जब हमारे पूर्वज शरीर त्यागने के पश्चात् किसी कारणवश असंतुष्ट रहते हैं, तो यह दोष पितृ दोष कहलाता है। ऐसा माना जाता है कि पूर्वजों का ठीक से श्राद्ध कर्म ना होने के कारण उनकी आत्मा अशांत रहती है, जिससे उनके वंशजों के साथ दिन-प्रतिदिन घर में अनेकानेक परेशानियां, विघ्न- बाधाएं व क्लेश आते रहते हैं। इससे उनका जीवन तनाव व बाधाओं से घिरा रहता हैं। पितृ दोष का पता कुंडली की ग्रह स्थिति आदि से लगाया जाता है।
पितृदोष होने का ज्योतिषीय दृष्टिकोण
ज्योतिष की दृष्टि में पितृ दोष अनेकानेक विघ्न बाधाओं का उत्प्रेरक होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारी जन्मकुंडली में मौजूद ग्रह-स्थिति हमारे सांसारिक एवं आत्मिक जगत का संचालक एवं नियंत्रक होता है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण अनुसार कुंडली में मौजूद ग्रहों में सूर्य एवं चंद्र श्रेष्ठ होते हैं। सूर्य को पिता की संज्ञा दी गई है तो वहीं चंद्रमा को माता की। इन दोनों की दशा दिशा हमारे भूत, भविष्य एवं वर्तमान तीनों को प्रभावित करती हैं।
पितृदोष का प्रभाव इसलिए घातक होता है, क्योंकि यह हमारी कुंडली के सूर्य एवं चंद्र को प्रभावित करता है। इस दोष में सूर्य अथवा चंद्र दोनो में से किसी एक के साथ राहु अथवा केतु दूषित गोचर करने लगते हैं, इसलिए इसे पितृ दोष कहा जाता है। इसे कुंडली में इस तरह भी देखा जाता है कि यदि जातक के लग्न एवं पंचम भाव में सूर्य, मंगल एवं शनि हो और अष्टम भाव में बृहस्पति तथा राहु विराजमान हो तो पितृ दोष का योग बनता है। इसके अतिरिक्त अष्टमेश या द्वादेश जब सूर्य अथवा बृहस्पति के साथ होता है तो भी ऐसी ही स्थिति का निर्माण होता है, जिसे दूर करना अत्यंत आवश्यक है।
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पितृदोष उत्पन्न होने के कई कारण हो सकते है जिनमे से प्रमुख है परिवार में किसी की अकाल मृ्त्यु होना, और ऐसा इस परिवार में एक से अधिक अधिक बार हो चुका हो। इसके अलावा वंशजो द्वारा पितरों का सही विधी-विधान से उनका श्राद्ध ना किया जाना अथवा घर-परिवार में आयोजित धार्मिक कार्यो में अपने पितरों को याद न किया जाना आदि भी पितृ दोष उत्पन्न करते हैं।
अगर परिवार का कोई सदस्य गौ हत्या में किसी प्रकार भी शामिल हो या फिर गर्भवती महिला के भ्रूण की हत्या में शामिल हो, तो भी यह दोष जातक की कुण्डली के नौवें भाव में सूर्य और राहू की स्थिति के साथ प्रकट हो जाता है।
पितृ दोष से होने वाले प्रभाव निम्नलिखित हैं :-
पितृ दोष निवारण हेतु मंत्रोपाय
पितृदोष निवारण हेतु इस मंत्र का नियमित रूप से 108 बार प्रातः काल में जप करें।
ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः प्रथम पितृ नाराणाय नमः नमो भगवते वासुदेवाय नमः
पितृ दोष के निवारण हेतु प्रत्येक दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना करें एवं शिवलिंग पर नियमित जल अर्पित करें। इसके साथ ही महामृत्युंजय मंत्र का नियमित रूप से जप भी करें। महामृत्युंजय मंत्र सभी विघ्न बाधाओं का नाशक है।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
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