ब्रह्मांड में कुल 27 नक्षत्र है। इन 27 नक्षत्र को प्रजापति दक्ष की 27 पुत्रियों के रूप में माना जाता है। इनमें से कुछ हमारे लिए शुभ प्रभावी हैं तो वहीं कुछ हमारे लिए अशुभ प्रभाव दर्शाते हैं। अशुभ प्रभाव दर्शाने वाले नक्षत्रों में एक विशेष स्थिति में उत्पन्न गंड मूल नक्षत्र भी है। गंड मूल नक्षत्र का स्वामित्व केतु और बुध द्वारा होता है जो कुछ इस प्रकार से है - नक्षत्र स्वामी ग्रह देवता अश्वनी केतु, अश्विनी कुमार अश्लेषा बुध सर्प, मघा केतु पितृ, ज्येष्ठा बुध इंद्र, मूल केतु राक्षस व रेवती बुध सूर्य।
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक जब नक्षत्र और राशि एक ही स्थान पर मिलते हैं अथवा इनका एक ही स्थान से अभ्युदय आरंभ होता है, तो यह गंड मूल नक्षत्र का निर्माण करता है। जैसे कि जब कर्क राशि की समाप्ति अश्लेषा नक्षत्र में होगी एवं सिंह राशि का आरंभ मघा नक्षत्र में एक साथ होगा, तो इनमें से अश्लेषा गण्ड संज्ञक तथा मघा मूल संज्ञक नक्षत्र कहलायेगा। इसी प्रकार गण्डमूल नक्षत्र में कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु तथा मीन राशि के शुरुआत एवं अंत में आते हैं।
नक्षत्रों के शुभ-अशुभ के प्रभाव के संबंध में ज्योतिष शास्त्र में यह कहा गया है कि वे नक्षत्र जातकों के ऊपर अपना अशुभ प्रभाव दर्शाते हैं जो राशि और लग्न की संधि काल में आरंभ होते हैं। ऐसे नक्षत्रों के लिए जातकों को ज्योतिषी परामर्श से विशेष उपाय करवाना चाहिए। बिना उपाय करवाएं इन नक्षत्रों के दोष व्यक्ति के जीवन को तबाह कर सकते हैं। ऐसे में जातकों के जीवन में आए दिन किसी न किसी प्रकार की समस्या बनी रहती है। गंड मूल अथवा मूल नक्षत्र में ऐसे कुल 6 नक्षत्र आते हैं, जो दोष युक्त माने जाते हैं। ऐसे 6 नक्षत्र कुछ इस प्रकार हैं - अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मघा तथा रेवती।
अतएव यदि आपके घर में किसी शिशु का जन्म मूल अथवा गंड मूल नक्षत्र में होता है, तो यह प्रायः आपके लिए अशुभकारी ही होता है। ऐसे में ज्योतिषीय परामर्श लेकर दोष की मुक्ति हेतु उपाय करवाएं एवं गण्ड मूल अथवा मूल नक्षत्र में कभी भी कोई भी शुभ कार्य आरंभ ना करें।
ये भी पढ़ें: मांगलिक दोष को दूर करने के सरल उपाय
भारतीय ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार गण्ड मूल नक्षत्र अत्यंत ही अशुभकारी एवं विभिन्न प्रकार के संकट उत्पन्न करने का कारक माना जाता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक जिस भी शिशु का जन्म गंड मूल अथवा मूल नक्षत्र में होता है, ऐसे जातक ना सिर्फ स्वयं के जीवन के लिए सदैव कष्ट एवं पीड़ा उत्पन्न करते हैं, बल्कि ऐसे जातकों के जीवन के दुष्प्रभाव उनके स्वजनों जैसे कि माता-पिता भाई-बहन आदि पर भी परिलक्षित होते हैं। गण्डमूल में शिशु के जन्म को लेकर लोचाकर की भाषा मे इसे मूल पड़ना कहा जाता है।
मूल नक्षत्र के प्रभाव को अत्यंत कष्टकारी एवं दुखदाई माना जाता है। इसके दुष्प्रभाव से जातक के परिवार में दरिद्रता आती है एवं सदैव दुर्घटना आदि का भय बना रहता है। जिस घर में किसी शिशु का जन्म गण्डमूल या मूल नक्षत्र में होता है, उस घर में किसी न किसी को सदैव स्वास्थ्य समस्या लगी रहती है।
गंड मूल नक्षत्र में जन्मे जातक अनेकानेक प्रकार की स्वास्थ्य समस्या एवं अन्य समस्याओं से जीवन पर्यंत जूझते रहते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस नक्षत्र में जन्मे बालक का क्रोधी, रोगी, ईर्ष्यावान, लंपट में समय बिताने वाला एवं अशुभ प्रभाव दर्शाने वाला होना कोई हैरत की बात नहीं है। ऐसे जातकों को अपने गंड मूल दोष हेतु उपाय करवाना चाहिए। अगर शिशु के माता-पिता को शिशु के जन्म के 27 दिन के पूर्व शिशु के गण मूल नक्षत्र में जन्म लेने एवं उसके दुष्प्रभावों का संकेत मिल जाता हो, तो माता-पिता को शिशु के जन्म के ठीक 27 दिन जब उसके जन्म का नक्षत्र पुनः आता है, तो उस दिन ज्योतिषीय परामर्श से विशेष विधि विधान द्वारा भाव पूर्वक दोष मुक्ति के उपाय करने चाहिए, अन्यथा यह जीवन पर्यंत शिशु के साथ-साथ घर परिवार के सभी जनों के लिए संकट उत्पन्न करता रहेगा। ऐसे मसलों में विद्वतगणों एवं ज्योतिषियों का हस्तक्षेप अनिवार्य हैं।
यदि गंड मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले बालक ज्योतिष के अनुसार शुभ प्रभावी होते हैं, तो वे बालक सामान्य से बिल्कुल भिन्न होते हैं। उनमें कुछ अलग ही प्रकार की विशेषता होती हैं। ऐसे बालक तेजस्वी, प्रखर, यशस्वी, रचनात्मक आदि अनेकानेक कलाओं से युक्त होते हैं। अगर ऐसे बालकों को सामाजिक व पारिवारिक बंधनों से मुक्त कर दिया जाता है, तो वे अपने योग्य किसी विशिष्ट क्षेत्र में खूब नाम रोशन करते हैं। एक नई बुलंदियों तक उस क्षेत्र को भी ले जाते हैं, साथ ही स्वयं भी श्रेष्ठता के शिखर पर पहुंचते हैं। अतएव यह सदा-सर्वदा हेतु सत्य नहीं है कि गंड मूल नक्षत्र में जन्मे बालक अत्यंत अशुभ प्रभावी ही हों, इस नक्षत्र में जो भी शिशु अपनी कुंडली के अनुरूप शुभ होते हैं, वे वशिष्ठ एवं विलक्षण होते हैं।
यदि आपके शिशु का जन्म जन्म मूल नक्षत्र में हुआ हो एवं वे अशुभ प्रभावी हैं, तो आपको शिशु के जन्म के ठीक 27 दिन यानी जन्म के समय के बाद 27वें दिन उसी नक्षत्र के आने पर आपको उस नक्षत्र की शांति हेतु उचित पूजन कर्म विधि विधान आदि को अपनाना चाहिए। ऐसे मसलों में ज्योतिषीय परामर्श अवश्य लें।
आप मूल नक्षत्र के प्रभाव को दूर करने हेतु उक्त उपायों को अपनाएं -