ऋग्वेद से लेकर महाभारत तक साथ ही कई पुराणों में भी भगवान विश्वकर्मा का सर्वश्रेष्ठ शिल्पकार के रूप में अद्भुत वर्णन किया गया है। सृष्टि की तकनीकी व आधुनिकता में उनका अहम योगदान है। इनके कृत से देवलोक के देवताओं से लेकर धरा पर अवतरित हुए देवगण, मनुष्य आदि सभी सत्यता की स्थापना करने में पूर्णरूपेण सक्षम हो पाए।
शास्त्रों में वर्णन किया गया है कि विश्वकर्मा एक सर्वश्रेष्ठ शिल्पकार ही ही नहीं अपितु ऋषित्व प्रवृत्ति के ब्रह्म ज्ञानी भी थे। विष्णु के चक्र से लेकर कर्ण के कुंडल तक का निर्माण भगवान विश्वकर्मा द्वारा किया गया, यहाँ तक की विष्णु के अवतरण पश्चात हस्तिनापुर, द्वारिका, भगवान शिव का त्रिशूल, इंद्रपुरी, पुष्पक विमान आदि अनेकानेक तत्वों का निर्माण भी विश्वकर्मा द्वारा किया। अतः विश्वकर्मा के अवतरण दिवस यानी जन्मदिन को जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
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विश्वकर्मा जयंती भगवान विश्वकर्मा के जन्मोत्सव के पर्व के रूप में मनाई जाती है। भगवान विश्वकर्मा के जन्म से जुड़ी अनेक कथाएं प्रचलित है। हिंदू धर्म के भिन्न-भिन्न शास्त्रों एवं ग्रंथों में इनका अलग-अलग प्रकार से उल्लेख मिलता है। आइए जानते हैं-
भारत के पौराणिक एवं विश्वसनीय ग्रंथों में से एक महाभारत के आदिपर्व अध्याय के 16वें, 27वें एवं 28वें श्लोक में भगवान विश्वकर्मा के जन्म का वर्णन करते हुए कहा गया है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म भुवना, जो कि देव बृहस्पति की बहन है, के गर्भ से हुआ है, जबकि वराह पुराण के अध्याय 56 के अनुसार सर्वलोक के कल्याणार्थ हेतु ब्रह्मदेव ने अति चिंतन व मनन पश्चात पृथ्वी पर विश्वकर्मा की उत्पत्ति की।
वहीं स्कंद पुराण की माने तो धर्म ऋषि के आठवें पुत्र प्रभास गुरु बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मवादिनी से विवाह करते हैं। तत्पश्चात उन्हें भगवान विश्वकर्मा के रूप में संतान रत्न की प्राप्ति होती है।
माना जाता है कि धर्म सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी के पुत्र थे जिनकी पत्नी वस्तु थी। वस्तु की सात संताने थी जिसमें सातवां पुत्र वास्तु हुआ जो शिल्पशास्त्र आदि के ज्ञाता के रूप में प्रचलित थे। वास्तु का विवाह अंगिरसी नामक सुकन्या से हुआ जिससे विश्वकर्मा जी की उत्पत्ति हुई।
विश्वकर्मा पूजा हर वर्ष 16 या 17 सितंबर को मनाई जाती है। इस वर्ष ज्योतिषीय गणना अनुसार इसकी तिथि 16 सितंबर की तय है। ज्योतिषीय तिथि अनुसार यह दिन कन्या संक्रांति का होता है। इस दिन सूर्योदय हेतु निर्धारित समय सुबह 6 बजकर 8 मिनट का है, वहीं, सूर्यास्त शाम के 6 बजकर 25 मिनट पर होगा। सूर्योदय से सूर्यास्त तक की अवधि हिन्दू धर्म में पूजन आदि कर्म हेतु शुभकारी मानी जाती है।
इस दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि से निवृत्त होकर पवित्र भाव से भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा की स्थापना करें। तत्पश्चात विधिवत तौर पर उनकी पूजा आराधना करें। आज के दिन घर के सभी मशीनों, धातु सम्बंधित चलायमान वस्तुओं की सफाई करें, उनके ऊपर पुष्प चढ़ाएं। कोशिश करें कि आज मशीन आदि का प्रयोग ना हो। दैनिक दिनचर्या में मशीनों के योगदान हेतु उनका आभार व्यक्त करें। इस दिन वाहनों की भी सफाई करें एवं उन पर पुष्पमाला आदि अर्पित करें।
विश्वकर्मा जयंती के दिन पूजन स्थल के समीप आटे से रंगोली बनाने का भी विधान है। रंगोली बनाकर सात प्रकार के अनाज को रखकर उसके ऊपर कलश भी स्थापित किया जाता है। आज भगवान विश्वकर्मा को ऋतु फल एवं घर में बने मेवा मिष्ठान से भोग लगाकर प्रसाद का वितरण किया जाता है।
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