मासिक दुर्गा अष्टमी

Masik Durga Ashtami

मासिक दुर्गा अष्टमी का मतलब है साल भर के 12 महीनों की नवरात्रि अष्टमी। नवरात्रि में पड़ने वाली अष्टम तिथि को महाअष्टमी के नाम से जाना जाता है, परंतु हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक दुर्गा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन माँ दुर्गा का व्रत भी रखा जाता है।

सनातन धर्म के अनुसार मासिक दुर्गाष्टमी का बहुत महत्व है। कहा जाता है कि महाष्टमी के दिन माँ दुर्गा के पूजन और उनका व्रत करने से हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस दिन माता आदिशक्ति का पूजन करने से वह प्रसन्न होती है और हमें सफलता एवं सिद्धि का आशीर्वाद देती हैं।

हिंदू धर्म में विधि-विधान के अनुसार आराधना करने का विशेष महत्व माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि जो मनुष्य पूरे विधि विधान के साथ व्रत करता है. उस पर ईश्वर की कृपा बनी रहती है और विशेष फल की प्राप्ति होती है।

विधि विधान के साथ पूजा करने का मानसिक तौर पर भी प्रभाव पड़ता है और मन की शांति प्राप्त होती है। आज हम आपको बताएंगे मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत करने का क्या महत्व है, पूजा का शुभ मुहूर्त एवं पूजा की सही विधि क्या है।

क्या है दुर्गाष्टमी व्रत का महत्व?

शास्त्रों में लिखा है कि जो मनुष्य इस मासिक दुर्गा अष्टमी का व्रत पूरे मन एवं श्रद्धा से रखता है, और माँ आदिशक्ति की पूजा अर्चना पूरे मन से करता है, उस पर माँ दुर्गा की कृपा सदैव बनी रहती है।

जो मनुष्य माँ के सामने श्रद्धा अर्पित कर प्रत्येक माह यह व्रत करता है, माँ दुर्गा उनके सारे कष्ट हर लेती हैं। जिस मनुष्य पर माँ दुर्गा की कृपा एवं इस मासिक दुर्गा अष्टमी के व्रत का पुण्य प्रभाव होता है, उनके जीवन में कभी भी सुख समृद्धि, धन वैभव यश, एवं प्रतिष्ठा की कोई कमी नहीं रहती।

माता दुर्गा अपने भक्तों की सदैव रक्षा करती है तथा उन्हें हर प्रकार के संकटों से दूर रखती हैं। पौराणिक कथाओं में ऐसी मान्यता है कि अष्टमी के दिन ही माँ आदि पराशक्ति ने अर्थात माँ काली ने दुष्ट राक्षस महिषासुर का संहार कर उसे पराजित किया था। 9 दिनों तक महिषासुर और माँ काली के मध्य चलने वाले युद्ध के समय एवं तिथि को ही नवरात्रि का रूप बताया गया है।

बताया जाता है कि नौवें दिन बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशी में ही नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। और आठवें दिन अच्छाई से लड़ते-लड़ते बुराई स्वयं ही हार गई थी, इसीलिए इस दिन को महा अष्टमी का रूप बताया गया है।

हर माह शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन ही दुर्गा अष्टमी के दिन माँ का व्रत रख श्रद्धालु उनकी कृपा प्राप्त करते हैं। संयोग पूर्वक खुशी की बात तो यह है कि माँ शक्ति का यह स्वरूप और उनके पूजन की व्रत विधि बालकों, वृद्धों, व्यस्कों, महिलाओं, विद्यार्थियों आदि सभी के लिए भाग्यशाली माना जाता है।

मासिक दुर्गा अष्टमी में पूजन का शुभ मुहूर्त

शुक्रवार 18 जून 2021 को पड़ने वाली मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत हर श्रेणी के भक्तों के लिए उपयुक्त है। कोई भी मनुष्य इस व्रत को कर सकता है, परंतु उसके पूर्व आपको पूजन का शुभ मुहूर्त ज्ञात होना अति आवश्यक है।

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष को अष्टमी तिथि का आरंभ 17 जून 2021 को बृहस्पतिवार के दिन ही रात्रि के 09 बजकर 56 मिनट हो जाएगा, और इसके साथ ही इस व्रत का आरंभ भी हो जाएगा।

जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि समाप्त होने का समय 18 जून 2021 को शुक्रवार रात्रि 08 बजकर 40 मिनट पर है, अर्थात इस समय व्रत का समापन हो जाएगा।

यदि आप भी मासिक दुर्गा अष्टमी का यह व्रत  करना चाहते हैं, तो समय का विशेष ध्यान रखें, क्योंकि शुभ मुहूर्त में की गई पूजा सफल मानी जाती है।

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क्या है मासिक दुर्गा अष्टमी की पूजा विधि?

  • अष्टमी तिथि के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर ले।
  • स्वच्छ वस्त्र धारण करें, परंतु यदि संभव हो तो माँ दुर्गा के पूजन के समय लाल वस्त्र ही पहनें।
  • जिस स्थान पर पूजा करने वाले हैं, उस जगह की अच्छे से साफ-सफाई करें और उस स्थान पर गंगाजल छिड़क दें। हिंदू धर्म में गंगाजल को बहुत पवित्र माना जाता है एवं पूजन में उसका विशेष महत्व भी है। परंतु यदि आपके आसपास गंगाजल मौजूद ना हो तो आप स्वच्छ जल का भी उपयोग कर सकते हैं, बस मन में भावना करें कि आप गंगाजल जैसे पवित्र जल को ही अपने अंजुली में भरकर मन से पवित्र हो रहे हैं। यदि पवित्र मन के साथ पूजा की जाये तो पूजन का विशेष लाभ भी प्राप्त होता है।
  • जिस स्थान को आपने पूजा के लिए चुना है, वहाँ पर लकड़ी की एक तख्त या फिर चौकी लगाएं और उस चौकी पर लाल कपड़ा बिछा दें। लाल कपड़े पर ही माता दुर्गा की प्रतिमा या कोई तस्वीर स्थापित कर दे।
  • माँ आदिशक्ति को लाल रंग की चुनरी चढ़ाने से माता प्रसन्न होती हैं, और क्योंकि लाल रंग शगुन एवं शुभता का प्रतीक है, इसीलिए आप पूजन में लाल रंग का इस्तेमाल करन शुभ माना जाता है। अब माँ दुर्गा के सामने सामने धूप दीप प्रज्वलित करके रख दें।
  • इसके पश्चात पीले रंग में रंगा हुआ अक्षत, लाल सिंदूर, एवं पुष्प या पुष्पों की माला आदि से माँ दुर्गा का विधिवत पूजन शुरू करें। यदि संभव हो तो लाल रंग के गुड़हल के फूल का भी इस्तेमाल करें। गुड़हल का फूल लगाना माँ दुर्गा के व्रत-पूजन में पवित्र माना जाता है।
  • इसके बाद नैवेद्य, फल, फूल, मिष्ठान, आदि माँ दुर्गा के सामने चढ़ाकर माता को प्रसाद अर्पित करें। मन में पवित्र भावना रखें, कोई द्वेष एवं क्लेश ना करें।
  • माँ दुर्गा की चालीसा का पठन करें, इससे माँ प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को मनोवांछित फल देती है और उनकी सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण करती हैं।
  • जब दुर्गा चालीसा का पाठ पूर्ण हो जाए तो अपने पूरे परिवार एवं घर के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर माँ दुर्गा की आरती करें और अंत में यदि कोई भूल-चूक हो गई हो तो उसके लिए माँ के सामने सिर झुका कर क्षमा प्रार्थना करें।
  • प्रार्थना करें कि ऐसे पूजन का सौभाग्य आपको बार-बार प्राप्त हो।
  • पूजा समाप्त होने के बाद घर के सभी सदस्यों एवं बालकों को प्रसाद अवश्य दें।

व्रत पूर्ण होने के बाद दान का भी विशेष महत्व बताया गया है, इसीलिए व्रत पूर्ण होने के बाद या तो गरीबों में भोजन अथवा प्रसाद वितरित करें। या फिर संभव हो तो गौ माता को भी भोजन कराएं। ऐसा दान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है एवं भक्तों को पुण्य मिलता है। इतना ही नहीं, बल्कि दान पुण्य करने से व्रत का दोगुना आशीर्वाद प्राप्त होता है।