वट पूर्णिमा व्रत को सुहागन स्त्रियां बड़े ही हर्षोल्लास एवं श्रद्धा भाव से पूर्ण करती है। विशेष तौर पर यह व्रत महाराष्ट्र, गुजरात एवं दक्षिण के अन्य कई राज्यों में अत्यंत ही पवित्र एवं श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। दक्षिणी क्षेत्र में इन व्रत का विशेष महत्व है, वहीं भारत के उत्तरी भाग में इसे अधिकतर लोग जेष्ठ मास की अमावस्या तिथि को ही मनाते हैं। दोनों क्षेत्रों में व्रत मनाने के प्रति भावनाएं समान होती है। यह व्रत स्त्रियां अपने जीवनसाथी के लंबी उम्र एवं सदैव साथ बनाए रखने हेतु करती हैं। वट पूर्णिमा व्रत को वट सावित्री व्रत के समान फलदाई माना जाता है। तो आइए जानते हैं इस वर्ष के जेष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को पड़ने वाले वट पूर्णिमा व्रत हेतु शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि।
इस वर्ष जेष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि 5 जून को पड़ रही है, अतः वट पूर्णिमा का व्रत भी 5 जून को ही रखा जाएगा।
किसी भी व्रत-त्योहार आदि हेतु शुभ मुहूर्त विशेष महत्व रखते हैं। आज के दिन वट पूर्णिमा के पूजा एवं विधि विधान हेतु पूर्णिमा के आरंभ से लेकर अंत तक का कालखंड अत्यंत ही शुभकारी है। इसके अतिरिक्त किसी भी समय मे किया गया पूजन व्यर्थ माना जाता है। आज अर्थात 5 जून 2020 को पूर्णिमा तिथि का आरंभ प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में 3 बजकर 17 मिनट पर हो जाएगा। तत्पश्चात यह पूरा दिन रह कर अर्धरात्रोत्तर 12 बजकर 42 मिनट (6 जून 2020 00:42 am) पर समाप्त हो जाएगी। अतः आप इसी पूर्णिमा के कालखंड के दौरान सूर्योदय पश्चात एवं सूर्यास्त के पूर्व विधि विधान से पूजा आराधना कर सकते हैं।
वट पूर्णिमा व्रत का पूजन सुहागन औरतें करती है। आज के दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी तालाब में स्नान कर अथवा अपने घर में नहाने की जल में गंगाजल डालकर पवित्र मन से स्नान कर नए पीले-लाल रंग के वस्त्र धारण करें।
इस दिन पीले अथवा गहरे लाल रंग के सिंदूर से अपनी मांग को सजाएं। तत्पश्चात सोलह श्रृंगार कर भगवान सूर्य को जल से अर्घ्य प्रदान करें तथा भगवान सूर्य को लाल तथा पीले रंग के पुष्प समर्पित करें। तत्पश्चात 2 बाँस की लकड़ियों की नई टोकरी लेकर उसमें से एक में सात प्रकार के अनाज एवं सात प्रकार के मौसमी फलों को संग्रहित करें तथा दूसरी टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा, कुमकुम, तिलक रोली मोली आदि रखें। इन दोनों टुकड़ियों को लाल रंग के कपड़े से ढक दें और आसपास के बरगद के पेड़ के नीचे जाकर बैठ जाये। वहाँ देवी सावित्री की प्रतिमा को स्थापित कर कुमकुम, तिलक आदि से उनकी पूजा करें। साथ ही वटवृक्ष पर भी कुमकुम तिलक आदि लगाकर उनकी भी पूजा करें। फिर मोली/कलावा लेकर वटवृक्ष के चारों और सात बार परिक्रमा करते हुए मौली से उन्हें बांधे। उसके बाद वट सावित्री व्रत के कथा का श्रवण करें एवं गरीब तथा जरूरतमंदों में अपनी क्षमता के अनुसार अन्न तथा पीले रंग के वस्त्र का दान करें। फिर वट वृक्ष के समीप हाथ जोड़कर उनसे तथा देवी सावित्री से अपने पति की दीर्घायु जीवन की कामना करें एवं अपने सुखी वैवाहिक जीवन हेतु प्रार्थना करें।
वट पूर्णिमा व्रत में महिलाएं विधिवत तौर तरीके से पूजा-पाठ आदि की क्रिया करने के साथ-साथ व्रत भी धारण करती हैं जिसमें कुछ महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं, तो कुछ फलाहार पर व्रत रखती हैं, जिसे महिलाएं दूसरे दिन प्रातः स्नानादि कर व्रत के विसर्जन की क्रिया को संपन्न कर पालन करती हैं। जबकि कुछ महिलाएं वट पूर्णिमा पर पूजन पाठ आदि क्रिया कर भोजन ग्रहण कर लेती है। आप अपनी श्रद्धा एवं शारीरिक क्षमता के अनुरूप अलग-अलग तरीके से व्रत कर सकते हैं।