प्रदोष व्रत

Pradosh Vrat

सनातनी हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर मास के त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत के रूप में मनाया जाता है। इसे त्रयोदशी का व्रत भी कहा जाता है। यह हर महीने में दो बार मनाया जाता है। इस दिन व्यक्ति विधि-विधान से व्रत-उपवास रखते हैं एवं भगवान शिव की पूजा आराधना करते हैं।

प्रदोष व्रत अलग-अलग दिन होने का भी विशेष महत्व माना जाता है। आइए आज हम जानते हैं इस वर्ष पड़ने वाले प्रदोष व्रत हेतु कथा, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि आदि।

प्रदोष व्रत भगवान शिव का व्रत माना जाता है। शिव पुराण के अनुसार इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी प्रकार के दोष एक साथ समाप्त होते हैं। इसी कारण प्रदोष व्रत में जातक भगवान शिव की विशेष पूजा-आराधना करते हैं जिससे व्यक्ति के सभी प्रकार के पाप दोष आदि समाप्त हो जाते हैं।

प्रदोष व्रत में प्रदोष काल का महत्व माना जाता है। प्रदोष काल दिन-रात के मिलन की घड़ी अर्थात सूर्यास्त के पश्चात की स्थिति को प्रदोष काल कहा जाता है।

आइए आज हम जानते हैं इस वर्ष को पड़ने वाले प्रदोष व्रत हेतु कथा, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि आदि।

व्रत सम्बंधित तथ्य

प्रदोष व्रत से संबंधित धार्मिक ग्रंथों में अनेकानेक तथ्य विद्यमान है। इसके पीछे अनेकों कथाएं प्रचलित हैं जिसमें एक चंद्रदेव से भी संबंधित है।

शास्त्रों में यह लिखित है कि एक बार जब चंद्रदेव श्रापित होकर क्षय रोग से पीड़ित हो गए थे, तो उनके कष्टों के निवारण हेतु भगवान शिव ने उन्हें अपने जीवन के कर्मों के दोष तथा क्षय रोग के दोष आदि से मुक्ति हेतु मार्ग सुझाया था जिसमें उन्होंने त्रयोदशी की तिथि को शिवलिंग की विशेष पूजा करने की सलाह दी थी जिसे चंद्र देव द्वारा करने पर उन्हें उनके दोषों के घातक परिणाम से मुक्ति का मार्ग प्राप्त हुआ। तब से यह दिन प्रदोष व्रत के रूप में प्रख्यात हो गया एवं इस दिन सांसारिक तौर पर व्रत पूजा-उपासना की जाने लगी।

प्रचलित कथा

प्रदोष व्रत से संबंधित स्कंद पुराण में कथा का उल्लेख किया गया है जिसके अनुसार विदर्भ काल की बात है जब राजकुमार धर्मगुप्त छोटे थे, उन्हें अधिक बोध नहीं था।

उस काल में ही उनके पिता को किसी अन्य राजा ने युद्ध में परास्त कर विदर्भ पर अपना शासन स्थापित कर लिया था, साथ ही धर्मगुप्त के माता-पिता की हत्या भी कर दी जिस वजह से राजकुमार धर्मगुप्त अनाथ हो गए एवं यतीम की भांति भटक रहे थे जिसे एक विधवा ब्राह्मणी ने रोते बिलखते हुए देखा। वह विधवा ब्राह्मणी रोज अपने पुत्र को लेकर भिक्षाटन हेतु गली मोहल्ले के घरों में जाया करती थी।

एक दिन जब वह विधवा स्त्री भिक्षाटन कर अपने घर को लौट रही थी, तब उसने उस बालक को देखा एवं उसे उसने अपने पुत्र के रूप में स्वीकार कर लिया। उस विधवा स्त्री ने उस बालक को माता समान वात्सल्य देकर उसका पालन पोषण किया।

इन त्योहारों को भी जानें:

वह इस बात से अनभिज्ञ थी कि यह बालक विदर्भ राज्य के शासक का राजकुमार है। एक दिन की बात है, ब्राह्मणी अपने ब्राह्मण पुत्र एवं धर्मगुप्त को साथ लेकर मंदिर गई। वहां उसकी भेंट ऋषि शांडिल्य से हुई।

शांडिल्य ने उस ब्राह्मणी को बताया कि वह जो उसका दूसरा पुत्र है, वह विदर्भ शासक का पुत्र है जिसके माता-पिता की मृत्यु हो चुकी है एवं विदर्भ राज्य पर किसी अन्य का शासन स्थापित हो चुका है। यह जानकर ब्राह्मणी अत्यंत दुखी हुई। महर्षि शांडिल्य ने ब्राह्मणी एवं उनके दोनों पुत्रों को प्रदोष व्रत कराने की सलाह दी। तत्पश्चात वे प्रदोष व्रत करने लगे। कुछ वर्ष पश्चात विधवा ब्राह्मणी के दोनों पुत्र युवा हो गए।

एक दिन की बात है, वे दोनों वन में भ्रमण हेतु साथ साथ जाते हैं जहां उनकी मुलाकात गंधर्व राज्य की कन्याओं से होती है। ब्राह्मण पुत्र भ्रमण पश्चात वहां से घर को लौट आता है किंतु राजकुमार धर्म गुप्त गंधर्व कन्याओं की ओर मोहित हो जाते हैं। उन दोनों के बीच प्रेम भावना विकसित ही जाती है।

तत्पश्चात गंधर्व नरेश विधवा ब्राह्मणी के घर राजकुमार धर्मगुप्त के लिए अपनी पुत्री के विवाह हेतु प्रस्ताव लेकर आते हैं। उन दोनों का गंधर्वराज की ओर से विवाह करवा दिया जाता है। इसी दौरान गंधर्व के शासक को धर्मगुप्त के विदर्भ नरेश के पुत्र होने के संबंध में पता चलता है जिस पर गंधर्व शासक ने विदर्भ नरेश पर विजय प्राप्त करने हेतु धर्म गुप्त को सैन्य सहयोग प्रदान करने की बात कही। तत्पश्चात धर्मगुप्त ने विदर्भ पर विजय प्राप्त कर अपना आधिपत्य स्थापित किया एवं एक प्रखर लोकप्रिय राजा के रूप में प्रचलित हुए।

ऐसी मान्यता है कि यह सब धर्मगुप्त एवं उनकी पत्नी के प्रदोष व्रत करने के कारण ही संभव हो पाया। यह प्रदोष व्रत का ही शुभ फल था।

स्कंद पुराण के अनुसार जो भी जातक प्रदोष व्रत करता है, उसके जीवन के सभी प्रकार के दोष आदि मुक्त हो जाते हैं एवं सदैव शुभ परिणाम परिलक्षित होते हैं। ऐसे जातक सभी प्रकार के संकटों से विजय प्राप्त करते हैं।

व्रत विधि

  • प्रदोष व्रत करने हेतु एक दिन पूर्व ही आप संध्याकालीन यानी सूर्योदय के पश्चात भोजन ग्रहण करना बंद कर दे।
  • दूसरे दिन के व्रत हेतु आप मन ही मन संकल्प धारण करें।
  • दूसरे दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी अथवा घर के ही नहाने की जलने गंगा जल मिलाकर नहा लें।
  • तत्पश्चात भगवान सूर्य को जल से अर्घ्य प्रदान कर शुभ मुहूर्त में भगवान शिव के मंदिर में जाएं।
  • वहाँ भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरे के फूल एवं अन्य सफेद पुष्प अर्पित करें।
  • भगवान शिव को पंचामृत से स्नान करवाएं, भोलेनाथ के साथ-साथ माता पार्वती की भी पूजा आराधना करें।
  • तत्पश्चात पूरे दिन भर व्रत उपवास रखें। संध्या कालीन बेला में सूर्यास्त से पूर्व ही फलाहार ग्रहण करें।
  • रात्रि कालीन बेला में भगवान शिव की तथा पार्वती की आरती करें।
  • दूसरे दिन तिथि मुहूर्त के अनुसार गरीबों में अपनी इच्छा एवं सामर्थ्य के अनुरूप अन्न, वस्त्र, फल आदि का दान कर व्रत का पारण करें।

प्रदोष व्रत 2022 तिथियां व शुभ मुहूर्त

जनवरी 2022

15 जनवरी, शनिवार (पौष मास, शुक्ल पक्ष) - शनि प्रदोष

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 14 जनवरी रात्रि 10 बजकर 19 मिनट से
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 15 जनवरी अर्धरात्रि 12 बजकर 57 मिनट (16 जनवरी 00:57am) पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: शाम 05 बजकर 46 मिनट से रात्रि 08 बजकर 28 मिनट तक।

30 जनवरी, रविवार (माघ मास, कृष्ण पक्ष)

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 29 जनवरी रात्रि 38 बजकर 25 मिनट से
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 30 जनवरी देर शाम 05 बजकर 28 मिनट पर।
भौम प्रदोष व्रत पूजन समय: शाम 05 बजकर 59 मिनट से रात्रि 08 बजकर 37 मिनट तक।

फरवरी 2022

14 फरवरी, सोमवार (माघ मास, शुक्ल पक्ष) - सोम प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 13 फरवरी शाम 06 बजकर 43 मिनट से
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 14 फरवरी रात्रि 08 बजकर 27 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: शाम 06 बजकर 10 मिनट से रात्रि 08 बजकर 28 मिनट तक।

28 फरवरी, सोमवार (फाल्गुन मास, कृष्ण पक्ष) - सोम प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 28 फरवरी प्रातः 05 बजकर 42 मिनट से।
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 1 मार्च सुबह तड़के 03 बजकर 16 मिनट (1 मार्च 03:16am)  पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: शाम 06 बजकर 20 मिनट से रात्रि 08 बजकर 49 मिनट तक।

मार्च 2022

15 मार्च, मंगलवार (फाल्गुन मास, शुक्ल पक्ष) - भौम प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 15 मार्च दोपहर 01 बजकर 12 मिनट से
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 16 मार्च दोपहर 01 बजकर 39 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 15 मार्च शाम 06 बजकर 29 मिनट से रात्रि 08 बजकर 53 मिनट तक।

29 मार्च, मंगलवार (चैत्र मास, कृष्ण पक्ष) - भौम प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 29 मार्च दोपहर 02 बजकर 38 मिनट से।
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 30 मार्च दोपहर 01 बजकर 19 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 29 मार्च शाम 06 बजकर 37 मिनट से रात्रि 08 बजकर 57 मिनट तक।

अप्रैल 2022

14 अप्रैल, बृहस्पतिवार (चैत्र मास, शुक्ल पक्ष) - गुरु प्रदोष

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 14 अप्रैल प्रातः 04 बजकर 49 मिनट से
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 15 अप्रैल सुबह तड़के 03 बजकर 56 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 14 अप्रैल शाम 06 बजकर 46 मिनट से रात्रि 08 बजकर 59 मिनट तक।

28 अप्रैल, बृहस्पतिवार (वैसाख मास, कृष्ण पक्ष) - गुरु प्रदोष

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 27 अप्रैल अर्धरात्रि 12 बजकर 23 मिनट (28 अप्रैल 12:23am) से।
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 28 अप्रैल अर्धरात्रि 12 बजकर 26 मिनट (29 अप्रैल 12:26am) पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 28 अप्रैल शाम 06 बजकर 54 मिनट से रात्रि 09 बजकर 03 मिनट तक।

मई 2022

13 मई, शुक्रवार (वैसाख मास, शुक्ल पक्ष) - शुक्र प्रदोष

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 13 मई शाम 05 बजकर 27 मिनट से
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 14 मई दोपहर 03 बजकर 22 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 13 मई शाम 07 बजकर 04 मिनट से रात्रि 09 बजकर 09 मिनट तक।

27 मई, शुक्रवार (ज्येष्ठ मास, कृष्ण पक्ष) - शुक्र प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 27 मई सुबह 11 बजकर 47 मिनट से।
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 28 मई दोपहर 01 बजकर 09 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 27 मई शाम 07 बजकर 12 मिनट से रात्रि 09 बजकर 14 मिनट तक।

जून 2022

12 जून, रविवार (ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष) - रवि प्रदोष

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 12 जून सुबह तड़के 03 बजकर 23 मिनट से
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 12 जून अर्धरात्रि 12 बजकर 26 मिनट (13 जून  12:26am) पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 12 जून शाम 07 बजकर 19 मिनट से रात्रि 09 बजकर 20 मिनट तक।

26 जून, रविवार (आषाढ़ मास, कृष्ण पक्ष) - रवि प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 25 जून अर्धरात्रि 01 बजकर 09 मिनट (26 जून 01:09am) से।
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 27 जून सुबह तड़के 03 बजकर 25 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 26 जून शाम 07 बजकर 23 मिनट से रात्रि 09 बजकर 23 मिनट तक।

जुलाई 2022

11 जुलाई, सोमवार (आषाढ़ मास, शुक्ल पक्ष) - सोम प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 11 जुलाई सुबह 11 बजकर 13 मिनट से
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 12 जुलाई प्रातः 07 बजकर 46 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 11 जुलाई शाम 07 बजकर 22 मिनट से रात्रि 09 बजकर 24 मिनट तक।

25 जुलाई, सोमवार (श्रावण मास, कृष्ण पक्ष) - सोम प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 25 जुलाई सांय 04 बजकर 15 मिनट से।
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 26 जुलाई सांय 06 बजकर 46 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 25 जुलाई शाम 07 बजकर 17 मिनट से रात्रि 09 बजकर 20 मिनट तक।

अगस्त 2022

9 अगस्त, मंगलवार (श्रावण मास, शुक्ल पक्ष) - भौम प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 9 अगस्त शाम 05 बजकर 45  मिनट से
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 10 अगस्त दोपहर 02 बजकर 16 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 9 अगस्त शाम 07 बजकर 07 मिनट से रात्रि 09 बजकर 14 मिनट तक।

24 अगस्त, बुधवार (भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष) - बुध प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 24 अगस्त प्रातः 08 बजकर 31 मिनट से।
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 25 अगस्त प्रातः 10 बजकर 37 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 24 अगस्त शाम 06 बजकर 53 मिनट से रात्रि 09 बजकर 03 मिनट तक।

सितम्बर 2022

8 सितम्बर, बृहस्पतिवार (भाद्रपद मास, शुक्ल पक्ष) - गुरु प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 7 सितम्बर अर्धरात्रि 12 बजकर 04 मिनट (8 सितम्बर 12:04am) से
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 8  सितम्बर रात 09 बजकर 02 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 8 सितम्बर शाम 06 बजकर 36 मिनट से रात्रि 08 बजकर 52 मिनट तक।

23 सितम्बर, शुक्रवार (आश्विन मास, कृष्ण पक्ष) - शुक्र प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 22 सितम्बर अर्धरात्रि 01 बजकर 27 मिनट (23  सितम्बर 01:27am) से
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 24 सितम्बर सुबह तड़के 02 बजकर 30 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 23 सितम्बर शाम 06 बजकर 17 मिनट से रात्रि 08 बजकर 39 मिनट तक।

अक्टूबर 2022

7 अक्टूबर, शुक्रवार (आश्विन मास, शुक्ल पक्ष) - शुक्र प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 7 अक्टूबर प्रातः 07 बजकर 26 मिनट से
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 8 अक्टूबर प्रातः 05 बजकर 24 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 7 अक्टूबर शाम 06 बजकर 01 मिनट से रात्रि 08 बजकर 29 मिनट तक।

22 अक्टूबर, शनिवार (कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष) - शनि प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 22 अक्टूबर शाम 06 बजकर 03 मिनट से।
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 23 अक्टूबर शाम 06 बजकर 05 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 22 अक्टूबर शाम 06 बजकर 03 मिनट से रात्रि 08 बजकर 17 मिनट तक।

नवंबर 2022

5 नवंबर, शनिवार (कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष) - शनि प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 5 नवंबर शाम 05 बजकर 06 मिनट से
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 6  नवंबर शाम 04 बजकर 29 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 5 नवंबर शाम 05 बजकर 33 मिनट से रात्रि 08 बजकर 10 मिनट तक।

21 नवंबर, सोमवार (मार्गशीर्ष मास, कृष्ण पक्ष) - सोम प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 21 नवंबर सुबह 10 बजकर 08 मिनट से
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 22 नवंबर सुबह 08 बजकर 49 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 21 नवंबर शाम 05 बजकर 25 मिनट से रात्रि 08 बजकर 05 मिनट तक।

दिसंबर 2022

5 दिसंबर, सोमवार (मार्गशीर्ष मास, शुक्ल पक्ष) - सोम प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 5 दिसंबर प्रातः 05 बजकर 58 मिनट से
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 6 दिसंबर प्रातः 06 बजकर 48 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 5 दिसंबर शाम 05 बजकर 25 मिनट से रात्रि 08 बजकर 26 मिनट तक।

21 दिसंबर, बुधवार (पौष मास, कृष्ण पक्ष) - बुध प्रदोष व्रत

त्रयोदशी तिथि आरम्भ : 20 दिसंबर मध्यरात्रि 12 बजकर 45 मिनट (21 दिसंबर 12:45am) से।
त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 21 दिसंबर रात 10 बजकर 16 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन समय: 21 दिसंबर शाम 05 बजकर 31 मिनट से रात्रि 08 बजकर 15 मिनट तक।