कृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami)

Krishna Janmashtami

भारत ऋषि-महर्षि एवं देवी-देवताओं की भूमि है जिसे नदियों के रूप में ममत्व का श्रृंगार एवं प्रहरी के रूप में हिमालय सा पिता मिला मिला है। यहां नर में नारायण एवं नारी में लक्ष्मी को देखने की प्रेरणा दी जाती है। देश के 33 कोटि के देवी-देवताओं की छत्रछाया एवं कृपादृष्टि निरंतर दिनरात बरसती है।

भारतीय संस्कृति विश्व की विशालतम संस्कृति में से एक है। इसकी जड़ें कई हजार वर्षों पुरानी मानी जाती हैं। हमारे धर्म में, प्रकृति के हर उपहार का देवी-देवताओं के समान पूजन किया जाता है। जैसे - सूर्य देवता, पृथ्वी माता, गौ माता, चंद्रमा देवता, वरुण देवता आदि का ईश्वर की भांति हम पूजन करते हैं। इसी प्रकार हम अपने जीवन में अपने अनेक प्रकार के पापों से मुक्ति प्राप्त करने हेतु या अपने जीवन के सन्मार्ग हेतु हम सब अपने भगवान के अनेक रूपों आराधना करते हैं। जिस प्रकार हम धन की प्राप्ति हेतु लक्ष्मी माता की आराधना करते है,  ज्ञान की प्राप्ति हेतु हम सरस्वती माता की आराधना करते हैं, भय से मुक्ति पाने हेतु हम बजरंगवाली की आराधना करते हैं, ठीक उसी प्रकार हमें जिस चीज की सहायता या आवश्यकता या पथ निर्देशन की आवश्यकता होती है, हिंदू धर्म में भगवान के उस रूप की हम आराधना करने लगते है।

हिंदू धर्म की ये मान्यता है कि हमारे सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जी की रचना चक्रधारी विष्णु जी ने कि थी। विष्णु जी को ही हमारे संपूर्ण जगत का पालनकर्ता माना जाता है। इस धरा पर जो भी साधारण मानुष के जीवन में षम-विषम परिस्थितियां, लाभ-हानि, दुख-सुख आदि प्रकट हो रहे हैं, वह सब प्रभु की महिमा व अनुकम्पा का ही परिणाम है। कहते हैं कि भगवान स्वयं इस धरा पर अनेक रूपों में जन्म लेकर इस धरा से दुष्टों व असुरों का संहार कर धर्म को स्थापित करते हैं। जगत में स्वयं ही सुख-समृद्धि की वर्षा कर, अधर्म पर धर्म को विजय दिलाकर, धर्म का बखान करते हैं।  भगवान विष्णु ने त्रेता युग में रामायण में भगवान राम के रूप में जन्म लेकर संपूर्ण जगत में असुरों का अंत कर धर्म को स्थापित किया था। इसी प्रकार द्वापर युग में श्री कृष्ण के रूप में जन्म लेकर पांडवों को अधर्म पर धर्म की विजय दिलाने में उन्हें धर्म का पाठ पढ़ाया था।

इस धरा पर हर प्रतिकूल परिस्थिति में स्वयं देवी-देवता संघार करने अवतरित हुए हैं जिसमें भगवान विष्णु के अवतारों में से एक कृष्ण का अवतार है जिसके अवतरण दिवस को ना सिर्फ भारत में बल्कि विश्व के अन्य कई देशों में भी जन्माष्टमी त्योहार के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। आइए जानते हैं जन्माष्टमी पर्व के पीछे के मर्म को।

जनमाष्टमी कथा

बात द्वापर काल की है जब धरती पर कंस के अत्याचारों से चारों ओर कोहराम मचा था। आम जनमानस से लेकर ऋषि-मुनि तक त्राहिमाम-त्राहिमाम की श्रीहरि से गुहार लगा रहे थे। तब भगवान श्री हरि विष्णु, कृष्ण के रूप में कंस की बहन देवकी की आठवीं संतान बन कारागृह में अवतरित होते हैं। यह काल भादौ मास की अष्टमी तिथि का होता है जब देवकी की आठवीं संतान का जन्म होता है।

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कंस देवकी की आठवीं संतान का वध करने को तत्पर रहता है जिस कारण अपने पुत्र की रक्षा हेतु देवकी के पति वासुदेव कृष्ण को एक टोकरी में लेकर रातों-रात यमुना पार कर अपने मित्र नंद के घर नंदगांव जाते हैं तथा नंद बाबा और यशोदा को अपनी आठवीं संतान सौंप कर लौट आते हैं। देवकी की कोख से जन्मे और यशोदा के महत्त्व में पले संतान ने आम जनमानस की पीड़ा हरने का कार्य किया। साथ ही अंत में कंस की हत्या कर लोगों को नव जीवन प्रदान किया। इस कारण भगवान श्री हरि विष्णु के कृष्ण अवतार को कृष्णाष्टमी जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा।

भगवान कृष्ण की अनेक रूपों में वंदना

भगवान विष्णु का द्वापर युग के अवतार भगवान कृष्ण के रूप में इस धरा पर बहुत ही लोकप्रिय, प्रशंसनीय व पूजनीय है। इस धरा पर भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं, क्रीड़ाओं का व समय अनुसार बुद्धि विवेक का प्रयोग अति लोकप्रिय है। बचपन में गोपियों संग रासलीला, सुदामा संग गहन मित्रता, महाभारत में अर्जुन को धर्म व कर्तव्य निष्ठा के उपदेश, युद्ध की कुशल नीति आदि बहुत ही प्रसिद्ध है। जन्म से मृत्यु तक अपनी लीलाओं से कृष्ण ने मथुरा के साथ संपूर्ण जगत का मनमोह लिया था, इसलिए जिस दिन वह जन्मे थे, उस दिन को सभी जगह कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मथुरा गोकुल आदि संपूर्ण जगत में एक उमंग, हर्षोल्लास व खुशी की लहर रंग जाती है। कहीं रंगों से होली खेली जाती थी, तो कहीं फूलों से एक दूसरे का अभिवादन, तो कहीं लट्ठ मार होली का प्रचलन है। इसी उपलक्ष में श्री कृष्ण के भक्तजन उपवास रखकर सदा ईश्वर की कृपा हेतु , ईश्वर के प्रति अपना अनुराग अर्पित करते हैं।

क्यों मनाते है कृष्ण जन्माष्टमी ?

कृष्ण जन्माष्टमी, भगवान श्री कृष्ण के धारा पर अवतरण होने का दिन माना जाता है। यह मान्यता है कि श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी में रोहिणी नक्षत्र की मध्य रात्रि में हुआ था। ऐसी मान्यता है कि अगर जिस वर्ष इस दिन रोहिणी नक्षत्र का आगमन हो तो यह बहुत ही शुभ मुहूर्त माना जाता है। ये विशेष मुहूर्त कई वर्षों में ही आता है।

जन्माष्टमी तिथि एवं शुभ मुहूर्त

कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि प्रारम्भ:- 11 अगस्त - प्रातः 09 बजकर 06 मिनट से
कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि अंत:- 12 अगस्त 2020 प्रातः 11 बजकर 15 पर

रोहिणी नक्षत्र का आरम्भ:- 13 अगस्त 2020 तड़के 03 बजकर 27 (03:27 am) मिनट से
रोहिणी नक्षत्र समाप्ति:- 14 अगस्त 2020 प्रातः 05 बजकर 22 मिनट पर

निशिता पूजा समय: 13 अगस्त 2020, 00:05am से 00:48am
अवधि: 43 मिनट

चूंकि इस वर्ष रोहिणी नक्षत्र 13 अगस्त तड़के से शुरू हो रहा है, इस वजह से इस वर्ष द्वारिका और मथुरा में जन्माष्टमी का पर्व 12 अगस्त को मनाया जायेगा।

क्या होता है कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष?

जन्माष्टमी की रात्रि वाले दिन भर लोग निर्जला व्रत रखते हैं। इस दिन लोग सुबह सुबह उठकर स्नान आदि कर पवित्र मन से भगवान श्री कृष्ण एवं अपने इष्ट आराध्या की पूजा अर्चना करते हैं। तत्पश्चात श्री कृष्ण का पंचामृत से स्नान करते हैं जिसमें दूध, दही, घी, शक्कर एवं शहद, इन पांचों तत्वों से श्री कृष्ण का बारी-बारी से स्नान किया जाता है। फिर उनका श्रृंगार किया जाता है।

संध्याकालीन बेला में आरती का कार्यक्रम आरंभ होता है जिसमें श्री कृष्ण की 8 बार आरती की जाती है और भावना किया जाता है कि एक-एक कर कारावास के सभी पट खुलते जा रहे हैं। आठवीं आरती रात्रि 12:00 बजे की जाती है जिसमें श्रीकृष्ण का अवतरण होता है। तत्पश्चात व्रत धारी जन्माष्टमी पर्व के प्रसाद चूरमा फल आदि से अपना व्रत खोलते हैं।