पुखराज सिलीकेट मिनरल होता है जो एल्युमीनियम और क्लोरीन से निर्मित होता है। यह रत्न कई रंगों में उपलब्ध रहता है लेकिन धारण करने हेतु शुभ पुखराजों का रंग हल्का पीला या गहरा नारंगी पीला माना जाता है। यह बेहद खूबसूरत रत्न है। इसकी गुणवत्ता इसके आकार रंग एवं शुद्धता के आधार पर तय की जाती है। हालांकि इसमें प्राकृतिक तौर पर ही कुछ अशुद्धियां और तरल पदार्थ पाए जाते हैं। इसे ध्यान से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि इसके अंदर पानी मौजूद हो। यह पारभासी रत्न सा प्रतीत होता है।
पुखराज का महत्व
बृहस्पति को सभी इशों में श्रेष्ठ गुरु की उपाधि दी जाती है। इसके अतिरिक्त सभी नौ ग्रह में भी बृहस्पति का अलग ही स्थान होता है। ऐसे में हमारी कुंडली में इसका सम्मान भाव के साथ विराजित होना अत्यंत आवश्यक है। ऐसी स्थिति में पुखराज को बृहस्पति की उत्तम स्थिति एवं अनुकूल प्रतिक्रिया व आशीष हेतु अत्यंत ही शुभकारी माना गया है।
ज्योतिष के अनुसार पीले रंग के पुखराज को बृहस्पति ग्रह का रत्न माना जाता है। कहा जाता है पुखराज को विधिपूर्वक धारण करने के पश्चात बृहस्पति ग्रह के गुणों में वृद्धि होती है जिससे सभी दोषों का निवारण होता है। पुखराज धारण करना व्यक्ति के अंदर मानसिक तौर पर मूलभूत परिवर्तन लाता है जिससे व्यक्ति के अंदर नवीन शुभ विचार आते हैं।
राशि जातकों हेतु पुखराज
प्रत्येक व्यक्ति के राशिफल का आधार उसकी जन्मकुंडली होती है। व्यक्ति की जन्म कुंडली की दशा-दिशा, ग्रह-गोचर आदि उसके राशिफल का निर्धारण करती है जिसमें धनु एवं मीन राशि के जातकों के बृहस्पति की स्थिति हेतु इसे बेहतर माना जाता है। इसलिए लग्न क्रम के अनुसार व्यक्ति को रत्न का धारण करना चाहिए। अतः धनु एवं मीन राशि के जातकों का पुखराज धारण करना मंगलकारी माना गया है।
पुखराज को सोने के साथ जड़वाकर धारण करना शुभ माना जाता है। इसे धारण करने हेतु गुरुवार का दिन निर्धारित है। अतः गुरुवार को स्नान, ध्यान आदि कर सोने की अंगूठी में जड़े पुखराज को दाहिने हाथ की तर्जनी उंगली में धारण करें। इसकी अंगूठी निर्मित करने में कम से कम 4 रत्ती अथवा 4 कैरेट सोने का प्रयोग करें। इसकी बनावट में अंगूठी के रत्न का निचला हिस्सा खुला रखें, ताकि पुखराज का स्पर्श आपकी उंगली से रहे।
जिन लोगों को अंगूठी धारण करने में असुविधा महसूस होती है। वे लोग सोने के लॉकेट में गुरु यंत्र के साथ पुखराज धारण कर सकते हैं। इसे और भी अधिक प्रभावी माना जाता है। इससे रत्न की शुद्धता बरकरार रहती है।
ऐसा माना जाता है कि पुखराज रत्न को पहनने अथवा धारण करने पर धारक की कई प्रकार समस्याएं दूर होती है। इसके लाभों में मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं :-
पुखराज धारण करने हेतु गुरुवार के दिन गुरु पुष्य नक्षत्र में अंगूठी को सर्वप्रथम गंगाजल तत्पश्चात गाय के कच्चे दूध से धोकर, गंगाजल का अभिसिंचन करें। जिसके बाद गुरु यानी भगवान बृहस्पति मंत्रों का उच्चारण करते हुए इसे धारण करें।
ॐ बृं बृहस्पतये नमः
अथवा
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः
इसे नये पीले वस्त्र पहनकर धारण करें। तत्पश्चात पीली वस्तुओं जैसे पीले वस्त्र, चने की दाल, हल्दी, शक्कर, गुरु यंत्र आदि का दान करें। धारण करने के बाद पुखराज की अवधि 4 वर्ष 3 माह 18 दिनों तक ही होती है। इसके बाद पुखराज का प्रभाव निष्क्रिय होने लगता है। अतः इस काल अवधि के बाद जातक को पुराना पुखराज उतारकर नया धारण करना चाहिए।
अन्य महत्वपूर्ण रत्न जो रखते हैं विशेष प्रभाव:-