करवा चौथ का व्रत कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को हर वर्ष पूरे देशभर की सुहागिन महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। करवा चौथ में महिलाएं निर्जला व्रत रख अपने पति के दीर्घायु होने तथा स्वस्थ, सुखी एवं संपन्न जीवन की कामना करती हैं।
करवा चौथ का व्रत विवाहितों के बीच प्रेम भाव को बढ़ाता है एवं विवाहित दंपति आजीवन एक दूसरे का साथ निभाने की कामना करते हैं। हालांकि कुछ कुँवारी लड़कियां भी इस व्रत को अच्छे पति के प्राप्ति की कामना पूर्ति हेतु रखती हैं।
आइए जानते हैं इस वर्ष करवा चौथ के लिए क्या है शुभ मुहूर्त, साथ ही व्रत के पीछे के मर्म को भी जानेंगे।
ज्योतिष अतिथि एवं गणना अनुसार इस वर्ष करवा चौथ रविवार, दिनांक 24 अक्टूबर 2021 को सुहागन स्त्रियों द्वारा मनाया जा रहा है।
करवा चौथ पूजन मुहूर्त:- शाम 05 बजकर 43 मिनट से शाम 06 बजकर 59 मिनट तक
व्रत आरम्भ:- प्रातः 06 बजकर 27 मिनट
व्रत समाप्ति:- रात 08 बजकर 07 मिनट
चंद्रोदय का समय:- रात 08 बजकर 07 मिनट पर
चतुर्थी तिथि आरम्भ:- 24 अक्टूबर 2021 तड़के सुबह 03 बजकर 02 मिनट से
चतुर्थी तिथि समाप्ति:- 25 अक्टूबर प्रातः 05 बजकर 43 मिनट पर
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बात इंद्रप्रस्थपूर की है। बहुत पहले वहाँ एक वेद शर्मा नामक साहूकार रहा करता था। वह काफी धनी व्यक्ति था। उसके सात पुत्र और एक पुत्री थी। 7 पुत्रों में एक एकलौती पुत्री होने के कारण उसकी पुत्री घर की लाडली थी। धीरे-धीरे उसकी पुत्री लाड़-प्यार में पली बढ़ी और एक दिन उसका विवाह हो गया।
विवाह के कुछ वर्ष बाद कि बात है, साहूकार की पुत्री करवा चौथ के व्रत के समय अपने मायके आई हुई थी। उस दौरान व्रत की काल अवधि के बीच में ही अधिक भूख-प्यास की वजह से वह चक्कर खा कर नीचे गिर गई जिससे उसके भाइयों से अपनी बहन की यह स्थिति देखी नहीं गई। उन सातों ने एक योजना तैयार की, जिसके तहत एक भाई बरगद के पेड़ के पीछे एक दीपक जला छलनी लगाकर खड़ा हो गया। वहीं अन्य भाई अपनी बहन को छत पर ले जाकर चांद के निकल आने के बारे में कहते है।
तत्पश्चात वे अपने बहन से चंद्रमा की पूजा अर्चना व अर्घ्य जल अर्पित करवाते है और उनकी बहन भूलवश उस दीपक की लौ को चाँद मान अर्घ्य अर्पित कर भोजन करना आरंभ कर देती है। जैसे ही वह अपना पहला निवाला लेना चाहती है उसे अशुभ संकेत मिलने शुरू हो जाते हैं जिस पर उसने ध्यान नहीं दिया। पहले निवाले में बाल मिलता है, तो दूसरे में छींक आ जाती है। वहीं तीसरे निवाले में उसे उसके ससुराल से बुलावा आता है कि उसके पति का देहांत हो गया है। इस बात से उसकी बहन अधीर होकर रोने लगती है और कहती है ऐसा करवा चौथ व्रत के दिन मेरे साथ ही क्यों हुआ।
इंद्रानी यानी देवराज इंद्र की पत्नी से उसका विलाप सहन नहीं होता है और प्रकट होकर उसे उसकी भूल का आभास कराती हैं। उससे हर वर्ष करवा चौथ का व्रत एवं हर मास चौथ का व्रत करने की सलाह देती है। तत्पश्चात साहूकार की बेटी अत्यंत ही लग्न, जतन व श्रद्धा भाव से व्रत पूरा करती है। फिर उसके पति के प्राण वापस आ जाते हैं।
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करवाचौथ पर श्रृंगार
करवा चौथ पर विवाहित महिलाएं सोलह श्रृंगार में सज कर तैयार होती हैं। इस दिन महिलाओं का श्रृंगार खास मायने रखता है जिसमें मेहंदी लगाना इस त्योहार का एक अहम हिस्सा होता है। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि मेहंदी का रंग आपके वैवाहिक जीवन की खुशहाली को प्रदर्शित करती है। हाथों के मेहंदी का गहरा रंग आपके पति के प्रेम की गहराई को दर्शाता है।
इस दिन के व्रत का विधि-विधान 1 दिन पूर्व से ही आरंभ हो जाता है। 1 दिन पूर्व की रात्रि में महिलाएं सरगी का भोजन तैयार करती हैं जिसमें वे करवा चौथ के दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सरगी ग्रहण करती हैं अर्थात फलाहार आदि का पान करती हैं। तत्पश्चात वे पूरे दिन-रात रात्रि के चाँद निकलने तक व्रत रख अनवरत निर्जला व्रत करती हैं।
फिर रात्रि में चंद्रमा के निकलने के बाद वे एक थाली में दीपक जला चंद्र देव को अर्घ्य प्रदान करने हेतु अर्घ्य का जल एवं अन्य पूजन सामग्री लेकर सोलह श्रृंगार से तैयार होकर चंद्रमा के दर्शन करती हैं और चंद्रदेव को अर्घ्य प्रदान करती हैं। फिर उनकी पूजा अर्चना कर अपने पति का आशीर्वाद लेती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। तत्पश्चात अपने पति के हाथों से जल पीकर विवाहित स्त्रियां अपना व्रत खोलती है
इस प्रकार श्रद्धा भाव से पूजन कर्म को संपन्न करती हैं। कुछ सुहागन जिनके पति कहीं दूर रहते है, वो अपने पति की तस्वीर की आरती कर भाव पूर्वक व्रत खोलती है।