केतु के उपाय

ketu ke upay

हमारी कुंडली में विराजमान राहु-केतू आदि छाया ग्रह के प्रभाव का हमारे जीवन शैली में प्रत्यक्ष दर्शन होता है। माना जाता है केतू का सीधा प्रभाव हमारी आंतरिक मानसिक स्थिति से होता है किंतु इसका दुष्प्रभाव मानसिक व्याधि, तनाव असमंजस आदि उत्पन्न करता है। वहीं इस की कृपा दृष्टि से हम लोक प्रसिद्धि आदि प्राप्त करते हैं। जिनका केतु मजबूत एवं शुभकारी होता है, वो लोग राजनीति के क्षेत्र में अपनी धाक जमाते हैं।

केतु के विषय में क्या कहता है ज्योतिष शास्त्र

ज्योतिष के अनुसार राहु-केतु के बीच की दूरी 180 अंग पर होती हैं जिस कारण केतु ग्रह सदैव राहु से सप्तम भाव में स्थित रहता है। केतु, शनि में डेढ़ वर्ष तक भ्रमण करता है जिसके बाद यह अपनी राशि परिवर्तित कर लेता है। लेकिन जब भी राहु अपनी राशि परिवर्तित करने वाला रहता है, उससे डेढ़ महीने पूर्व अपने शुभ-अशुभ परिणाम देना आरंभ कर देता है। केतु की प्रवृत्ति क्रूर एवं तमोगुण होती है। यह पुरुष लिंग का होता है जो उत्तर पश्चिम दिशा में विराजमान रहता है। इसकी स्वराशि मीन एवं धनु है। केतु का प्रभाव लगभग मंगल के समान होता है तथा केतु का संतुलित रहना अत्यंत ही आवश्यक है। इसके शुभ-अशुभ परिणाम हमारे जीवन की दशा एवं दिशा और ख्याति का कारक होती है। शनि के बुरे प्रभाव को दूर करने के उपाय भी जानिए

तो आइए जानते हैं कुछ ऐसे उपाय एवं मंत्रों के बारे में जिनके माध्यम से न सिर्फ केतु संतुलित रहे, अपितु यह आपके लिए शुभ फलदाई भी रहें।

केतु के दुष्प्रभावों से मुक्ति के उपाय

मंत्रोउपाय

शनैश्चर नमस्तुभ्यं नमस्तेतवथ राहवे।
केतवेथ नमस्तुभ्यं सर्वशांति प्रदो भाव।।
ॐ ऊर्ध्वकायं महाघोरं चंडादित्यविमर्दनम्।
सिहिंकाया: सुतं रौद्रं तं राहुं प्रणमाम्यहम्।
ॐ पातालधूम संकाशं ताराग्रहविमर्दनम्।
रौद्रां रौद्रात्मकं क्रूरं तं केतु प्रणमाम्यहम्।।

नियमित रूप से इस मंत्र के जप के पश्चात तिल के तेल से शनि, राहु एवं केतु की आरती करें। यह ऐसा अचूक मंत्र है जो ना केवल केतु, बल्कि शनि और राहु को भी संतुलित रखता है एवं उनकी कृपा दृष्टि हम पर बनाए रखता है। अतः इस मंत्र का नियमित विधि पूर्वक 108 बार जप करें।

यह केतु ग्रह की शांति हेतु मंत्र है। इस मंत्र का नियमित जाप करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है एवं आपकी कुंडली में केतु की स्थिति सामान्य रहती हैं।

ॐ पद्मपुत्राय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो केतु: प्रचोदयात ॥

केतु सात्विक मंत्र :

ॐ कें केतवे नम:॥

सरस्वती की अराधना

केतु को व्यक्ति की मति दूषित करने वाला माना जाता है। कुंडली में इसकी असामान्य स्थिति हमारी मानसिक स्तिथि को असंतुलित कर देती है जिससे हम बुराइयों की ओर अग्रसर हो जाते हैं। इसलिए केतु के दुष्प्रभावों से बचाव का सबसे अच्छा तरीका यह है कि माँ सरस्वती और भगवान् श्री गणेश की आराधना की जाए, क्योंकि माँ सरस्वती सद्बुद्धि की देवी हैं एवं श्री गणेश शुभकर्ता एवं विवेक के देव हैं। साथ ही आप धन की देवी माँ लक्ष्मी की भी नियमित पूजा करें ताकि आपके जीवन में धन-समृद्धि और मान-सम्मान की कभी भी कमी न हो।

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शनि देव की आराधना भी आपको केतु के दुष्प्रभावों से मुक्त करने में कारगर सिद्ध होगी। इसके लिए आप शनिवार को नित्य शनि देव के मंदिर में काला तिल आदि चढ़ाएं एवं शनि को प्रसन्न करने हेतु जिन वस्तुओं का दान किया जाता है, उन वस्तुओं का दान केतु की स्थिति को बेहतर करने के लिए भी कर सकते हैं। यह आपके लिए लाभप्रद रहेगा।

अन्य उपाय

  • प्रत्येक मास के दो पक्ष होते हैं जिसमें दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को केतु के निमित व्रत रखें। इससे केतु प्रसन्न होंगे।
  • भैरवजी की आराधना भी केतु ग्रह की स्थिति को कुंडली में बेहतर करता है जिससे आप केतु के दुष्प्रभावों से सुरक्षित बचे रह सकते हैं।.
  • प्रतिदिन संध्याकालीन वेला में घर में संध्या आरती करें। साथ ही एक घी का दीपक तुलसी के सामने रखें, साथ ही एक दीपक गाय के पास प्रतिदिन शाम को जलाएं।
  • तिल एवं तिल से बनी हुई वस्तुओं का अधिकाधिक दान करने से  केतु सामान्य रहता है एवं धीरे-धीरे शुभ फलदाई हो जाता है। अतः तिल की वस्तुओं का दान करें तिल के लड्डू सुहागिनों को खिलाएं।

कुछ अन्य ज्योतिषीय उपाय: