हिन्दू धर्म की नींव अनेक मान्यताओं पर टिकी हुई है। विभिन्न मान्यताओं के आधार पर हिन्दू धर्म में अनेक प्रचलित कथन वर्णित है। इसी प्रकार हिन्दू धर्म में भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी की अधिक महत्ता है जिसको ऋषि पंचमी के नाम से जानते है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत के अनुसरण करने से साधक को अपने समस्त पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। इस दिन गंगा स्नान का भी प्रावधान है। इस दिन सप्त ऋषि व देवी अरुंधती की आराधना की जाती है। मान्यता है कि साधक को सात वर्षों तक ऋषीपंचमी की आराधना करनी चाहिए और आठवें वर्ष में सात ऋषियों की प्रतिमा का पूजन कर उनका विसर्जन करना चाहिए। इससे साधक के पूर्व जन्मों के सभी पाप का निवारण होता है। इसलिए इस व्रत का अनुसरण सभी वर्णों की महिलाओं को करना चाहिए।
पुरातन काल में सृष्टि के रचयिता कमल पुष्प पर विराजमान ब्रह्मा जी के समक्ष सिद्धार्थ नामक राजा ने विनम्र पूर्वक उनके चरणों में नतमस्तक होकर यह आग्रह किया कि - हे परमपिता! आप तो इस सृष्टि के रचयिता व धर्म के संस्थापक है, सबके हित अहित के रक्षक है। आपने मुझे अन्य कई व्रतों के अनुसरण की कथा से अवगत कराने की कृपा की है। किन्तु हे परमपिता। मैं आपसे उस श्रेष्ठ व्रत के बारे में जाना चाहता हूं जिसके अनुसरण से मानव को समस्त पापों से मुक्ति प्राप्त होती है।
राजा सिद्धार्थ के प्रश्न से हर्षित होकर ब्रह्मा जी ने के प्रश्न की प्रसंशा करते हुए कहा कि - हे राजन! तुम्हारा प्रश्न इस सृष्टि के लिए अति उत्तम है। ये प्रश्न समाज हित व समाज को मार्ग प्रदर्शित करने में फलदाई होगा। विश्व में ऋषि पंचमी का व्रत का अनुसरण करने से साधक को अगले व पिछले समस्त पापों से मुक्ति प्राप्त होती है।
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ऐतिहासिक काल में विधर्भ नामक देश में एक विनम्र ब्राह्मण अपने सम्पूर्ण परिवार के साथ रहा करता था। उस ब्राह्मण को जीवन में दो संतानों का सुख प्राप्त था, एक पुत्र व एक पुत्री। उस ब्राह्मण की सुशीला नाम की बहुत ही सुन्दर, सुशील व पतिव्रता अर्धांगिनी थी। वे सभी हंसी-खुशी अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। पुत्री विवाह के शुभ संयोग अनुसार उस ब्राह्मण ने अपनी पुत्री का विवाह अपने ही कुल के समान वर से विवाह संपन्न कराया। ईश्वर की महिमा के प्रकोप से कुछ ही दिनों बाद ब्राह्मण की पुत्री विधवा हो गई व अपने घर वार को छोड़ कर अपने पिता के साथ रहने लगी। दुखी ब्राह्मण अपनी पत्नी व विधवा पुत्री सहित गंगा के किनारे एक कुटिया में अपना जीवन व्यतीत करने लगे
एक दिन ब्राह्मण की पुत्री विश्राम कर रही थी। उसका शरीर कीड़ों से भर गया था। पुत्री की माँ ये सब देख कर घबरा गई। वे तुरंत दौड़ती हुई अपने प्राणनाथ के पास जाकर पूरी बात विस्तार बताती है। तत्पश्चात उनसे यह प्रश्न करती है कि यह ईश्वर की कौन सी महिमा है? हमारी पुत्री के जीवन में ही सभी संकट क्यों आ रहे है? अपनी पत्नी की बातों को सुन कर ब्राह्मण भी व्याकुल हो गया।
तभी वह ब्राह्मण पड़ोस के गांव से एक साधवी ऋषि के पास जाकर उन्हें अपनी पुत्री की व्यथा का निवारण करने हेतु बुलाकर लाया। उसकी पुत्री की व्यथा को देखकर वह ऋषि उस ब्राह्मण से कहते हैं कि - हे राजन! ये पुत्री पिछले जन्म में भी ब्राह्मण पुत्री ही थी। एक बार उसने रजस्वला होते हुए भी पूजा के बर्तनों को स्पर्श कर लिया था। उसने उस जन्म से अभी तक उस दोष के निवारण हेतु कोई कार्य नहीं किया, इसलिए इस जन्म में इसके शरीर में कीड़े पड़ गए है।
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ऋषि की बात को सुनकर ब्राह्मण विनम्रता पूर्वक उनसे इस दोष से मुक्ति प्राप्त करने का उपाय पूछते हैं। दोष से मुक्ति हेतु ऋषि उनकी पुत्री को ऋषि पंचमी के व्रत का विधिपूर्वक अनुसरण करने का सुझाव देते है।
ऋषि की आज्ञा अनुसार ब्राह्मण पुत्री पूर्ण विधि पूर्वक व्रत का अनुसरण करती है जिससे उसे अपने जीवन के सभी पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। अगले जन्म में भी वह अनंत सुखों को प्राप्त कर अपने हर लम्हों को खुशहाली पूर्वक व्यतीत करती है।
1) इस दिन प्रातः काल उठकर सर्वप्रथम अपने इष्ट का स्मरण कर, शुभ दिन का आरंभ करें।
2) सुबह अपने घर को अच्छे से स्वच्छ कर, पूरे घर को गंगा जल से पवित्र करें।
3) इस दिन साधक को नए या फिर स्वच्छ कपड़ों को धारण करना चाहिए।
4) जिस साधक का संबंध गांव से हैं, उसे प्रातः काल उठकर अपने घर को गाय के गोबर से लीपना चाहिए।
5) इस दिन पूजा स्थल पर सप्त ऋषि व देवी अरुंधती की प्रतिमा को स्थापित करें या फिर माटी से उनकी प्रतिमा को स्वयं बनाएं।
6) विधि अनुसार पूजा स्थल पर अक्षत से पूर्ण कलश की स्थापना करें।
7) उस कलश पर साबुत नारियल को लाल व पीले कपड़े में लपेटकर स्थापित करें।
8) इस दिन सप्त ऋषि व मां अरुंधती की आराधना कर विधि अनुसार उनका पूजन करें।
9) साधक को पूजन के उपरांत सप्त ऋषि कथा का पाठ करना चाहिए।
10) इस दिन महिलाओं को बोया हुए अनाज ग्रहण नहीं करना चाहिए। उन्हें इस दिन पसई धान के चावल का भोजन करना चाहिए।
प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषिपंचमी व्रत की तिथि का आगमन होता है। इस वर्ष रविवार , तिथि 23 अगस्त 2020 को ऋषिपंचमी व्रत का शुभ संयोग है।
ऋषि पंचमी व्रत के पूजन हेतु शुभ मुहूर्त
ऋषि पंचमी व्रत के पूजन हेतु शुभ मुहूर्त आरंभ:- 19:55 pm - शनिवार - 22 अगस्त 2020
ऋषिपंचमी व्रत के पूजन हेतु शुभ मुहूर्त समाप्त:- 17:05 pm - रविवार - 23 अगस्त 2020