कालाष्टमी

Kalashtami

हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव के आदि स्वरूप काल भैरव का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। इसी कारण प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि कालाष्टमी व्रत धारण किया जाता है।

इस वर्ष के ज्येष्ठ मास में अर्थात जून के महीने में काला अष्टमी का व्रत 2 जून को निर्धारित है। आज के दिन काल भैरव की व्रत, पूजा-आराधना  आदि का विधान धर्म ग्रंथों में निहित है। आषाढ़ मास में आने वाला कालाष्टमी का व्रत विशेष महत्व रखता है। इस दिन लोग काल भैरव के साथ साथ मां दुर्गा की भी पूजा आराधना करते हैं।

तो आइए जानते हैं कालाष्टमी व्रत के पीछे के कथात्मक तथ्यों को साथ ही कालाष्टमी व्रत रखने की विधि, पूजा हेतु शुभ मुहूर्त एवं इस व्रत के विशेष विधि विधान के संबंध में-

व्रत कथा

कालाष्टमी व्रत के संबंध में शिव पुराण में यह उल्लेख मिलता है कि एक बार जब देवताओं के बीच संगोष्ठी चल रही थी, उसी मध्यस्थ किसी ने यह प्रश्न किया कि देवों में सर्वश्रेष्ठ कौन है? तत्पश्चात भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा दोनों ने ही स्वयं को श्रेष्ठ बताते हुए अपने आप को सर्वश्रेष्ठ देव बताया। दोनों स्वयं को एक दूसरे से अधिक प्रबल एवं गुणवान बताने लगे। इन्हीं सब के मध्यस्त देखते ही देखते भगवान श्री हरि विष्णु एवं ब्रह्मा के बीच वाद-विवाद छिड़ गया एवं युद्ध आरंभ हो गया।

तत्पश्चात नारद मुनि ने दोनों की युद्ध के निवारण हेतु एक सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि इस प्रश्न का उत्तर क्यों ना धर्म के आधार, सृष्टि के मूल स्वरूप, सभी देवी-देवताओं के आदि ग्रंथ वेद शास्त्र से इसका उत्तर पूछा जाए। तत्पश्चात यह तय हुआ कि सभी देवों में सर्वश्रेष्ठ कौन है, इस प्रश्न का उत्तर वेद से पूछा जाएगा।

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वेद से प्रश्न करने के पश्चात वेद ने सभी देवों में सर्वश्रेष्ठ देवों के देव महादेव को बताया। वेद के अनुसार जिसके अंदर चराचर संसार, भूत, भविष्य तथा वर्तमान समाहित है, जो अनादि, अनंत संग अविनाशी है। केवल वही यानी भगवान भोलेनाथ ही चहुँ लोक में सर्वश्रेष्ठ है। इस पर ब्रह्माजी कुपित हो गए और फिर ब्रह्माजी के 5वें मुख ने वेद के उत्तर का प्रत्युत्तर देते हुए कहा कि संसार में सदा-सर्वदा के लिए सर्वश्रेष्ठ केवल मैं ही हूं। साथ ही उन्होंने महादेव की अवहेलना भी की।

ब्रह्मा जी के इस बर्ताव से वेद के साथ-साथ अन्य देवी-देवतागण भी दुखी हुए। कुछ ही क्षणों में वहां भगवान शंकर के स्वरूप रुद्र का अवतरण हुआ। रुद्र के अवतरण के पश्चात ब्रह्मा जी का पांचवा मुख और भी अधिक घमंडी एवं क्रोधी स्वभाव में शंकर के रौद्र रूप से कहता है कि तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो, तुम्हारे अधिक रूदन की क्रिया की वजह से ही मैंने ही तुम्हारा नाम रूद्र भी रखा है। तुम्हारी उत्पत्ति से लेकर नामकरण तक की क्रियाकलाप मेरे कारण हुई है। इसलिए, तुम श्रेष्ठ कदापि नहीं हो सकते। तुम्हें तो मेरी सेवा सुश्रुषा करनी चाहिए एवं मेरी आज्ञा का पालन करना चाहिए।

भगवान ब्रह्मा के इस बर्ताव से शंकर जी को क्रोध आ गया एवं उन्होंने स्वयं के अंदर से भैरव स्वरूप की उत्पत्ति की। भैरव की उत्पत्ति के पश्चात भगवान शंकर ने भैरव को आदेश दिया वो जाकर ब्रह्मा जी पर शासन करे एवं उनकी सत्यप्रवृत्तियों को जागृत करने की चेष्टा करे। किंतु भगवान ब्रह्मा के पांचवे मुख के बड़बोले स्वभाव को भैरवनाथ सहन ना कर पाए और उन्होंने अपने बाहिने हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से ब्रह्मदेव के पांचवें मुख को धड़ से अलग कर दिया जिससे भगवान शंकर को भैरवनाथ पर क्रोध आया। उन्होंने भैरवनाथ से कहा कि तुम्हें ब्रह्मदेव पर शासन कर उनकी सत्य प्रवृत्तियों का जागरण करना था, ना कि उनके शीश का हरण!

तत्पश्चात भैरवनाथ में अपनी त्रुटि हेतु क्षमा याचना की जिसके बाद आदिनाथ भगवान शंकर ने भैरव को काशी जाकर ब्रह्महत्या से मुक्ति प्राप्त करने का मार्ग बताया। भगवान शंकर ने भैरव को काशी का कोतवाल निर्धारित किया। यही कारण है कि आज भी काशी में भगवान शंकर के भैरव स्वरूप की कोतवाल के रूप में पूजा आराधना की जाती है। बाबा विश्वनाथ के दर्शन के पूर्व कोतवाल स्वरूप भैरव नाथ का दर्शन अनिवार्य माना जाता है अन्यथा विश्वनाथ जी के दर्शन को अधूरा माना जाता है। ब्रह्मदेव के शासन हेतु जिस दिन भगवान शंकर के भैरव स्वरूप का अवतरण हुआ था, वह तिथि कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी। इसी कारण इस दिन को भैरव के अवतरण दिवस के रूप में जाना जाता है।

शुभ मुहूर्त

किसी भी पूजन कर्म में शुभ मुहूर्त तथा तिथि विशेष महत्व रखता है। कालाष्टमी व्रत हेतु हिंदू पंचांग अनुसार कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानी 2 जून 2021 की तिथि निर्धारित है। अतः इस दिन उपयुक्त शुभ मुहूर्त में ही आप पूजन की क्रिया कलाप को संपन्न करें। इस माह अष्टमी तिथि 2 जून की शुरुआत में रात्रि 12 बजकर 46 मिनट (2 जून 00:46am) से शुरू होगी एवं देर रात्रि 01 बजकर 11 मिनट (03 जून 01:11am) तक रहेगी। व्रतधारी आज के दिन किसी भी समय कालाष्टमी पूजन कर सकते हैं।

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पूजा विधि

  • कालाष्टमी व्रत के 1 दिन पूर्व ही सूर्यास्त के पश्चात अन्न, जल का परित्याग कर दें।
  • साथ ही मन ही मन व्रत हेतु संकल्प धारण करें।
  • दूसरे दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में नित्य क्रिया आदि से निवृत्त होकर किसी पवित्र स्थान नदी या तालाब में स्नान करें।
  • तत्पश्चात भगवान शिव का रुद्राभिषेक करें।
  • आज के दिन षोडशोपचार पूजन विधि द्वारा भैरव जी की पूजा आराधना करें।
  • उन्हें फूल, अक्षत, चंदन, पान, सुपारी, मिठाई आदि समर्पित कर उनकी पूजा आराधना करें।
  • तत्पश्चात अपने पितरों का तर्पण भी करें।
  • आज के दिन भगवान भैरव की के इस मंत्र का उच्चारण करें।

अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!

  • इस दिन अन्न तथा तामसिक चीजों का भूलकर भी  का सेवन ना करें।
  • फलाहार अथवा जलाहार से अपना पूरा दिन व्यतीत करें।
  • कालाष्टमी व्रत में रात्रि की पूजा का विशेष महत्व है।
  • कालाष्टमी व्रत पर रात्रि में जागरण किया जाता है, साथ ही भगवान शिव के भैरव स्वरूप के भजन कीर्तन गाए जाते हैं।
  • कालाष्टमी की रात्रि को भगवान शंकर के भैरव स्वरूप के साथ साथ देवी पार्वती एवं शंकर की भी पूजा-आराधना की जाती है।
  • कालाष्टमी व्रत की मध्यरात्रि को शंख, घंटा, नगाड़ा आदि बजाकर भैरव नाथ की आरती की जाती है।
  • इस रात्रि में काल भैरव के समक्ष सरसों के तेल में दीपक जलाएं एवं उनकी भक्ति करें।
  • दूसरे दिन प्रातः काल अपनी क्षमता अनुसार गरीब तथा जरूरतमंदों में दान देकर अपने व्रत खोलें।
  • कालाष्टमी व्रत के पारण में कुष्ठ रोग से पीड़ित तथा दुखी कष्ट से ग्रसित लोगों को दान देने से आपके जीवन की सभी बाधाएं, दुख, कष्ट समाप्त होती है, एवं कभी जीवन में पीड़ा सहन नहीं करना पड़ता है।

क्या करें विशेष?

  • भैरवनाथ का वाहन 'श्वान’ (कुत्ता) होता है। अतः इस दिन विशेष तौर पर श्वान अर्थात कुत्ते को अच्छा भोजन कराएं।
  • माना जाता है श्वान को इच्छित भोजन कराने से भैरव जी अति शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
  • कालाष्टमी व्रत के दिन 21 बिल्वपत्रों पर  'ॐ नम: शिवाय' लिखकर सभी बिल्बपत्रों को शिवलिंग पर चढ़ाने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है
  • इस दिन भैरव बाबा की चालीसा के पाठ का विशेष लाभ मिलता है। अतः इसे अवश्य करें।
  • कालाष्टमी व्रत के दिन मां दुर्गा की पूजा आराधना का भी विशेष महत्व है। अतः आज के दिन भैरव बाबा के साथ-साथ मां दुर्गा की भी पूजा करें। इससे आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी।
  • कालाष्टमी व्रत पर माँ दुर्गा, भगवान शिव तथा गौरी एवं भैरव बाबा के कथा का श्रवण पान करें। इससे आपकी जीवन में सकारात्मकता बरकरार रहेगी एवं उन्नति के मार्ग सदैव खुले रहेंगे।
  • कालाष्टमी व्रत पर भगवान भैरव को चने-चिरौंजी, पेड़े, उड़द की दाल से बनी मिष्ठान दूध, दही-बड़े, मेवा आदि अति प्रिय है, अतः आप अपनी इच्छा अनुसार इच्छित पदार्थ का भगवान भैरव को भोग अवश्य ही लगाएं।