भारत विविधताओं में अनेकता का देश है। यहां अनेकानेक त्योहार मनाए जाते हैं। हर त्योहार अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। कई बार तो एक ही त्यौहार भिन्न-भिन्न प्रदेशों में अलग-अलग नामों से प्रचलित रहते हैं। अब आप मकर संक्रांति के त्योहार को ही ले लीजिए। वैदिक एवं ज्योतिषिय तथ्यों से तो इसे मकर संक्रांति बोलते हैं। यह पर्व अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न तौर तरीके से मनाया जाता है। यह पर्व प्रत्येक वर्ष के पौष माह में मनाया जाता है।
पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो इससे मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति पर्व को लेकर जातकों की विशेष श्रद्धा व भावनाएं जुड़ी हैं। इस दिन दान, पुण्य, स्नान, ध्यान आदि के कर्म को काफी महत्वकारी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किए जाने वाले सभी शुभ कर्म काफी फलित होते हैं और जातकों के जीवन को खुशियों से भर देते हैं। कई राज्यों में किसान अपने फसल की कटाई आदि को लेकर भी इस दिन को बड़े ही जश्न के रूप में हर्षोल्लास के साथ ऐसे मनाते हैं।
लेकिन कहते हैं ना घाट घाट पर पानी बदले और चार कोस पर वाणी, उसी तरह देश के कई राज्यों में इस त्यौहार को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। अगर हम भारत के शीर्ष के राज्यों से देखते जाएं, तो उत्तराखंड के कुमाऊं में इसे उत्तरायणी कहते हैं, वहीं गढ़वाल में मकरैनी।
अधिकांश राज्यों में इस दिन गुड़ की खिचड़ी, तिल के लड्डू आदि का विशेष महत्व होता है। इस दिन घर में भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यंजनों में से सबसे महत्वपूर्ण गुड़ की खिचड़ी और तिल के लड्डू को माना जाता है। इस दिन घर के सभी सदस्य साथ मिल बैठकर खाते हैं और इससे अन्य जरूरतमंद गरीबों में भी दान करते हैं। मकर संक्रांति से जुड़े पर्व के पीछे अनेकों पौराणिक मान्यताएं निहित है।
उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ क्षेत्रों में इसे गुड़ और चावल की खिचड़ी बनाने की मान्यता के कारण खिचड़ी का त्यौहार भी कहते हैं, जबकि झारखंड और बिहार के मिथिलांचल प्रदेशों में यह मान्यता है कि आज के ही दिन से सूर्य के आकार एवं ऊर्जा में दिन-प्रतिदिन तिल-तिल की वृद्धि होती है। इसलिए इन क्षेत्रों में इसे तिल संक्रांति भी कहते हैं, जबकि पंजाब और हरियाणा में नई फसलों की कटाई कर संक्रांति के 1 दिन पहले लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है और उसके दूसरे दिन इसे माघी के रूप में मनाया जाता है।
गुजरात और राजस्थान में इसे मकर संक्रांति के साथ उत्तरायण या उत्तरायणी के नाम से भी जानते हैं जबकि असम में इसे बिहू कहा जाता है। वहीं दक्षिण के क्षेत्रों में यह पोंगल के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
तो आइए जानते हैं सर्वप्रथम मकर संक्रांति हेतु शुभ मुहूर्त तिथि आदि के संबंध में-
वर्ष 2021 में मकर संक्रांति 14 जनवरी, बृहस्पतिवार के दिन मनाई जाएगी। इस दिन मकर संक्रान्ति का पुण्य काल प्रातः 08 बजकर 31 मिनट से संध्याकाल 05 बजकर 45 मिनट तक रहेगा, वहीं महा पुण्य काल प्रातः 08 बजकर 31 मिनट से प्रातः 10 बजकर 14 मिनट तक का है। अतः आप संक्रांति हेतु विशेष पूजन पाठ क्रियाकलाप आदि को इसी काल अवधि के दौरान पूर्ण कर दिन को मंगलमय बनाएं।
जानिए पिछले वर्ष क्या थी इस पावन पर्व की तिथि:
वर्ष 2020 में मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई गई थी। हर साल वैसे इसकी तिथि 14 जनवरी की होती है लेकिन साल 2020 में सूर्य का मकर राशि में गोचर 15 जनवरी से आरम्भ हुआ था, जिस कारण इस साल यह तिथि 14 से बदल कर 15 जनवरी हो गयी थी।
वेदों में मकर संक्रांति की चर्चा महापर्व के रूप में की गई है।
मकर संक्रांति सूर्य की स्थिति में परिवर्तन एवं सूर्य को समर्पित त्योहार हैं। संक्रांति का तात्पर्य सूर्य एवं सूर्य की स्थिति में परिवर्तन से है, यानी सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में स्थानांतरित होता है। इस दिन सूर्य, धनु राशि से निकलकर मकर राशि में उत्तरायण करता है। इसकी गणना सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के चक्र की स्थिति पर निर्भर करती है। आज से सूर्य की ऊर्जा का प्रभाव दिन प्रतिदिन बढ़ जाता है जिससे मौसम में परिवर्तन होना आरंभ हो जाता है।
मकर संक्रांति पर क्या करे विशेष?
हिंदू पौराणिक धर्म ग्रंथों के मुताबिक मकर संक्रांति का त्योहार भगवान सूर्य और पुत्र शनि से संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि सहर्षो वर्ष पूर्व मकर संक्रांति के दिन ही भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि के पास जाते हैं और इस दौरान अपने मध्य के गिले-शिकवे को दूर करने हेतु वार्तालाप करते हैं। इस काल अवधि के दौरान भगवान शनि मकर राशि का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और भगवान शनि को मकर राशि का देवता भी कहा जाता है। इसी वजह से इस दिन को मकर संक्रांति के रूप में आदिकाल से मनाया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन यदि कोई पिता अपने पुत्र के समीप मुलाकात व वार्तालाप हेतु जाते हैं, तो दोनों के मध्य आपसी समझ व सामंजस्य की भावनाएं विकसित होती है, साथ ही पिता-पुत्र के मध्य के बैर की स्थितियां भी बेहतर हो जाती हैं और दोनों के जीवन के दुख और बाधाओं का विनाश होता है।
मकर संक्रांति से जुड़ी अन्य पौराणिक प्रचलित कथा
मकर संक्रांति के पर्व को काफी महत्वकारी माना जाता है। ऐसा महाभारत में वर्णित है कि भगवान भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। उन्हें अर्जुन के बाणों द्वारा संपूर्ण शरीर भर में भेद देने के बाद भी उन्होंने अपने प्राण नहीं त्यागे थे। वे बाणों की शैया पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार कर रहे थे। ऐसा माना जाता है कि सूर्य के उत्तरायण की कालावधि मोक्ष की प्राप्ति हेतु सर्वाधिक श्रेष्ठ मानी जाती हैं। अतः जातकों को मकर संक्रांति के दिन विशेष धार्मिक आचरण को अपने जीवन में शिरोधार्य करना चाहिए। यह आपको मोक्ष की प्राप्ति करवाएंगे। इस दिन जातकों को स्नान, पूजा, दान, पुण्य आदि के कर्मों में अपनी अग्रणी भूमिका अदा करनी चाहिए।