सृष्टि में अनेकानेक रत्न है जिसमे से वैदिक ज्योतिष में केवल 9 प्रकार के रत्नों को अहम महत्व दिया जाता है। वैदिक ज्योतिष अनुसार केवल नवग्रहों से संबंधित रत्नों को धारण करना चाहिए। इन 9 रत्नों में से प्रत्येक रत्न नवग्रहों में से किसी ना किसी ग्रह से विशेष के साथ संबंध रखता है। माणिक्य, मोती, पीला पुखराज, श्वेत पुखराज या हीरा, लाल मूंगा, पन्ना, नीला पुखराज या नीलम, गोमेद तथा लहसुनिया आदि इन सभी का संबंध ज्योतिष में से 9 रत्न नवग्रहों से क्रमश: सूर्य, चन्द्रमा, बृहस्पति, शुक्र, मंगल, बुध, शनि, राहु और केतु के साथ संबंध रखते हैं। इनमे से आज हम लहसुनिया रत्न के संबंध में बात करेंगे।
संस्कृत भाषा में लहसुनिया को वैदुर्य, विदुर रत्न, बाल सूर्य आदि-भिन्न भिन्न नामों से जाना जाता है। अंग्रेजी में इसे कैट्स (Cat's Eye) आई कहते हैं। इससे निकलने वाली दूधिया-सफेद, नीली, हरी या सोने जैसी किरणों की गणना इसके विलक्षण गुणों में की जाती है। इसको हिलाने-डुलाने पर इससे जो किरणें निकलती हैं, वो पेग्मेटाइट, नाइस तथा अभ्रकमय परतदार पत्थरों में पाई जाती हैं। यह रत्न भारत, चीन, श्रीलंका, ब्राजील और म्यांमार आदि में मिलता है जिनमें से सबसे श्रेष्ठ म्यांमार के मोगोव स्थान में पाया जाने वाला लहसुनिया माना जाता है। लहसुनिया को केतु का रत्न माना जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लहसुनिया केतु का रत्न है, यानि इस रत्न का अधिपति केतु ग्रह है। लहसुनिया अपने आध्यात्मिक गुणों के विशेष तौर पर प्रसिद्द है जो केतु के कुप्रभाव से बचने में हमें सहायता प्रदान करता है। इसके अतरिक्त यह कफ संबंधी रोगों से भी निजात दिलाता है। केतु विशेषकर वक्रिय स्थिति में विराजमान रहता है और जब भी यह जातक की कुंडली में प्रधान स्तिथि में होता है, तब यह शुभ परिणामदायक एवं लाभकारी सिद्ध होता है। वहीं इसके विपरीत जब भी कभी आपके बने हुए कार्यों में बाधाएं आ जाएं, या फिर मन में किसी अनहोनी का डर कायम रहे एवं जीवन में प्रगति के सभी द्वार बंद हों तो समझ जाइये कि आपकी कुंडली मे केतु दूषित भाव मे है।
रत्न ज्योतिष की माने तो जन्म कुण्डली में विराजमान केतु जब भी आपकी समस्याओं का कारण बनता है, लहसुनिया रत्न का धारण फायदेमंद साबित होता है। यह आकस्मिक उत्पन्न होने वाली सभी बाधाओं से मुक्ति तो दिलाता है, साथ ही त्वरित लाभ भी कराता है। यह केतु के दुष्परिणामों को जल्दी ही खत्म करने में सक्षम होता है।
जिन जातकों की कुंडली में केतु का दोष होता है, उन जातकों को ज्योतिषीय परामर्श के पश्चात लहसुनिया रत्न धारण करना चाहिए। जब केतु का दुष्प्रभाव व्यक्ति के ऊपर पड़ता है तो उसके बुरे दिन आरंभ हो जाते हैं। चारों और परेशानियां ही परेशानियां उत्पन्न होती रहती हैं। घर में कलेश, दुर्घटना आदि सामान्य बात हो जाता है। स्वयं से संबंधित परेशानियां, कारोबार में नुकसान आदि होने लगता है। अतः अगर कुण्डली में केतु की स्थिति केन्द्र/त्रिकोण में हो अर्थात केतु 1, 2, 4, 5, 7, 9, 10 भाव में हो तो लहसुनिया धारण करें, इससे अवश्य फायदा होता है। साथ ही यह तुला, वृषभ, मकर, मिथुन, कुम्भ आदि राशि के जातकों के लिए खास तौर पर फायदेमंद साबित होता है। ध्यान रहे, किसी भी रत्न के धारण के पूर्व ज्योतिषीय परामर्श जन्म कुंडली अनुसार अनिवार्य होता है।
इस रत्न को धारण करने हेतु वैदूर्य की तिथि शुभ मानी जाती है। साथ ही लहसुनिया को किसी ऐसे दिन धारण करना चाहिए, जब चन्द्रमा मीन, मेष या धनु राशि का हो, अथवा उस दिन अश्विनी, मघा या मूल नक्षत्र हो। इसे धारण करने का समय सूर्यास्त से लगभग एक पहर रात बीते तक उत्तम होता है। हालांकि सूर्योदय काल मे इसे धारण करना ज्यादा बेहतर माना जाता है। इस रत्न को स्वर्ण अथवा पंचधातु की अँगूठी में धारण किया जाता है। 2.25 कैरेट से लेकर 10 कैरेट तक का लहसुनिया रत्न धारण किया जा सकता है।
अगर उचित मुहूर्त का दिन शनिवार अथवा बृहस्पतिवार का हो तो ये सोने पर सुहागा के समान होगा। इस दिन सूर्योदय की वेला में स्नान कर अंगूठी को पंचामृत से स्नान करवाएं। तत्पश्चात षोड़षोपचार पूजन करके इस मंत्र "ॐ कें केतवे नमः" का सवा लाख जप करायें। उसके बाद गुरूवार या शनिवार को मध्यमा उॅगली में धारण करें।