आज समाज में घृणा, विक्षोभ से लेकर विग्रह जैसी अनेक कष्टकारक, दुर्भाग्यपूर्ण प्रतिक्रियाएं उत्पन्न होती जा रही है। आज मानव अपनी बाहरी जिंदगी को सुख पूर्ण बनाने हेतु अपने दृष्टिकोण को दूषित कर लोभ व लालच को जन्म देकर, अपनी अपेक्षाओं की पूर्ति हेतु संकीर्ण स्वार्थपरता, निष्ठुर अनुदारता, अनीति, आक्रमकता आदि का मार्ग अपनाता है। वर्तमान परिदृश्य में समाज और विश्व के सम्मुख उपस्थित छोटी-बड़ी अनेका अनेक समस्याएं विपत्तियों और विभीषिकाओं का आधारभूत कारण एक ही है, मानव की मानसिक चेतना का पथ भ्रष्ट होना।
यह माना जाता है कि मनुष्य का जीवन वर्तमान से पहले इतना उलझन भरा कभी नहीं था। मनुष्य का मन निरंतर उलझन, चिंता व परेशानियों में व्यस्त रहता है। उसके मन में निरंतर अशांति व घृणा की ज्वाला नित्य चलती रहती है जिससे उसके जीवन का आनंद रस सूखकर उसकी मानसिक स्थिति को प्रभावित करता है। इसी प्रकार कह सकते हैं कि शारीरिक कष्टों की पीड़ा के समांतर मानसिक पीड़ा का दुख अधिक होता है।
हिंदू धर्म में वर्तमान परिदृश्य को स्मरण करते हुए पुरातन काल में ही विभिन्न समस्यायों के निवारण हेतु अनेकानेक प्रबंध कर दिए थे। हिंदू धर्म में हर माह में 2 तथा वर्ष में 24 एकादशी का प्रावधान है। किसी विशेष वर्ष में इनकी संख्या में बढ़ोत्तरी भी हो जाती है। ऐसा माना जाता है कि इन दिनों जो भी भक्त सहृदय भगवान विष्णु की आराधना करते हैं, ईश्वर अपने भक्तों के सभी कष्टों का निवारण करते हैं एवं उन्हें सदा सन्मार्ग पर चलने के लिए पथ प्रदर्शित करते हैं। इसी संदर्ह में आइए जानते हैं कि क्या है श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की कामिका एकादशी और इसका महत्त्व।
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महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित महाभारत के अनुसार यह वार्ता महाभारत काल खंड की है। एक बार की बात है, ज्येष्ठ कुंती पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर एवं भगवान श्री कृष्ण के बीच व्रत आदि के तथ्यों को लेकर वार्ता चल रही थी। इसी मध्य धर्मराज युधिष्ठिर के मन में एक प्रश्न आया और उन्होंने श्री कृष्ण से कहा - हे माधव, मैंने कई एकादशी व्रत के संबंध में सुना है, एवं कईयों के व्रत नियमों का पालन भी किया है, किंतु मुझे श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के संबंध में कोई भी जानकारी नहीं है। अतः कृपा कर मुझे श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के संबंध में विस्तार पूर्वक बताएं।
धर्मराज युधिष्ठिर के प्रश्न को सुनकर भगवान श्री कृष्ण ने कहा - हे धर्मराज, तुम्हारा प्रश्न वाकई प्रशंसनीय है। एक बार इसी प्रश्न के संबंध में महर्षि नारद ने ब्रह्मा जी से भी वार्ता की थी। मैं तुम्हें ब्रह्मदेव का उत्तर सुनाता हूँ। तत्पश्चात श्री कृष्णा ने कहा - जब ब्रह्माजी ने नारदजी के प्रश्न को सुना था तो उन्होंने भी इस प्रश्न की प्रशंसा की और यह बताया कि श्रावण मास के कृष्ण पक्ष में मनाई जाने वाली एकादशी तिथि को कामिका एकादशी के नाम से जाना जाता है।
कामिका एकादशी के संबंध में यह कहा जाता है कि कामिका एकादशी संपूर्ण सृष्टि के पालन पोषण कर्ता भगवान श्री हरि विष्णु के चक्रधारी रूप के पूजन-आराधना हेतु मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु के सभी रूपों को पूजा जाता है, विशेष रूप से विष्णु जी के वास्तविक विराट चक्रधारी स्वरूप को का पूजन किया जाता है जिसमें श्री हरि विष्णु के वास्तविक स्वरूप चक्रधारी रूप में अवतरित रहते है।
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कहते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना व अराधना करने व भगवान विष्णु की कथा सुनने मात्र से वाजपई यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। जो फल अनेक तीर्थस्थलों पर स्नान करने से नहीं प्राप्त होता, व सूर्य व चन्द्र का आवाहन कर स्नान करने से प्राप्त नहीं होता, वह चक्रधारी भगवान विष्णु की कथा सुनने मात्र से प्राप्त होता है। अतः आप भी कामिका एकादशी व्रत विधि विधान से अवश्य करें।
पौराणिक कथा
कहा जाता है कि पुरातन काल में किसी नगर में एक क्रोधी क्षत्रिय व ब्राह्मण रहते थे। दोनों ही आपस में ज्यादा वार्ता नहीं करते थे किन्तु एक दिन जब वे दोनों वार्ता कर रहे थे तो आपस में दोनों की झड़प हो गई। दोनों में अथाह हाथापाई के बीच ब्राह्मण की मृत्यु हो जाती है। मृत्यु के उपरांत वह क्रोधी क्षत्रिय ब्राह्मण की हत्या का अपने आप को दोषी मानते हुए उसका क्रियाक्रम करने को कहता है। किन्तु वहाँ उपस्थित सभी मुनियों ने उसे ब्रह्म हत्या का दोषी ठहराते हुए उसे क्रियाक्रम करने मना कर दिया।
तो वह क्षत्रिय मुनियों से विनम्र पूर्वक ब्रह्म हत्या से मुक्ति का उपाय पूछता है। तब वहां उपस्थित मुनियों ने उसे श्रवण मास में कृष्ण पक्ष की कामिका एकादशी व्रत रख कर भगवान विष्णु की आराधना करने का उपाय बताया था। इसके उपरांत क्षत्रिय ने व्रत का अनुसरण कर भगवान विष्णु की आराधना की, उसकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने प्रत्यक्ष रूप में उस क्षत्रिय को दर्शन देकर उसे ब्रह्महत्या से मुक्ति प्रदान कि।
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कहा जाता है कि भगवान विष्णु सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता व पालन करते हैं। उनकी आराधना जब भी कोई साधक सहृदय करता है तो उसके द्वारा समस्त जगत के देवी-देवताओं की आराधना अपने आप हो जाती है। कामिका एकादशी का मानव जीवन में अधिक महत्त्व है क्योंकि जिस प्रकार मानव आज आपने बाह्य जगत में पूर्णतः लीन है, वह बाहरी सुख हेतु किसी भी प्रकार से लाभ उठाने में प्रयासरत रहता है।
आज स्वार्थ के आड़े वो अपने सगे सम्बन्धी, रिश्ते-नाते सभी को दाव पर लगा कर अपने को प्रबल बनाने में लगा हुआ है जिस कारण वह दूसरों को दुख, पीड़ा देकर स्वयं अहंकार, अभिमान का रसपान कर रहा है। वह दिनोंदिन अपने पापों का घड़ा भरने में तत्पर है। इसीलिए इस पापी घड़े को पापमुक्त करने हेतु भगवान विष्णु की आराधना श्रवण मास के कृष्ण पक्ष की कामिका एकादशी का व्रत कर व विधिवत पूजा करने वाले साधक के जीवन में सम्पूर्ण पापों से मुक्ति प्रदान करती हैं। कहते है कि यह व्रत ब्रह्म हत्या जैसे पापों से भी मुक्ति प्रदान करता है।
वर्ष 2020 में श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की 16 जुलाई अर्थात गुरुवार को कामिका एकादशी की शुभ तिथि है।
कामिका एकादशी व्रत आरंभ:- 15 जुलाई 2020, रात 10 बजकर 21 मिनट से।
कामिका एकादशी व्रत समाप्ति:- 16 जुलाई 2020, अर्धरात्रि 11 बजकर 45 मिनट पर।
पारण (व्रत तोड़ने का समय):- 17 जुलाई 2020 प्रातः 05 बजकर 58 मिनट से प्रातः 08 बजकर 19 मिनट।