हिंदू धर्म में अनेकानेक त्यौहार है। यहां प्रकृति को भी आराध्य माना जाता है। धरती, जल, आकाश, अग्नि आदि सभी को देव की श्रेणी में रखा गया है, यहाँ तक कि प्रकृति में हो रहे अमूलभूत परिवर्तन को भी त्योहार के रूप में मनाया जाता है। अब बसंत पंचमी के त्यौहार को ही ले लीजिए।
बसंत पंचमी माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। वसंत पंचमी की पूजा सूर्योदय के बाद और दिन के मध्य भाग से पहले की जाती है। इस दिन भारत में वसंत ऋतु का आगमन होता है। बसंत प्रकृति में बहार और खिलते गुलजार लाता हैं। यह ऋतुराज है जो सभी छः ऋतुओं में से सबसे अधिक मनमोहक है।
इस दिन माँ शारदे की आराधना का विधान है, साथ ही माता सरस्वती के साथ भगवान श्री हरि विष्णु एवं कृष्ण राधा की भी पीले वस्त्र में पूजा-अर्चना की जाती है।
बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन का विधान है जो की पंचमी तिथि मध्य दिन के बाद शुरू होकर दूसरे दिन तक रहती है। इसलिए मां शारदे का पूजन कर्म दो दिनों तक चलता रहता है। सरस्वती पूजा भारत के पूर्वी क्षेत्रों में बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है। इसके अलावा इसे भारत के साथ-साथ नेपाल, पश्चिम बंगाल आदि में भी मनाया है।
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वसंत पंचमी का त्योहार मनाने के पीछे मान्यता है कि जब त्रेतायुग में भगवान श्री राम सीता की खोज में दरबदर भटक रहे थे, तो उन्हें ढूंढते-ढूंढते दंडकारण्य नामक स्थान पर पहुंच गए थे जहां माता शबरी अपने प्रभु की प्रतीक्षा में पलके बिछाए बैठी थी।
शबरी श्री राम को देख खुशी के मारे सुधबुध खो बैठीं और वह भील स्त्री शबरी अपने प्रभु को चख-चख बैर खिलाने लगी, ताकि श्री राम को केवल मीठे बेर ही खिला सके। शबरी प्रभु राम के दर्शन पाकर कृतार्थ हो गई। यह दिन वसंत पंचमी का था। तब से भक्त और भगवान के मिलन का यह दिन विशेष माना जाने लगा।
सरस्वती पूजन के संबंध में वेदों में निहित है कि भगवान विष्णु की आज्ञा के पश्चात जब ब्रह्मदेव ने सृष्टि की संरचना की, तो हर तरफ शांति ही शांति व्याप्त थी। बिना ध्वनि के कोई चहल-पहल महसूस ही नहीं हो पा रही थी, जिस कारण ब्रह्मा जी असंतुष्ट थे। तब उन्होंने अपने कमंडल से जल की धरा पर सिंचन किया।
पृथ्वी पर जल के गिरते ही धरती में अमूलभूत परिवर्तन के साथ कंपन होने लगा। तत्पश्चात एक चतुर्भुज दिव्य स्त्री का अवतरण हुआ, जिसके हाथों में वीणा थी जो एक हाथ वर मुद्रा में किए अपनी पाणी में वीणा के साथ पुस्तक एवं माला लिए प्रकट हुई, जिसके बाद ब्रह्मा जी के आदेश पर मां शारदे ने वीणा को झंकृत कर संपूर्ण सृष्टि को स्वर प्रदान किया। वीणा की ध्वनि से झरने के जल में कोलाहल की ध्वनि आ गई, हवा में सरसराहट सुनाई देने लगी, सभी प्राणी अपनी खुशी एवं गम को साझा करने लगे।
तब ब्रह्माजी ने सुंदर देवी को सरस्वती कहकर संबोधित किया। इसके अतिरिक्त शारदा को बागेश्वरी, भगवती, वीणावादिनी, वाग्देवी आदि नामों से भी जाना जाता है। मां शारदे के अवतरण का दिन बसंत पंचमी का दिन था, अतः इस दिन से वसंत पंचमी को मां सरस्वती के जन्म उत्सव के रूप में भी मनाया जाने लगा।
नवीन वर्ष के अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार बसंत पंचमी की तिथि वर्ष 2021 में 15 फरवरी दिन मंगलवार की है।
सरस्वती पूजन हेतु शुभ मुहूर्त - प्रातः 07 बजकर 01 मिनट से दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक।
सरस्वती पूजन कालावधि - 05 घण्टे 33 मिनट
पंचमी तिथि तिथि आरम्भ - 16 फरवरी 2021 सुबह तड़के 03 बजकर 36 मिनट
पंचमी तिथि समाप्त - 17 फरवरी 2021 प्रातः 05 बजकर 46 मिनट
माँ सरस्वती की आराधना हेतु मंत्र
ॐ ऐंग सरस्वतीये नमः ॐ
सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरुपिणि विद्यारंबम करिष्यामि सिद्धिर बावतुमे सधा
ॐ ऐम हरिम क्लेम महा सरस्वती देवया नमः
सरस्वती नमस्तुभ्यं, वरादे कामरुपेणि, विद्यारंभम करिश्मयामी, सिधीर भगवत मे सदा
ॐ वागीश्वर्यै विद्महे वाग्वादिन्यै धीमहि तन्नः सरस्वति प्रचोदयात।
पुराणों में वर्णित है कि बसंत पंचमी के दिन देवी रति ने कामदेव का षोडशोपचार पूजन विधान द्वारा पूजन कर इक्षित फलों की प्राप्ति की थी, इसलिए बसंत पंचमी पर षोडशोपचार पूजन का भी विधान है।
षोडशोपचार पूजन मंत्र
ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्रह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसंवत्सरे माघशुक्लपञ्चम्याम् अमुकवासरे अमुकगोत्रः अमुकनामाहं सकलपाप - क्षयपूर्वक - श्रुति - स्मृत्युक्ताखिल - पुण्यफलोपलब्धये सौभाग्य - सुस्वास्थ्यलाभाय अविहित - काम - रति - प्रवृत्तिरोधाय मम पत्यौ/पत्न्यां आजीवन - नवनवानुरागाय रति - कामदम्पती षोडशोपचारैः पूजयिष्ये।