मूंगा समुद्र के भीतर पाया जाने वाला लाल सिंदूरी वर्ण और गुलाबी रंग का रत्न है, हालांकि यह सफेद और काले रंग में भी मौजूद रहता है। इसका निर्माण विशेष समुद्री जीवो के कंकाल आदि से होता है। विज्ञान द्वारा इसे समुद्री जड़ी यानी वनस्पति की श्रेणी में रखा गया है। इसकी लंबाई 2 से 3 फीट और चौड़ाई 0.5 से 1 इंच तक होती है।
माना जाता है कि मूंगा जितनी अधिक गहराई से प्राप्त होता है, उसका रंग उतना ही हल्का और सुंदर होता है। यह भूमध्य सागर के तटवर्ती प्रदेशों में जैसे अल्जीरिया, सीगली, जापान, इरान आदि में मुख्य रूप से उत्तम प्रकृति का पाया जाता है। इसे संस्कृत में वृदृम कहा जाता है और अंग्रेजी में कोरल (Coral)। इसका अध्ययन वनस्पति विज्ञान में किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह मंगल ग्रह का रत्न है।
मूंगा का ज्योतिषीय संबंध
वैदिक ज्योतिष के अनुसार मूंगा स्टोन मंगल ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। मंगल एक ऊष्ण ग्रह है। जब कभी किसी जातक के जन्म कुंडली में मंगल अच्छा असर डाल रहा हो तो ऐसे जातक को इस रत्न का अवश्य धारण करना चाहिए, ताकि उस पर मंगल की कृपा दृष्ठि बनी रहे। वहीं अगर आपकी कुंडली में मंगल कमजोर है तो ऐसी स्थिति में जातक को मूंगा अवश्य रूप से धारण करना चाहिए।
चूँकि मूंगा व्यक्ति के मंगल को मजबूती प्रदान करने का कारक है, यह जातक को मंगल के दुष्प्रभावों से तो बचाता ही है, साथ ही मंगल को जातक के लिए शुभकारी बनाने का कार्य करता है।
मूंगा धारण करने से व्यक्ति के पराक्रम में वृद्धि होती है तथा आलस्य में कमी आती है। यह कुंडली में स्थित मांगलिक योग की अशुभ प्रभावों को कम करता है साथ ही इस योग के माध्यम से होने वाले नुकसानों को भी खत्म करता है।
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स्त्रियों में रक्त की कमी, मासिक धर्म और रक्तचाप जैसी परेशानियो को नियंत्रित करने में भी यह रत्न अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है। अतः अगर आपको ऐसा लगता है कि आपका मंगल कमजोर है, या आप मंगल के दुष्प्रभावों से पीड़ित हैं तो जल्दी ही किसी सिद्ध ज्योतिषि से अपनी जन्मकुंडली की जांच कराएं एवं उनके निर्देशानुसार कार्य करें, तथा मूंगा विधि पूर्वक शुभ मुहूर्त में धारण करें।
कोरल (मूंगा) धारण करना घातक भी हो सकता है
मूंगा रत्न अत्यंत शुभकारी है किंतु इसे धारण करने की विधि, जातक एवं मुहूर्त आदि भी इसकी शुभता-अशुभता पर अपना प्रभाव डालते हैं।
इस रत्न को मंगल दोष से पीड़ित अथवा मांगलिक व्यक्तियों को धारण करने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा ऐसे जातक जिनकी कुंडली में मंगल प्रबल है एवं इसके सकारात्मक प्रभाव व्यक्ति पर प्रतिदिन बने रहते हैं, ऐसे लोगों को भी मूंगा धारण करने के लिए कहा जाता है ताकि जातकों पर मंगल की शुभ दृष्टि सदैव बनी रहे।
यदि कोई अन्य जातक जिनकी कुंडली में मंगल से संबंधित कोई दोष अथवा मंगल की प्रबल स्थिति नहीं होती है, ऐसे जातकों के लिए मूंगा धारण करना अत्यंत ही कष्टदायक एवं अनेकानेक बाधाओं को आमंत्रण देने के समान होता है। इसके अलावा जिनकी कुंडली में मूंगा धारण करना आवश्यक है, उनके द्वारा अगर अनुचित मुहूर्त अथवा अनुचित तरीके से रत्न धारण किया जाता है तो भी यह शुभ फल की जगह अशुभ फल ही देता है।
इसे धारण करने के पश्चात व्यक्ति को इसकी शुद्धता आदि ख्याल रखना चाहिए। इसे पवित्र बनाए रखना चाहिए अन्यथा इसके दुष्प्रभावों से बच पाना कठिन होता है। ध्यान रहे किसी भी रत्न को धारण करने के पूर्व जन्मकुंडली अनुसार ज्योतिषीय सलाह अनिवार्य माना जाता है।
मूंगा रत्न धारण करने हेतु 5 से 8 कैरेट के मूंगा रत्न को स्वर्ण या ताम्बे की अंगूठी में जड़वा कर किसी भी शुक्ल पक्ष के किसी भी मंगलवार के दिन सूर्योदय होने के पश्चात् इसकी प्राण प्रतिष्ठा करनी चाहिए। इसकी प्राण प्रतिष्ठा करने हेतु इसका पन्चामृत दूध, गंगा जल, शहद, और शक्कर, घी से स्नान करना चाहिए। तत्पश्चात जातक को संकल्प बद्ध होते हुए ईश्वर से प्रार्थना करना चाहिए कि:-
हे मंगल देव मैं आपकी कृपा प्राप्ति करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न मूंगा धारण कर रहा हूँ, कृपया करके मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करें एवम मंगल संबंधी दोष से हमे मुक्त करें।
इसके बाद 108 बार ॐ अं अंगारकाय नम: मन्त्र का जाप करना चाहिए। तत्पश्चात मूंगा रत्न जड़ित अंगूठी हनुमान जी के चरणों से स्पर्श करें, क्योंकि वहीं मंगल के अधिष्ठाता देव है। इसके बाद तर्जनी या अनामिका उंगली में ये अंगूठी धारण करनी चाहिए।
मूंगा रत्न धारण करने के 9 दिनों में प्रभाव देना आरम्भ कर देता है और लगभग 3 वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है और फिर निष्क्रिय हो जाता है। अतः इसके पश्चात् नया मूंगा रत्न धारण करना चाहिए।
मूंगा रत्न का रंग लाल और दाग रहित होना चाहिए, साथ ही इसमें में कोई दोष नहीं होना चाहिए, अन्यथा शुभ प्रभावों में कमी अथवा विघ्न आ सकता है।
अन्य महत्वपूर्ण रत्न जो रखते हैं विशेष प्रभाव:-