हिंदू धर्म में प्रत्येक दिन वार हेतु कुछ विशेष पर्व त्यौहार व्रत मुहूर्त आदि निर्धारित होते हैं। हिंदू धर्म के 12 मास के एक-एक दिन का स्वयं में विशेष व अन्य से भिन्न महत्व रहता है जिसमें से माघ के महीने को अत्यंत ही शुभकारी माह माना जाता है। इस माह को स्नान दान पूजा आदि हेतु सर्वोत्तम फलदाई माना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि जो भी जातक माघ के महीने में प्रातः काल सूर्योदय कालीन बेला में उठकर स्नान पूजन की प्रक्रिया करता है, साथ ही दान, धर्म आदि के कर्म करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
माघ का पूरा महीना ही अत्यंत ही पवित्र माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस माह पृथ्वी लोक पर स्वयं देवी-देवता भी गोचर करते हैं। माघ के इस पावन महीने में से चतुर्दशी तिथि को अत्यंत ही शुभ फलदाई माना जाता है। माघ माह की चतुर्दशी तिथि को सभी जातक नरक निवारण चतुर्दशी व्रत के रूप में मनाते हैं।
नरक निवारण चतुर्दशी का व्रत धारण करने वाले जातकों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो भी जातक उचित मुहूर्त में अथवा प्रातः कालीन सूर्योदय से पूर्व ही स्नान करने वाले जातकों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो जातक गंगा स्नान करते हैं तथा स्नान पश्चात दान, धर्म व जप-तप, ध्यान आदि के शुभ कर्म करते हैं, उनके जीवन में आजीवन शुभता बरकरार रहती है और ऐसे व्यक्ति को सांसारिक बंधन व मोह माया आदि से श्रेष्ठता की प्राप्ति हो जाती हैं। ऐसे व्यक्ति मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति करते हैं।
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नरक निवारण चतुर्दशी इस वर्ष 10 फरवरी 2021 अर्थात माघ माह के चतुर्दशी तिथि को निर्धारित है। तो आइए जानते हैं नरक निवारण चतुर्दशी व्रत हेतु स्नान के शुभ मुहूर्त व अन्य महत्वपूर्ण तथ्य आदि के साथ-साथ इस व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा आदि के संबंध में-
नरक निवारण चतुर्दशी प्रत्येक वर्ष माघ महीने में मनाई जाती है। वैसे तो माघ का पूरा माह ही अत्यंत ही शुभ फलदाई माना जाता है। इस माह स्नान दान पूजा आदि का विशेष महत्व माना जाता है, किंतु नरक निवारण चतुर्दशी के दिन को सभी दिनों में अत्यंत ही शुभकारी माना जाता है। इसे मोक्ष का दिवस माना जाता है।
इस वर्ष नरक निवारण चतुर्दशी 10 फरवरी 2021 दिन बुधवार को पड़ रही है। इस दिन स्नान हेतु शुभ मुहूर्त प्रातः 6 बजकर 06 मिनट 5 सेकंड से लेकर 6 बजकर 34 मिनट 53 सेकंड तक का है। अर्थात लगभग 28 मिनट की अवधि स्नान हेतु अत्यंत ही शुभकारी मानी जाएगी।
नरक निवारण चतुर्दशी को माघ मास के सभी व्रत आदि में काफी महत्वकारी माना जाता है। इस दिन को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं प्रचलित है जिसमें पुरातन काल की एक मान्यता के मुताबिक सहस्रों वर्ष पूर्व नरकासुर नाम का एक राक्षस हुआ करता था। जो अत्यंत ही शक्तिशाली व बलशाली था। हालांकि उसने जप-तप द्वारा ही शक्तियां अर्जित की थी, किंतु दानवी प्रवृत्ति और नकारात्मकताओं के कारण वह दूसरों को परेशान व साधु-संतों आदि के ऊपर अत्याचार करने लगा था।
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वह निरंकुश प्रवृत्ति का घमंडी अत्याचारी शासक हो चुका था। उसने साधु संतों की 16000 स्त्रियों को बंधक बना लिया था और उनके साथ बदसलूकी की थी जिससे नरकासुर के अत्याचारों व घोर पाप से संपूर्ण पृथ्वीलोक व जनमानस साधु-संत आदि त्रस्त हो चुके थे, और अंततः उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से गुहार लगाते हुए त्राहिमाम त्राहिमाम कर उनसे मदद मांगी।
तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण ने सभी साधु संतों को नरकासुर के आतंक व दानवी प्रवृत्ति से मुक्ति प्रदान करने का वचन दिया। ऐसा माना जाता है कि नरकासुर अत्यंत ही शक्तिशाली होने के साथ-साथ बुद्धिजीवी भी था। उसने ऐसा वरदान ले रखा था कि उसे केवल स्त्रियां ही मार सकती है, अर्थात स्त्री के अतिरिक्त कोई पुरुष व क्षत्रिय आदि उसका वध नहीं कर सकता था।
भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा से मदद लेकर चतुर्दशी तिथि के दिन नरकासुर का वध कर दिया, साथ ही उनकी गिरफ्त में कैद 16000 स्त्रियों को भी मुक्त करवाया। बाद में यही 16000 स्त्रियां भगवान श्री कृष्ण की पटरानीया बनी जिन्हें भगवान श्री कृष्ण ने अपनी शरण में शरणागत बना लिया। नरकासुर के वध के पश्चात से ही इस दिन को नरक निवारण चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है।
इसके अतिरिक्त और भी कुछ मान्यताएं नरक निवारण चतुर्दशी को लेकर प्रचलित है जिसके अनुसार जो भी जातक नरक निवारण चतुर्दशी के दिन व्रत उपवास धारण करता है, उसे अपने सभी पाप व्रतियों व कृतियों से मुक्ति मिल जाती है। इससे उसे नरक का भोग नहीं करना पड़ता है और उसे अंततः मोक्ष व स्वर्ग लोक की प्राप्ति हो जाती हैं।
धार्मिक व भौगोलिक महत्व तथा मान्यताएं