीज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने पार्वती जी को अर्धांगिनी रूप में स्वीकार किया था।
एक बार एक नगर में धनी साहूकार रहा करता था। वह अपने जीवन को परिवार सहित बहुत ही हँसी-खुशी गुजार रहा था। उसके जीवन में सात संतानों का सुख था। उसकी सभी संताने हँसी-खुशी अपना जीवन यापन कर रही थी, किन्तु उसका एक बेटा जन्म से ही अपाहिज था। उसको जन्म से ही कई बुरी आदतें थी। वह नित्य मदिरा का सेवन कर वैश्यालय जाया करता था। उसकी एक पत्नी थी। वो अपने पति का परमेश्वर की भांति ख्याल रखती थी। कभी-कभी तो वह स्वयं अपने पति को मदिरा पीने के लिए दिया करती थी व स्वयं अपने साथ लेजाकर उसे वैश्यालय छोड़कर आया करती थी।
एक दिन कजरी तीज के दिन भी वह अपने पति को मदिरा का सेवन करा, उसे वैश्यालय में छोड़ कर स्वयं पड़ोस की एक नदी के समीप बैठ गई। थोड़ी देर बाद वहां पर तेज़ वर्षा होने लगी। तभी वहां उस नदी में दूध से भरा दोना उसके समक्ष बहता हुआ आया। उसने उस दूध से भरे दोने को हांथ में लेकर पी लिया। इसके बाद ईश्वर की महिमा उस पर इस प्रकार बरसी की उसका वैवाहिक जीवन सुखमय व खुशहाली से जगमगा उठा। उसके पति की सभी बुरी आदतें एक एक कर समाप्त हो गई और उसकी वैश्यालय जाने की आदत भी समाप्त हो गई। उसका अपनी पत्नी के प्रति प्रेम भाव बढ़ गया और वह अपना अधिक से अधिक समय पत्नी के साथ व्यतीत करने लगा। इस प्रकार वह सभी कुमर्गों को छोड़ सन्मार्ग की ओर बढ़ने लगा और अपने जीवन का सदुपयोग करने लगा। तत्पश्चत ईश्वर की कृपा मानकर उसकी पत्नी कजरी तीज का व्रत विधि पूर्वक रखने लगी।
कजरी तीज व्रत की अन्य मान्यताएं
पुरातन काल में भारतीय मूल में कजली नामक एक घना जंगल हुआ करता था। उस जंगल पर दादुराई नामक राजा का शासन था। वहां की जनता अपने पालनकर्ता से बहुत खुश व संतुष्ट रहती थी। इसलिए उस जंगल समीप सभी जगह एक उमग की लहर हमेशा विचरण करती थी। आस पास के लोग उस कजरी जंगल के नाम पर तरह तरह के गीत गाया करते थे जिससे दूर-दूर तक लोग उनके ग्राम के नाम को जाने व उनके ग्राम का नाम प्रचलित हो सके।
किन्तु कुछ समय पश्चात वहां के राजा ददुराई की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के शोक में महारानी ने भी उसी अग्नि में स्वयं को समाहित कर लिया। उस ग्राम वासियों ने यह विषाद के दिन कजरी राग की रचना कर अपने राजा व रानी को श्रद्धांजलि अर्पित की। कहते हैं कि तभी से उस दिन को कजरी तीज के नाम से जाना जाता है ।
इस दिन भगवान शिव व पार्वती जी की आराधना की जाती है। साधक को भगवान शिव व पार्वती की प्रतिमा अपने पूजा स्थल पर स्थापित करना चाहिए। पूजा स्थल पर उस दिन लाल या पीला रंग का कपड़ा ही बिछाएं। भगवान शिव व पार्वती जी को सर्वप्रथम जल अर्पित कर उनका पूजन करें। कहते हैं कि पार्वती जी के पूजन हेतु 16 सामग्री की आवश्यकता होती है। संपूर्ण सामग्री को एकत्र कर माता पार्वती व शिव का पूजन करना चाहिए तथा शिव जी को दूध, जल, धतूरा आदि का भोग लगा शिव-पार्वती की आराधना करनी चाहिए व उनकी कथा का संध्यकलीन पाठ करना चाहिए।
1) सुहागिनों को इस दिन निर्जला व्रत धारण कर इस व्रत का अनुसरण करना चाहिए व गर्भवती महिलाओं को फलाहार ग्रहण कर व्रत को रखने की अनुमति है।
2) इस व्रत को धारण करने वाले साधक को स्वछता का अधिक ध्यान देना चाहिए।
3) सुबह उठकर पूजा स्थल को गंगा जल से पवित्र कर पूर्व की दिशा में बैठकर ईश्वर का स्मरण करना चाहिए।
4) पूर्व की दिशा में गाय के ताजे गोबर की सहायता से पृथ्वी पर एक गोला बनाएं।
5) उस गोले को तालाब की भांति दूध व जल से पोषित करें।
6) पूजा की थाली में संपूर्ण सामग्री रखकर उसमे दीपक को प्रज्वलित करें।
7) उस थाल से विधिवत रूप से सभी सामग्री को गोबर से बनाए तालाब में अर्पित करें ।
8) तत्पश्चात दीपक को निकालकर उस गोबर के तालाब किनारे रख दीजिए ।
9) उसके बाद नीमड़ी माता की पूजा अर्चना कर अपने पति परमेश्वर के चरण स्पर्श कर उनके हांथ से ही जल ग्रहण करना चाहिए।
10) जल ग्रहण कर ही अपने व्रत का पारायण करना चाहिए।
इस वर्ष भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष को कजरी तीज व्रत की शुभ तिथि 6 अगस्त 2020 है।
कजरी तीज व्रत में पूजन का शुभ मुहूर्त
कजरी तीज व्रत तिथि आरंभ:- 05 अगस्त 2020 रात्रिकालीन 10 बजकर 50 मिनट से
कजरी तीज व्रत तिथि समाप्त:- 07 अगस्त 2020 मध्यरात्रि 12 बजकर 14 मिनट (00:14 am) पर
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