हिंदू धर्म की शाखाएं विभिन्न क्षेत्रों में फैली हुई है और इसकी जड़ें कई सदियों पूर्व से मानी जाती हैं। हिंदू धर्म की संस्कृति में प्रत्येक दिन, माह, वर्ष सभी विलक्षण मान्यताओं से युक्त हैं। सनातन धर्म में प्रत्येक दिन अलग- अलग देवी-देवताओं के दिवस के रूप में निहित है। इसी प्रकार एक माह में 2 एकादशी , कुल वर्ष में 24 एकादशी रूप में ईश्वर के प्रति साधक व्रत पूर्ण कर अनुराग अर्पित करता हैं। इसी प्रकार हर माह संक्रांति का भी जीवन में अधिक महत्व है।
अगर हम संक्रांति पर दृष्टिगत करते हैं तो हर माह में संक्रांति का शुभ अवसर आता है। संक्रांति का मूल अर्थ है संक्रमण अर्थात जाना। इसी के समांतर सूर्य जब किसी एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो वह संक्रांति कहलाती है। जिस प्रकार हर माह में राशि परिवर्तित होती है, उसी प्रकार माह में सक्रांति होती है, अर्थात एक वर्ष में 12 संक्रांति आती है, जैसे :- कर्क संक्रांति, मकर संक्रांति, धनु संक्रांति आदि। हम सब मकर सक्रांति से पूर्णतः अवगत होते हैं किन्तु किसी और संक्रांति से अनभिज्ञ होते हैं। हमारा यही मानना होता है कि वर्ष में सिर्फ एक ही संक्रांति होती है। किन्तु हिंदू धर्म में मकर संक्रांति व कर्क संक्रांति का सामान ही महत्व है। ये दोनों ही समान होकर भी धरती असमान से अंतर रखती है। एक उत्तर है तो दूसरी दक्षिण, एक पॉजिटिव है तो दूसरी नेगेटिव, एक पर दानवों का अधिपत्य है तो दूसरी पर देवों का, एक स्वर्ग है तो दूसरा नर्क आदि। दोनों ही एक दूसरे की विपरित हैं।
क्या है कर्क संक्रांति?
जब सूर्य उत्तरायण में होता है तो वह मकर सक्रांति कहलाती है, तथा जब सूर्य दक्षिणायण में होता है तो वह कर्क संक्रांति कहलाती है। जब सूर्य उत्तर दिशा में होता है तो वह उतरायण कहलाता है यथावत दक्षिण दिशा में होने पर दक्षिणायण होता है। ऐसी मान्यता है कि उत्तरायण में दिन बड़े होते है और दक्षिणायण में रात बड़ी होती है। कहते हैं कर्क संक्रांति या दक्षिणायण में देवता निद्रा के लिए चले जाते हैं और सभी कार्यभार त्रिकालदर्शी देवाधिदेव महादेव के हांथों सौंप देते हैं। दक्षिणायण को पुराणों के अनुसार पितृयान भी कहते हैं। इस माह को पितृों के लिए समर्पित करते हैं, इसलिए इस माह में मंगल कार्यों को करना वर्जित होता है।
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इस वर्ष श्रवण माह के कृष्ण पक्ष की 16 जुलाई, दिन बृहस्पतिवार को दक्षिणायण या कर्क सक्रांति मनाई जाएगी। हिंदी पंचांग के अनुसार इस दिन ही सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करेगा जिसके चलते उत्तरायण या मकर संक्रांति का अंत व दक्षिणायण का आरम्भ होगा।
पुण्य काल अवधि:- प्रातः 05 बजकर 35 मिनट से प्रातः 11 बजकर 02 मिनट तक
महा पुण्य काल अवधि:- प्रातः 08 बजकर 47 मिनट से प्रातः 11 बजकर 02 मिनट तक
इन देवताओं कि करें आराधना
कर्क संक्रांति में शिव जी की आराधना करना फलदाई व शुभ माना गया है। ऐसी मान्यता है कि जो भी साधक सहृदय शिव जी की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है व मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस माह में सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु देवता आराम करने हेतु सम्पूर्ण सृष्टि को त्रिकालदर्शी महादेव के सहारे छोड़ कर निद्रा ग्रहण करने चले जाते हैं। इसलिए इस माह में भगवान शिव की आराधना करना शुभ माना जाता है।
1) प्रातः काल उठकर ईश्वर को स्मरण करें, तत्पश्चात घर को स्वच्छ कर सूर्य देवता को जल अर्पित करें।
2) घर में पूजा स्थल पर महाकाल का जाप करें तथा उनकी पूजा करें।
3) शिवलिंग पर नित जलाभिषेक करें व मस्थक पर तिलक कर बेलपत्र अर्पित करें।
4) शिवमहापुराण व शिव स्त्रोत की कथा का नित पाठ करें।
5) विशेषकर हरी सब्जियों व पत्तेदार सब्जियों का कम से कम आहार ले व मांसाहार ग्रहण न करें।
6) पूजा के पश्चात गुड़ को प्रसाद रूप में वितरण करें व सेवन करें।
कर्क संक्रांति के आगमन से होता है स्वर्ग का द्वार बंद
ऐसी मान्यता है कि कर्क संक्रांति में दानवों का प्रभाव देवताओं पर अधिक ही जाता है। इस कारण कर्क संक्रांति के आते ही स्वर्ग का मार्ग बंद हो जाता है। कहा जाता है कि महाभारत में भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था जिस कारण महाभारत के युद्ध में गंधिव धारी अर्जुन के वाणों से छलनि होने पर भी वे तब कुरुक्षेत्र में वाणों की शय्या पर विराजमान रहे क्योंकि जिस समय उन्हें अर्जुन के वाणों ने छलनी किया था, स्वर्ग के रास्ते खुलने में समय था या यह कह सकते है कि मकर सक्रांति आने में कुछ देर थी। इसी प्रकार उन्होंने मकर संक्रांति के प्रथम दिन ही अपने प्राणों को अंतिम विदाई दी।
कर्क संक्रांति का हिंदू धर्म में अधिक मान्यता है क्योंकि इस दिन जो साधक हृदय पूर्वक दान व शुभ कर्म करता है, उसके जीवन की सभी अड़चने अपने आप ही समाप्त हो जाती है तथा सभी पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। पुराणों के अनुसार इस दिन विशेषतः शहद का प्रयोग लाभकारी माना जाता है। मान्यता है कि इसके प्रयोग मात्र से ये सम्पूर्ण जीवन की खटास को मिठास में बदल देता है ।
कर्क संक्रांति के दिन गंगा स्नान या किसी भी सरोवर में स्नान करने का अधिक महत्व है। स्नान के उपरांत सूर्य को जल अर्पित करने का भी प्रचलन है। इसके उपरांत सूर्य देवता का आवाहन कर सूर्य चालीसा व सूर्य देवता के मंत्र का पाठ करना चाहिए। इस दिन आस-पास के गरीबों व ब्राह्मणों को अक्षत, भोजन , दाल, कपड़े आदि दान करने का महत्व है। कहते हैं कि इस दिन दान देने से हमारे पितरों को मुक्ति प्राप्त होती है।