हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत को सभी व्रतों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी जातक वर्ष के सभी एकादशी व्रत को विधिपूर्वक धारण करता हैं, उस जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत के संबंध में गीता में भी वर्णन देखने को मिलता है।
हिंदू पंचांग के मुताबिक वर्ष में कुल 24 एकादशी व्रत सामान्य तौर पर धारण किए जाते हैं, जबकि अधिक मास वाले वर्ष में 26 एकादशी के व्रत हो जाते हैं। इन 26 एकादशी के व्रत में अधिक मास में पड़ने वाली एक एकादशी परमा एकादशी के नाम से जानी जाती है। परमा एकादशी को अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस वर्ष यह एकादशी 13 अक्टूबर 2020 अर्थात मंगलवार के दिन पड़ रही है।
शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि जो भी जातक परमा एकादशी का व्रत विधि पूर्वक धारण करते हैं, उनके ऊपर भगवान विष्णु की कृपा दृष्टि सदा ही बनी रहती है। ऐसे जातकों के जीवन में आर्थिक समस्या नहीं आती है एवं दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं परमा एकादशी हेतु तिथि समय उचित मुहूर्त व्रत विधि व्रत कथा आदि के संबंध में।
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सर्वप्रथम हम परमा एकादशी के तिथि, व्रत मुहूर्त आदि के संबंध में जानते हैं।
परमा एकादशी हेतु उचित तिथि, मुहूर्त, समय
हिंदू पंचांग के मुताबिक वर्ष 2020 में परमा एकादशी की तिथि 12 अक्टूबर की है। परमा एकादशी व्रत के आरंभ के समय का ज्योतिष में निर्धारण किया गया है। जिसमें पंचांग के मुताबिक 12 अक्टूबर की तिथि को 4 बजकर 34 मिनट में संध्या कालीन बेला से परमा एकादशी का व्रत आरंभ हो जाएगा है जो अगले दिन यानी 13 अक्टूबर को दोपहर 2 बजकर 35 मिनट तक रहने वाला है। परमा एकादशी के व्रत हेतु पारण का शुभ मुहूर्त 14 अक्टूबर की तिथि को सुबह 6 बजकर 21 मिनट 33 सेकंड से लेकर 8 बजकर 39 मिनट 39 सेकंड तक का माना गया है। अर्थात परमा एकादशी के व्रत के पारण हेतु 14 अक्टूबर को 2 घंटे 18 मिनट की अवधि ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक तय की गई है। चूंकि 12 अक्टूबर को एकादशी की तिथि संध्या कालीन वेला में आरम्भ होती है जो कि 13 अक्टूबर को अधिक पहर तक रहने वाली है, इस वजह से व्रत उपवास का दिन भी 13 अक्टूबर का मान्य होगा।
व्रत विधान
परमा एकादशी व्रत की सम्पूर्ण कथा
प्राचीन काल की बात है। सुमेधा नामक एक ब्राह्मण रहा करता था। उसकी पत्नी का नाम पवित्रा था जो अत्यंत ही सत्यवती और गुणी स्त्री थी। परमा को सती और साध्वी स्त्रियों में से एक माना जाता था।
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ब्राह्मण सुमेधा अत्यंत ही गरीब थे। उन्हें दरिद्रता और निर्धनता ने घेर कर रखा था। बावजूद इसके ब्राह्मण सुमेधा और उनकी पत्नी पवित्रा लोगों की सेवा सत्कार में कभी कोई कमी नहीं करते थे। वे अतिथियों ब्राह्मणों व गरीबों के लिए सदैव तत्पर रहते थे किंतु अपनी परिस्थिति से ब्राह्मण सुमेधा और उसकी पत्नी दोनों ही अत्यंत ही दुखी थे।
एक दिन ब्राह्मण सुमेधा ने परिस्थितियों को भापते हुए परदेस जाने का मन बनाया ताकि वे अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर कर सकें। तत्पश्चात उसकी पत्नी ने उनसे कहा कि हे स्वामी, धन और संतान पूर्व जन्मों के दान पूण्य के बाद ही प्राप्त होते हैं, अतः आप धन हेतु चिंतित ना हो।
कुछ समय बीत जाने के बाद एक दिन उनके घर महर्षि कौडिन्य आए। ब्राह्मण दंपति ने महर्षि कौडिन्य की तन-मन-धन से खूब सेवा सुश्रुषा की। किंतु महर्षि कौडिन्य ने जब उनकी परिस्थितियों को देखा तो वे अत्यंत ही दुखी हुए। उन्होंने ब्राह्मण दंपति को अपनी दरिद्रता को दूर करने हेतु उपाय सुझाया और कहा कि तुम दोनों अधिक मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत धारण करो, साथ ही रात्रि जागरण करो। इससे धन के देवता कुबेर प्रसन्न होंगे एवं तुम्हारी दरिद्रता का नाश करेंगे।
उन्होंने ब्राह्मण दंपति से इस एकादशी व्रत के महत्व को बताते हुए यक्ष राज कुबेर के धनी होने से लेकर, हरिश्चंद्र के राजा होने तक के संबंध में बखान किया। तत्पश्चात ब्राह्मण सुमेधा और उनकी पत्नी पवित्रा ने विधिवत तौर तरीके से व्रत को धारण कर उसका पालन किया। तत्पश्चात व्रत के फलस्वरूप उन्हें दूसरे दिन ही एक राजकुमार के द्वारा धन-संपत्ति सुख समृद्धि आदि की प्राप्ति हुई जिससे उनकी स्थिति रंक से राजा में बदल गई।