रत्नों का प्रयोग केवल आभूषण की चमक बढ़ाने के लिए ही नहीं, अपितु अपने भाग्य की चमक बढ़ाने में भी कर सकते हैं। ज्योतिष शास्त्र की मानें तो व्यक्ति के जीवन के संचालन में उसकी जन्मकुंडली में निहित ग्रह गोचरों का महत्व होता है जिनका संतुलित एवं शुभकारी होना अत्यंत आवश्यक होता है।
रत्न की मूल्यवान वस्तुओं में संज्ञा है। माना जाता है कि आदि काल में जब दैत्य और देवतागण ने मिलकर क्षीर समुद्र का मंथन किया था, तत्पश्चात 14 प्रकार के रत्नों की उत्पत्ति हुई थी। यह 14 प्रकार के रत्न हमारी कुंडली के नव ग्रहों से संबंधित है। यह हमारे ग्रह गोचर की स्थिति परिस्थिति पर अपना नियंत्रण स्थापित करने में अहम योगदान निभाते हैं।
इन 14 रत्नों को देवताओं ने भी श्रेष्ठता की उपाधि दी है। यह 14 रत्न मानव जीवन के विभिन्न प्रकार के कष्टों के निवारण हेतु उपयोगी होते हैं। इनके माध्यम से व्यक्ति सुख समृद्धि एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति कर पाने में सक्षम होता है। प्रायः यह मूल्यवान होते है। इन्हीं 14 मूल्यवान रत्नों में से एक नीलम है। आइए आज हम जानते हैं नीलम की प्रकृति उन से होने वाले लाभ एवं नुकसान के संबंध में।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में जन्म कुंडली की स्थिति को बेहतर रखने हेतु कुछ उपाय आदि बताए गए हैं जिसमें नवरत्नों का अपना एक अलग ही महत्व है। इन नवरत्नों में से नीलम रत्न अहम और बेशकीमती माना गया है।
नीलम को नीलाष्म, नीलरत्न अथवा शनि प्रिय भी कहा जाता है। इसका अंग्रेजी नाम ब्लू सफायर (Blue Sapphire) है। रत्नों की भिन्न-भिन्न जातियों में से यह कुरविंद जाती का है। इसे इसके नीले रंग के कारण ही नीलम कहा जाता हैं। हालांकि यह अन्य रंगों में भी पाया जाता है लेकिन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार व्यक्ति के ग्रह गोचर हेतु इंद्रनील, आकाश समान नीले रंग के नीलम का प्रयोग करना चाहिए। आमतौर पर यह गुलाबी, नारंगी, पीला, बैंगनी आदि रंगों में भी पाया जाता है। इसे खनन द्वारा खानों से प्राप्त किया जाता है। भारत में प्रमुख रूप से इसका भंडार कश्मीर में है, वहीं विश्व में सबसे शुद्ध और उत्तम प्रकृति का नीलम म्यानमार, श्रीलंका आदि के क्षेत्रों में पाया जाता है।
नीलम शनि का रत्न माना जाता है। कहा जाता है कि जिस प्रकार शनि के शुभ अथवा अशुभ प्रभाव व्यक्ति के जीवन में लंबे समय तक प्रभावी रहते हैं, उसी प्रकार नीलम के चमत्कारी प्रभाव व्यक्ति के जीवन में लंबे समय तक विद्यमान रहते हैं।
जिस प्रकार शनिदेव किसी जातक के लिए शुभ तो किसी के लिए अशुभ होते हैं, उसी प्रकार नीलम लंबे तक किसी के लिए शुभ तो किसी के ऊपर अपने अशुभ प्रभाव दर्शाता है। नीलम के संबंध में यह भी कहा जाता है कि यह एक ऐसा रत्न है जो व्यक्ति को रंक से राजा तो राजा से फकीर भी बना सकता है।
नीलम को ग्रह-गोचरों से संबंधित करते हुए यह कहा जाता है कि यह शनि के दुष्प्रभाव, शनि की ढैया, साढ़ेसाती आदि के प्रभावों से बचने हेतु उपयुक्त माना जाता है। हालांकि कई बार या कुछ लोगों पर अपने नकारात्मक प्रभाव भी दर्शाता है। अतः नीलम धारण करने से पूर्व ज्योतिषीय परामर्श अवश्य लेना चाहिए, तत्पश्चात ही अपने ग्रह गोचरों की स्थिति परिस्थिति के अनुरूप शनि की दशा-दिशा को ध्यान में रखते हुए नीलम का धारण करना चाहिए।
नीलम स्टोन का ज्योतिषीय तथ्य
ज्योतिष शास्त्र की माने तो व्यक्ति की जन्म कुंडली उसके बीते कल से लेकर आने वाले कल तक का लेखा-जोखा रखती है। इसमें नवग्रह, भाव, लग्न की दशा-दिशा आदि हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं जिसमें नवग्रहों का संबंध नवरत्नों से है।
नवरत्न नवग्रहों की स्थिति में परिवर्तन लाने का कारण बन सकता है, जिसमें शनि की स्थिति के लिए नीलम को उपयुक्त माना जाता है। हालांकि शनि को जातक की कुंडली का सबसे क्रूर ग्रह माना जाता है, इसे मंद तथा शनैश्चर भी कहा जाता है। यह काफी मंद गति से गमन करने वाला ग्रह है। यह किसी भी जातक की राशि चक्र में ढाई साल तक भ्रमण करता है। इसे कर्माधिपति से भी संबोधित किया जाता है। पढ़ें शनि की कुदृष्टि को दूर करने के उपाय।
शनि की साढ़ेसाती को अत्यंत ही कष्टकारी माना जाता है। इस काल अवधि में व्यक्ति के जीवन में अनेकानेक बाधाएं आती हैं। कई बार साढ़ेसाती के कारण बात जीवन पर भी बन जाती है। अतः कुंडली के नवग्रहों में शनि का शांत होना अत्यंत ही आवश्यक होता है। इसके लिए नीलम को अत्यंत ही उपयुक्त रत्न माना गया है।
नीलम शनि की कुदृष्टि के प्रभावों को कम करने तथा शुभकारी परिणामों की वृद्धि करने का कारक बनता है। इसी कारण किसी भी शनि ग्रह के अशुभ प्रभावों से प्रभावित जातकों को नीलम धारण करने की ज्योतिषीय सलाह दी जाती है।
ब्लू सफायर की संरचना
नीलम एक खनिज है जो खानों द्वारा प्राप्त किया जाता है। इसकी रासायनिक संरचना कुछ इस प्रकार होती है। यह एल्युमीनियम ऑक्साइड (Al2 O3) है जिसमें एल्युमीनियम ऑक्साइड के रूप में आयरन, टाइटेनियम, क्रोमियम, कॉपर और मैग्नीशियम जैसे तत्व मिले होते हैं।
नीलम की गुरुत्वाकर्षण सीमा 3.99 से 4.00 तक की रहती है। वहीं अपवर्तक सूची में इसकी सीमा 1.760-1.768 से 1.770-1.779 तक रहती है। यह अनेक प्रकारों में से कुरुन्दम ग्रुप से संबंधित है। यह हीरे के बाद सबसे कठोर खनिज माना जाता है। इस रत्न की सुंदरता और शुद्धता इसकी पारदर्शिता और उसके शानदार नीले रंग से निकलने वाले विभिन्न शेड्स में हैं। हालांकि यह कई रंगों में मौजूद है, किंतु नीले रंग के नीलम को प्रमुख माना जाता है।
नीलम की प्रकृति
नीलम एक शक्तिशाली एवं चमत्कारी रत्न है जिसका उपरत्न नीली है। नीलम का रंग गहरा नीला एवं हल्के पारदर्शी नीले में चमकदार लोचदार प्रकार का होता है।
नीलम अलग-अलग किस्म एवं कीमतों में पाया जाता है। कुछ नीलम 35 रूपए के दाम से मिल जाते हैं, तो कुछ 50000 रुपये प्रति कैरेट तक भी मिलते हैं। नीलम की गुणवत्ता के संबंध में यह मान्यता है कि अगर नीलम उच्च गुणवत्ता वाला है तो इसे दूध में डुबोने से यह बढ़िया दूध का रंग नीला कर देता है। यह दिखने में चिकना एवं चमकीला होता है। अगर इसे पानी से भरे कांच के गिलास में रखा जाता है तो पानी के ऊपर एक प्रकार के नीले रंग की किरण दृश्य मान होने लगती है। इसका रंग मोर के पंख के सदृश्य नीला एवं पारदर्शी होता है।
नीलम पर जब प्रकाश डाला जाता है तो इसकी इससे नीले रंग की आभा दूर तक चिपकती है। नीलम की परख आप उसके घनत्व से भी रख सकते हैं। इसके 1 सेंटीमीटर स्क्वायर के बीच में 3.98 ग्राम का वजन पाया जाता है। अतएव आप इसके वजन के माध्यम से इसकी जांच कर सकते हैं।
नीलम धारण करने हेतु 3 से 6 कैरेट के नीलम रत्न को स्वर्ण या पंचधातु की अंगूठी में जड़वाना चाहिए। तत्पश्चात उचित शुभ मुहूर्त अनुसार किसी शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को सुर्योदय के पश्चात स्नान कर अंगूठी का शुद्धिकरण करें। इसके लिए गंगा जल, दूध, केसर और शहद के घोल में अंगूठी को 15 से 20 मिनट तक रख दें और शनि देव की आराधना करें। अब अंगूठी को घोल से निकाल कर गंगा जल से धो ले। अंगूठी को धोने के पश्चात "ॐ शं शनैश्चराय नमः" मंत्र जाप द्वारा इसे अभिमंत्रित करें। तत्पश्चात अंगूठी को शिव जी के चरणों के स्पर्श कर मध्यमा ऊँगली में धारण करे!
ये जातक न करें धारण
जिन जातको का सिंह लग्न, मेष लग्न अथवा वृश्चिक लग्न है, उन जातकों को नीलम नहीं पहनना चाहिए, अन्यथा नुकसान होता है। साथ ही जब नीलम पाप भावों में हो तो 6, 8, 12 के अंक में नीलम धारण करने से अचानक कई समस्यायें उत्पन्न हो जाती है।
नीलम को माणिक्य व मूंगा के साथ भी कदापि धारण नहीं करना चाहिए। (हालांकि इन मामलों जन्म कुंडली अनुसार ज्योतिषीय सलाह ही मान्य होता है।)
नीलम है शुभकारी
माना जाता है सितम्बर में जन्में लोगों को नीलम पहनने से लाभ मिलता है। इसके अतरिक्त मेष, वृष एवं तुला लग्न के लिए शनि योगकारी ग्रह होते हैं। अतः इन लग्न के व्यक्तियों का नीलम धारण करना लाभकारी है। मकर एवं कुम्भ राशि के स्वामी शनि ग्रह हैं, अत: इस लग्न के लिए शनि शुभ होते हैं। इसलिए मकर एवं कुम्भ लग्न के व्यक्ति का भी नीलम धारण करना हितकारी हैं। जिन जातकों की कुण्डली में शश योग होता है, उनके लिए नीलम पहनना बहुत ही फायदेमंद होता है।
नीलम रत्न धारण करने के अलग अलग जातकों पर भिन्न-भिन्न प्रभाव प्रदर्शित होते हैं। कुछ जातकों के लिए नीलम अत्यंत ही शुभकारी होता है तो कुछ के लिए यह बुरे प्रभाव दर्शाता है। कुछ ऐसे जातक होते हैं जिनके जीवन में खुशियां ही खुशियां आ जाती है जो रंक से राजा की स्थिति तक पहुंच जाते हैं, तो वहीं कुछ जातकों पर इसके दुष्प्रभाव परिलक्षित होते हैं। ऐसे जातकों के जीवन में आए दिन किसी न किसी प्रकार का संकट लगा रहता है। आइए आज हम जानते हैं नीलम धारण करने के कुछ शुभ-अशुभ परिणाम।
नीलम शनि का रत्न है। यह अत्यंत ही प्रभावी है। इसे धारण करते ही व्यक्ति के जीवन में इसके प्रभाव परिलक्षित होने लगते हैं। अतएव नीलम जैसे रत्नों को कभी भी बिना ज्योतिषीय परामर्श के धारण नहीं करना चाहिए।
जिन जातकों का लग्न भाव मेष, वृषभ, तुला, अथवा वृश्चिक में हो, उनके लिए नीलम धारण करना भाग्योदय को जागृत करने के समान है। ऐसे जातकों के जीवन में नीलम शुभ प्रभाव परिलक्षित करते हैं।
जिन जातकों के चौथे, पांचवे, दसवें तथा ग्यारहवें भाव में शनि मौजूद होता है, उन जातकों को नीलम अवश्य धारण करना चाहिए। इसके अतिरिक्त यदि आपकी कुंडली के छठे और आठवें भाव के स्वामी के साथ शनि विराजमान हो या फिर स्वयं ही शनि आपके छठे और आठवें भाव में हो, तो इन जातकों को भी नीलम धारण करना चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि मकर और कुंभ राशि का स्वामी ग्रह माना जाता है। अतः जब व्यक्ति की कुंडली में शनि दोनों राशियों शुभ भावों में विराजमान हो तो उन्हें नीलम धारण करना चाहिए। वहीं अगर दोनों में से कोई भी एक राशि भी शुभ भाव में न हो, तो नीलम धारण करना आपके लिए अशुभ हो सकता है।
सकारात्मक प्रभाव
नीलम के नकारात्मक प्रभाव
नीलम का प्रभाव अति शीघ्र पड़ता है। अतः यह जिन जातकों के लिए नकारात्मक प्रभावी होता है, यानी सकारात्मक प्रभाव प्रदान करने योग्य नहीं होता है उनके जीवन में अनेकानेक प्रकार की बाधाएं आनी आरंभ हो जाती है, आये दिन किसी न किसी प्रकार की चुनौतियों से दो चार होना पड़ता है।
मंत्र/ विशेष
नीलम धारण करने के पश्चात आपके जीवन में अगर उपरोक्त प्रकार के प्रभाव परिलक्षित हो रहे हैं, तो आप इससे यह अनुमान लगा सकते हैं कि नीलम आपके लिए शुभ है अथवा अशुभ। हालांकि नीलम जैसे रत्न अथवा किसी अन्य रत्न को भी धारण करने से पूर्व ज्योतिषीय परामर्श अनिवार्य होता है। अतः बिना ज्योतिषीय सलाह के एवं अपनी कुंडली के ग्रह गोचरों की परिस्थितियों को जाने बिना रत्नों को धारण ना करें।
कई बार ऐसा होता है कि नीलम धारण करने के पश्चात किसी कारण वश यह जागृत अवस्था में नहीं आ पाता है, जिसके कारण आपको उसके प्रभाव परिलक्षित नहीं होते। अतः नीलम रत्न को धारण करने हेतु आपको शमी की लकड़ी से 108 बार "ॐ शन्नोदेवीरभिष्ट्यः आपोभवन्तुपीतये शंय्योरभिस्रवन्तुनः" मंत्र के उच्चारण के साथ अभिषेक करना चाहिए, तत्पश्चात यह रत्न जागृत होता है एवं अपने सकारात्मक प्रभाव प्रदर्शित करना आरंभ करता है।
अन्य महत्वपूर्ण रत्न जो रखते हैं विशेष प्रभाव:-