हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत को सर्वाधिक महत्वकारी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि सभी व्रतों में सर्वश्रेष्ठ एवं फलदाई व्रत एकादशी का व्रत है। एकादशी का व्रत धारण करने वाले जातकों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पूरे वर्ष भर में 24 एकादशी का व्रत होता है, परन्तु जिस वर्ष मलमास पड़ जाता है, उस वर्ष यह संख्या बढ़कर 26 एकादशी का व्रत हो जाता है। कई जातक पूरे वर्ष भर में पड़ने वाले सभी व्रतों का धारण करते हैं जो कि भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है।
पूरे वर्ष भर में पड़ने वाले सभी 24 अथवा 26 एकादशी व्रत के अलग-अलग नाम पूजन विधि आदि होते हैं। अलग-अलग एकादशी व्रतों में से पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को काफी महत्वकारी माना जाता है। पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष में दो पुत्रदा एकादशी व्रत होते हैं जिसमें से एक पुत्रदा एकादशी व्रत पौष माह में तो दूसरा पुत्रदा एकादशी व्रत सावन के माह में मनाया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि जो भी जातक इस एकादशी व्रत का धारण करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होने के साथ-साथ संतान सुख की प्राप्ति भी होती हैं। तो आइए जानते हैं पौष माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले पौष पुत्रदा एकादशी व्रत के मुहूर्त महत्व विधि आदि के संबंध में-
इस वर्ष 2021 में पौष पुत्रदा एकादशी व्रत 24 जनवरी को धारण किया जाना है जिसमें इस व्रत का आरंभ 1 दिन पूर्व की संध्या कालीन बेला से, अर्थात 23 जनवरी 2021 की संध्या 8 बजकर 56 मिनट से होने जा रहा है, जो अगले तिथि अर्थात 24 तारीख 2021 को पूरे दिन बना रहेगा। तत्पश्चात रात्रि कालीन बेला में 10 बजकर 57 मिनट पर एकादशी तिथि का समापन होगा जिसका सभी जातक अगले दिन अर्थात 25 जनवरी 2021 की तिथि को पारण करेंगे।
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पुत्रदा एकादशी से जुड़ी कथा व महत्व
पुत्रदा एकादशी व्रत को अत्यंत ही महत्वकारी एवं लाभकारी माना जाता है। पुत्रदा एकादशी व्रत के संबंध में अनेकों कथाएं प्रचलित हैं। पौष पुत्रदा एकादशी की एक कथा के अनुरूप बहुत समय पहले एक राजा भद्रावती पूरी में रहा करता था। उस राजा का नाम सुकेतुमान था तथा भद्रावती पूरी में राज करता था। उसकी पत्नी का नाम चंपा था।
भद्रावती पुरी के राजा को विवाह के कई वर्षों के पश्चात भी किसी भी संतान की प्राप्ति नहीं हुई थी। वे संतान के सुख से वंचित थे जिस वजह से उन्हें अपने राज्य व अपने आने वाले भविष्य को लेकर चिंताएं सताने लगी। वे अपने राज्य को लेकर अत्यधिक चिंतित होने लगे। उनकी जर्जर हो रही स्थिति का अन्य राज्य लाभ उठाने हेतु प्रयासरत थे। ऐसे में वे काफी दुखी होने लगे और ऋषि महर्षि व तपस्वी से इस संबंध में उपाय ढूंढने लगे।
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एक दिन की बात है, राजा सुकेतुमान अपने राज्य के एक वन में एक सरोवर के निकट किसी जानवर की शिकार की तलाश में पहुंचे जहाँ पर एक मुनि विराजमान थे। राजा वहाँ उस मुनि के पास पहुंचकर उनके चरण स्पर्श करते हैं और उनसे अपनी समस्याओं के समाधान हेतु उपाय की मांग करते हैं। तत्पश्चात उस मुनि जिसका नाम विश्वदेव था, उन्होंने राजा सुकेतुमान को पुत्रदा एकादशी व्रत करने का सुझाव दिया। तत्पश्चात ही राजन तथा उनकी पत्नी चंपा ने एक-साथ पौष पुत्रदा एकादशी व्रत विधिवत तौर तरीके से धारण किया और अगले दिन दान धर्म के साथ व्रत का पारण किया। तत्पश्चात उन्हें कुछ दिनों के पश्चात एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जो आगे चलकर उस राज्य का राजा कहलाया।
पुत्रदा एकादशी व्रत हेतु कुछ आवश्यक एवं महत्वपूर्ण नियम
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत विधि